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आरएसएस का सीएमसी, वेल्लोर जैसा अस्पताल क्यों नहीं? कांचा काइतैय्या के जीवन से सबक

स्वाधीनता के बाद अगर किसी हिंदुत्ववादी ताकत का हमारे देश पर राज कायम हो गया होता और उसने सीएमसी को बंद करवा दिया होता तो कांचा काइतैय्या अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते। हाल में दिवंगत हुए अपने बड़े भाई के अंधविश्वासमुक्त जीवन व समकालीन समाज के बारे में बता रहे हैं कांचा आइलैय्या...

आरएसएस का सीएमसी, वेल्लोर जैसा अस्पताल क्यों नहीं? कांचा काइतैय्या के जीवन से सबक
स्वाधीनता के बाद अगर किसी हिंदुत्ववादी ताकत का हमारे देश पर राज कायम हो गया होता और उसने सीएमसी को बंद करवा दिया होता...
बिहार विधानसभा चुनाव : सामाजिक न्याय का सवाल रहेगा महत्वपूर्ण
दक्षिणी प्रायद्वीप में आजादी के पहले से आरक्षण लागू है और 85 फ़ीसदी तक इसकी सीमा है। ये राज्य विकसित श्रेणी में आते हैं।...
जनसंघ के किसी नेता ने नहीं किया था ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े जाने का विरोध : सिद्दीकी
1976 में जब 42वां संविधान संशोधन हुआ तब चाहे वे अटलबिहारी वाजपेयी रहे या फिर आडवाणी या अन्य बड़े नेता, किसी के मुंह से...
जेर-ए-बहस : श्रम-संस्कृति ही बहुजन संस्कृति
संख्या के माध्यम से बहुजन को परिभाषित करने के अनेक खतरे हैं। इससे ‘बहुजन’ को संख्याबल समझ लिए जाने की संभावना बराबर बनी रहेगी।...
‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
बंगाली अध्येताओं की नजर में रामराज्य
रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर राजशेखर बसु और दिनेश चंद्र सेन आदि बंगाली अध्येताओं ने रामायण का विश्लेषण अलग-अलग नजरिए से किया है, जिनमें तर्क...
क्या बुद्ध पुनर्जन्म के आधार पर राष्ट्राध्यक्ष का चयन करने की सलाह दे सकते हैं?
दलाई लामा प्रकरण में तिब्बत की जनता के साथ पूरी सहानुभूति है। उन पर हुए आक्रमण की अमानवीयता का विरोध आवश्यक है। तिब्बत और...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में श्रीलंका की यात्रा पर गए थे।...
जब मैं एक उदारवादी सवर्ण के कवितापाठ में शरीक हुआ
मैंने ओमप्रकाश वाल्मीकि और सूरजपाल चौहान को पढ़ रखा था और वे जिस दुनिया में रहते थे मैं उससे वाकिफ था। एक दिन जब...
जेर-ए-बहस : प्रसाद के अधूरे उपन्यास ‘इरावती’ का आजीवक प्रसंग जिसकी कभी चर्चा नहीं होती
जिस दौर में जयशंकर प्रसाद ने इन कृतियों की रचना की, वह भी सांस्कृतिक-राजनीतिक उथल-पुथल का था। आजादी की लड़ाई अपने अंतिम दौर में...
जातिवाद और सामंतवाद की टूटती जकड़नों को दर्ज करती किताब
बिहार पर आधारित आलेख के लेखक का मानना है कि त्रिवेणी संघ के गठन का असर बाद में लोहिया के समाजवाद से लेकर जगदेव...
कुठांव : सवर्ण केंद्रित नारीवाद बनाम बहुजन न्याय का स्त्री विमर्श का सवाल उठाता उपन्यास
अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास ‘कुठांव’ हमें यही बताता है कि बहुजन और पसमांदा महिलाओं का संघर्ष सिर्फ पुरुषों से नहीं है, बल्कि वह उस...
आंबेडकरवाद के अतीत और वर्तमान को समझाती एक किताब
यह किताब आंबेडकरवादी आंदोलन की दो तस्वीरें प्रस्तुत करती है। एक तस्वीर वह जो डॉ. आंबेडकर के जीवनकाल में थी और दूसरी तस्वीर में...
दलित-बहुजन विमर्श के नये आयाम गढ़तीं दिनेश कुशवाह की कविताएं
दिनेश कुशवाह की कविताओं में ऐसी कई भारतीय समाज की दृश्यावलियां उभर कर आती हैं, जो साहित्य और इतिहास के पन्नों में गायब हैं।...
‘जाति का विनाश’ में संतराम बीए, आंबेडकर और गांधी के बीच वाद-विवाद और संवाद
वर्ण-व्यवस्था रहेगी तो जाति को मिटाया नहीं जा सकता है। संतराम बीए का यह तर्क बिलकुल डॉ. आंबेडकर के तर्क से मेल खाता है।...
इन कारणों से बौद्ध दर्शन से प्रभावित थे पेरियार
बुद्ध के विचारों से प्रेरित होकर पेरियार ने 27 मई, 1953 को ‘बुद्ध उत्सव’ के रूप में मनाने का आह्वान किया, जिसे उनके अनुयायियों...
‘दुनिया-भर के मजदूरों के सुख-दुःख, समस्याएं और चुनौतियां एक हैं’
अपने श्रम का मूल्य जानना भी आपकी जिम्मेदारी है। श्रम और श्रमिक के महत्व, उसकी अपरिहार्यता के बारे में आपको समझना चाहिए। ऐसा लगता...
सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने गढ़ा पति की परछाई से आगे बढ़कर अपना स्वतंत्र आकार
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के समाज सुधार के काम में उनका पूरी तरह सहयोग देते हुए एक परछाईं की तरह पूरे...
रैदास: मध्यकालीन सामंती युग के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतक
रैदास के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतन-लेखन को वैश्विक और देश के फलक पर व्यापक स्वीकृति क्यों नहीं मिली? सच तो यह कि उनकी आधुनिक चिंतन...