प्रेमचंद ने जहां एक ओर ‘कफ़न’ कहानी में चमार जाति के घीसू और माधव को कफनखोर के तौर पर पेश किया, वहीं दूसरी ओर ‘रंगभूमि’ उपन्यास में सूरदास को अंधा और भिखारी बना दिया। क्या यह जाति-व्यवस्था से संचालित सौंदर्य शास्त्र नहीं है, जिसमें दलित पात्र की छवि भिखारी और कफनखोर के तौर पर...