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जातिगत जनगणना अति पिछड़ी जातियों के लिए सबसे अहम क्यों?

जाति-आधारित जनगणना और तत्पश्चात उसके आधार पर ओबीसी आरक्षण कोटे के विस्तार और वैज्ञानिक उपवर्गीकरण से वे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हो सकते हैं, जिनकी कल्पना संविधान में की गई है। बता रहे हैं श्याम कुमार

जातिगत जनगणना अति पिछड़ी जातियों के लिए सबसे अहम क्यों?
जाति-आधारित जनगणना और तत्पश्चात उसके आधार पर ओबीसी आरक्षण कोटे के विस्तार और वैज्ञानिक उपवर्गीकरण से वे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हो सकते हैं, जिनकी कल्पना...
क्या भागवत का स्थान लेंगे मोदी-शाह के दत्तात्रेय होसबाले?
मोदी-शाह की शैली असहमति को बर्दाश्त नहीं करती। गुजरात में उन्होंने आरएसएस की स्वायत्तता को कुचला और अब राष्ट्रीय स्तर पर भी यही पैटर्न...
पटना में आयोजित परिचर्चा में सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के खिलाफ उठी आवाज
दीपंकर भट्टाचार्य ने लद्दाख के आंदोलन से जुड़े सोनम वांगचुक का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें छठी अनुसूची और अलग राज्य की मांग...
बिहार : एक चरण में मतदान नहीं कराने की साजिशें
बिहार में विधानसभा के चुनाव कराने का वक्त आ गया है। इस वक्त देश में कहीं और चुनाव नहीं कराने हैं। ऐसे में बिहार...
बिहार विधान सभा चुनाव : सत्ता पक्ष की ‘नकद धनराशि’ और विपक्ष के ‘सामाजिक न्याय’ के मायने
जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तब 18 जनवरी, 2006 को एक अध्यादेश के जरिए पिछड़ा वर्ग के नाम पर सिर्फ परिशिष्ट-1 की जातियों...
दसाईं परब : आदिवासी समाज की विलुप्त होती धरोहर और स्मृति का नृत्य
आज भी संताल समाज के गांवों में यह खोज यात्रा एक तरह की सामूहिक स्मृति यात्रा है, जिसमें सभी लोग भागीदार होते हैं। लोग...
कब तक अपने पुरखों की हत्या का जश्न देखते रहेंगे मूलनिवासी?
क्या हमने कभी विचार किया है कि बाजार से जुड़ कर आज कल जो दुर्गा पंडाल बनते हैं, भव्य प्रतिमाएं बनती हैं, सप्ताह-दस दिन...
दुनिया लेखकों से चलती है (भाग 2)
शैव और वैष्णव दर्शन की मान्यता में ज़मीन आसमान का अंतर है और दोनों दर्शन के अनुयायियों में खूब लंबे समय तक वैचारिक लड़ाई...
दुनिया लेखकों से चलती है (भाग 1)
‘बहुजन’ से अभिप्राय केवल संख्या के आधार पर बहुजन से नहीं है, बल्कि तथाकथित मुख्यधारा की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था के द्वारा हज़ारों साल...
दलित अध्ययन : सबाल्टर्न से आगे
दलित स्टडीज के पहले खंड (2016) ने इस नए अध्ययन क्षेत्र को स्थापित किया, दलित राजनीति और सोच को उनके ऐतिहासिक संदर्भों में प्रस्तुत...
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य
दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए...
बानू मुश्ताक की कहानियों में विद्रोही महिलाएं
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो...
योनि और सत्ता पर संवाद करतीं कविताएं
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य...
रोज केरकेट्टा का साहित्य और उनका जीवन
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था।...
भक्ति आंदोलन का पुनर्पाठ वाया कंवल भारती
आलोचक कंवल भारती भक्ति आंदोलन की एक नई लौकिक और भौतिक संदर्भों में व्याख्या करते हैं। इनका अभिधात्मक व्याख्या स्वरूप इनके पत्रकार व्यक्तित्व का...
वायकोम सत्याग्रह : सामाजिक अधिकारों के लिए पेरियार का निर्णायक संघर्ष
गांधी, पेरियार को भी वायकोम सत्याग्रह से दूर रखना चाहते थे। कांग्रेस गांधी के प्रभाव में थी, किंतु पेरियार का निर्णय अटल था। वे...
बी.पी. मंडल का ऐतिहासिक संबोधन– “कोसी नदी बिहार की धरती पर स्वर्ग उतार सकती है”
औपनिवेशिक बिहार प्रांत में बाढ़ के संदर्भ में कई परामर्श कमिटियां गठित हुईं। बाढ़ सम्मलेन भी हुए। लेकिन सभी कमिटियों के गठन, सम्मलेन और...
जब महामना रामस्वरूप वर्मा ने अजीत सिंह को उनके बीस हजार का चेक लौटा दिया
वर्मा जी अक्सर टेलीफोन किया करते थे। जब तक मैं उन्हें हैलो कहता उसके पहले वे सिंह साहब नमस्कार के द्वारा अभिवादन करते थे।...
जब हमीरपुर में रामस्वरूप वर्मा जी को जान से मारने की ब्राह्मण-ठाकुरों की साजिश नाकाम हुई
हमलोग वहां बस से ही गए थे। विरोधियों की योजना यह थी कि वर्मा जी जैसे ही बस में चढ़ें, बस का चालक तेजी...
जगजीवन राम को कैसे प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया?
जयप्रकाश नारायण को संसदीय दल के नेता का चुनाव करवा देना चाहिए था। इस संबंध में प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी पुस्तक ‘एक...