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‘कुशवाहा रामप्रकाश’ : कुशवाहा पर कुशवाहा की कविता

यह कविता उन तमाम उत्पीड़ितों की व्यथा-वाणी है जिनकी पहली-दूसरी पीढ़ी खेती-बारी से गुज़रते हुए उच्च शिक्षा की दुनिया तक पहुंची है और अपने लिए सम्मानजनक और न्यायपूर्ण जगह की तलाश कर रही है। बता रहे हैं कमलेश वर्मा

रोज केरकेट्टा, एक विद्वान लेखिका और मानवाधिकार की उद्भट सिपाही
रोज दी जितनी बड़ी लेखिका थीं और उतनी ही बड़ी मानवाधिकार के लिए लड़ने वाली नेत्री भी थीं। वह बेहद सरल और मृदभाषी महिला...
जोतीराव फुले और हमारा समय
असहिष्णुता और प्रतिगामी सोच के इस दौर में फुले को पढ़ना और समझना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हो सकता है। हाल में ‘फुले’...
सामाजिक न्याय का पेरियारवादी मॉडल ही समयानुकूल
आमजनों को दोष देने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उनके दलित-ओबीसी नेताओं ने फुले-आंबेडकरवाद को ब्राह्मणों और मराठों के यहां गिरवी रख दिया...
एक नहीं, हजारों डॉ. रोज केरकेट्टा की आवश्यकता
डॉ. रोज केरकेट्टा के भीतर सवर्ण समाज के ज़्यादातर प्रोफेसरों की तरह ‘सभ्य बनाने’ या ‘सुधारने’ की मानसिकता नहीं थी। वे केवल एक शिक्षिका...
महाबोधि विहार मुक्ति आंदोलन : सिर्फ फेसबुक पर ही मत लिखिए, आंदोलन में शामिल भी होइए
इस आंदोलन का एक यह भी दुखद पहलू है कि जिस बिहार की धरती पर ब्राह्मणवादियों का आजादी के सात-आठ दशक बाद भी अभी...
सवर्ण व्यामोह में फंसा वाम इतिहास बोध
जाति के प्रश्न को नहीं स्वीकारने के कारण उत्पीड़ितों की पहचान और उनके संघर्षों की उपेक्षा होती है, इतिहास को देखने से लेकर वर्तमान...
त्यौहारों को लेकर असमंजस में क्यों रहते हैं नवबौद्ध?
नवबौद्धों में असमंजस की एक वजह यह भी है कि बौद्ध धर्मावलंबी होने के बावजूद वे जातियों और उपजातियों में बंटे हैं। एक वजह...
संवाद : इस्लाम, आदिवासियत व हिंदुत्व
आदिवासी इलाकों में भी, जो लोग अपनी ज़मीन और संसाधनों की रक्षा के लिए लड़ते हैं, उन्हें आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत गिरफ्तार किया...
ब्राह्मण-ग्रंथों का अंत्यपरीक्षण (संदर्भ : श्रमणत्व और संन्यास, अंतिम भाग)
तिकड़ी में शामिल करने के बावजूद शिव को देवलोक में नहीं बसाया गया। वैसे भी जब एक शूद्र गांव के भीतर नहीं बस सकता...
ब्राह्मणवादी वर्चस्ववाद के खिलाफ था तमिलनाडु में हिंदी विरोध
जस्टिस पार्टी और फिर पेरियार ने, वहां ब्राह्मणवाद की पूरी तरह घेरेबंदी कर दी थी। वस्तुत: राजभाषा और राष्ट्रवाद जैसे नारे तो महज ब्राह्मणवाद...
‘कुशवाहा रामप्रकाश’ : कुशवाहा पर कुशवाहा की कविता
यह कविता उन तमाम उत्पीड़ितों की व्यथा-वाणी है जिनकी पहली-दूसरी पीढ़ी खेती-बारी से गुज़रते हुए उच्च शिक्षा की दुनिया तक पहुंची है और अपने...
‘ज्योति कलश’ रचने में चूक गए संजीव
जोतीराव फुले के जीवन पर उपन्यास लिखना एक जटिल काम है, लेकिन इसे अपनी कल्पनाशीलता से संजीव ने आसान बना दिया है। हालांकि कई...
दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्र बनने से जरूर बचना चाहिए : प्रो. नामदेव
अगर कोई राजनीतिक दल दलित साहित्य का समर्थन करे तो इसमें बुराई क्या है? हां, लेकिन दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का...
‘गाडा टोला’ : आदिवासी सौंदर्य बोध और प्रतिमान की कविताएं
कथित मुख्य धारा के सौंदर्य बोध के बरअक्स राही डूमरचीर आदिवासी सौंदर्य बोध के कवि हैं। वे अपनी कविताओं में आदिवासी समाज से जुड़े...
स्वतंत्र भारत में पिछड़ा वर्ग के संघर्ष को बयां करती आत्मकथा
ब्राह्मण या ऊंची जातियों के जैसे अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की अनावश्यक कोशिशों को छोड़ दें तो हरिनारायण ठाकुर की यह कृति स्वतंत्र...
सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने गढ़ा पति की परछाई से आगे बढ़कर अपना स्वतंत्र आकार
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के समाज सुधार के काम में उनका पूरी तरह सहयोग देते हुए एक परछाईं की तरह पूरे...
रैदास: मध्यकालीन सामंती युग के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतक
रैदास के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतन-लेखन को वैश्विक और देश के फलक पर व्यापक स्वीकृति क्यों नहीं मिली? सच तो यह कि उनकी आधुनिक चिंतन...
जब नौजवान जगदेव प्रसाद ने जमींदार के हाथी को खदेड़ दिया
अंग्रेज किसानाें को तीनकठिया प्रथा के तहत एक बीघे यानी बीस कट्ठे में तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए मजबूर करते...
डॉ. आंबेडकर : भारतीय उपमहाद्वीप के क्रांतिकारी कायांतरण के प्रस्तावक-प्रणेता
आंबेडकर के लिए बुद्ध धम्म भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक लोकतंत्र कायम करने का एक सबसे बड़ा साधन था। वे बुद्ध धम्म को असमानतावादी, पितृसत्तावादी...
डॉ. आंबेडकर की विदेश यात्राओं से संबंधित अनदेखे दस्तावेज, जिनमें से कुछ आधारहीन दावों की पोल खोलते हैं
डॉ. आंबेडकर की ऐसी प्रभावी और प्रमाणिक जीवनी अब भी लिखी जानी बाकी है, जो केवल ठोस और सत्यापन-योग्य तथ्यों – न कि सुनी-सुनाई...