यह कविता उन तमाम उत्पीड़ितों की व्यथा-वाणी है जिनकी पहली-दूसरी पीढ़ी खेती-बारी से गुज़रते हुए उच्च शिक्षा की दुनिया तक पहुंची है और अपने लिए सम्मानजनक और न्यायपूर्ण जगह की तलाश कर रही है। बता रहे हैं कमलेश वर्मा