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फॉरवर्ड थिंकिंग, जनवरी 2013

सबसे पहले ईश्वर और उसके बाद मेरी जीवन साथी, मुटठीभर फारवर्ड प्रेस कर्मियों और नित विस्तृत हो रहे फारवर्ड परिवार, जिसमें, प्रिय पाठक, आप भी शामिल हैं, की मदद से हम तूफानों से अपनी किश्ती निकाल लाएं हैं और अब सफलता के नजदीक पहुंच गए हैं। अगर आप अब तक फारवर्ड परिवार से नहीं जुड़े हैं तो यही वह समय है जब आपको इससे जुड़कर, हम भारतीयों की असली जड़ों और असली इतिहास की खोज की रोमांचक यात्रा में हमारे साथ हो लेना चाहिए और इस समाज के सभी सदस्यों को असली स्वतंत्रता और गरिमा दिलाने की लड़ाई में भागीदारी करनी चाहिए।

बाइबिल में 7 का अंक समापन से जुड़ा हुआ है और अक्सर 7 साल की इस अवधि को 2 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटा जाता है। शुरुआती आधी अवधि (साढ़े तीन साल) जुड़ी होती है, जांच-परख और परीक्षणों से और बाद की आधी अवधि में मिलती है सफलता, शांति और समृद्धि-सामान्यत: ईश्वर में विश्वास रखने से। फारवर्ड प्रेस के लगातार प्रकाशन के साढ़े तीन वर्ष पूरे होने पर, जब हम मुड़कर देखते हैं तो हमें दिखलाई देती हैं वे मुसीबतें और समस्याएं जिनसे गुजरकर हम आज यहां तक पहुंचे हैं। इस बीच हमारे पाठकों की संख्या बढ़ी है और वे अब हमें अधिक दिलचस्पी से पढ़ते हैं। सबसे पहले ईश्वर और उसके बाद मेरी जीवन साथी, मुटठीभर फारवर्ड प्रेस कर्मियों और नित विस्तृत हो रहे फारवर्ड परिवार, जिसमें, प्रिय पाठक, आप भी शामिल हैं, की मदद से हम तूफानों से अपनी किश्ती निकाल लाएं हैं और अब सफलता के नजदीक पहुंच गए हैं। अगर आप अब तक फारवर्ड परिवार से नहीं जुड़े हैं तो यही वह समय है जब आपको इससे जुड़कर, हम भारतीयों की असली जड़ों और असली इतिहास की खोज की रोमांचक यात्रा में हमारे साथ हो लेना चाहिए और इस समाज के सभी सदस्यों को असली स्वतंत्रता और गरिमा दिलाने की लड़ाई में भागीदारी करनी चाहिए।

इस लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, शिक्षा–सब के लिए शिक्षा। क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की इस जयंती पर हम उनके जीवनवृत्त पर केन्द्रित सामग्री प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं। उनके जीवन पर हम जनवरी, 2012 के अंक में विस्तृत प्रकाश डाल चुके हैं। इस बार हम उनकी विरासत पर चर्चा कर रहे हैं, विशेषकर सबके लिए शिक्षा पर। मुझे पता नहीं है कि आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि नहीं कि सावित्रीबाई के किसी भी चित्र में उन्हें मुस्कुराता हुआ नहीं दिखाया गया है। इसीलिए हमने अपनी कवर स्टोरी का शीर्षक चुना “सावित्रीबाई कब मुस्कुराएंगी”। इस विषय पर लिखने के लिए हमें एक ऐसे शिक्षाविद की तलाश थी जो अग्रणी शिक्षाविद के बतौर (उनके पति-गुरु सहित) सावित्रीबाई की भूमिका से परिचित हो। प्रो. जानकी राजन से मेरा परिचय मेरी शिक्षाविद पुत्री (जो सरकार के सर्वशिक्षा अभियान कार्यक्रम में सलाहकार रही है) के जरिए हुआ। वे सावित्रीबाई और उनकी विरासत की कितनी बड़ी प्रशंसक हैं यह उनके भारत के सर्वशिक्षा अभियान की स्थिति के विश्लेषण से स्पष्ट है। फुले दंपती द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति के सूत्रपात को आज 165 साल बीत चुके हैं।

फारवर्ड प्रेस की शुरुआत के बाद से यह शायद पहली बार है कि किसी अंक में हमारे सबसे नियमित योगदानी संपादक विशाल मंगलवादी का कोई लेख नहीं है। लगभग 1 महीने तक देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी ताजा किताबों, जिनमें फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित “वाय आर वी बेकवर्ड” शामिल है, का प्रमोशन करने के बाद वे अमेरिका से वापस लौट गए हैं। परन्तु उनका इरादा भारत लौटकर शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने में अपना योगदान देने का है। वे केरल के शिक्षा मॉडल को राष्ट्रव्यापी स्वरूप देना चाहते हैं। केरल देश का सबसे साक्षर राज्य है। शिक्षा को इस प्रदेश में कितना महत्व दिया जाता है, यह इससे ही साफ है कि स्कूल के लिए मलयालम शब्द है ‘पल्लीकुडम’ जिसका शाब्दिक अर्थ है “चर्च के बगल की जगह”।

फारवर्ड प्रेस के पिछले अंक (दिसंबर, 2012) में छपे अपने लेख में उन्होंने महात्मा फुले के इस उद्धरण का इस्तेमाल किया था:

“शिक्षा के अभाव में बुद्धि गायब हो गई। बुद्धिमता के न होने से नैतिकता नहीं रही। नैतिक सिद्धांतों के बिना प्रगति रुक गई। प्रगति रुकने से संपत्ति खत्म गई। चूंकि पैसा नहीं बचा इसलिए शूद्रों की हालत खराब होती गई। इन सभी बुराइयों की जड़ में था शिक्षा का अभाव।”

यह है फारवर्ड थिंकिंग-शिक्षा का नैतिकता और समृद्धि से नाता। आपका नया साल आपके लिए शिक्षा, प्रसन्नता व समृद्धि लाए।

(फारवर्ड प्रेस के जनवरी 2013 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

आयवन कोस्‍का

आयवन कोस्‍का फारवर्ड प्रेस के संस्थापक संपादक हैं

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