28 नवंबर, 2011 को राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने राज्य की गुर्जर सहित पांच जातियों को पांच प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण देने का फैसला किया है। जिन पांच जातियों को आरक्षण देने की राज्य कैबिनेट ने घोषणा की है उन जातियों को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने एसबीएस (स्पेशल बैकवर्ड क्लासेज) के नाम से संबोधित किया है। इस तरह राज्य में अब आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढकर 54 प्रतिशत हो जाएगी। हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार यह आरक्षण दो माह बाद लागू होगा। आरक्षण की बढी इस सीमा पर एक बार फिर से देशभर में मिली-जुली प्रतिक्रिया हो रही है।
तमिलनाडु में पहले से है 69 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण
केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियों में समय-समय पर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने की मांग होती रही है। लेकिन सामाजिक न्याय और आरक्षण के विरोधी 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं होने के सुप्रीम कोर्ट के तर्क का हवाला देते हैं। वे भूल जाते हैं कि तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां 69 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा है और ऐसा 1992 के इंद्रा साहनी मामले के फैसले के अनुसार और 1997 में जोड़े गए संविधान के अनुच्छेद 16-4 (बी) के तहत है। राजस्थान में भी इंद्रा साहनी मामले में फैसले के तहत आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढाकर 54 प्रतिशत किया गया है। इंद्रा साहनी व एम नागराज के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि देश में विविधताओं के कारण दूरदराज और निर्जन स्थानों की आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिए शिथिलता बरतते हुए विशेष मामलों में 50 प्रतिशत से भी अधिक आरक्षण दिया जा सकता है।
राजस्थान सरकार का मानना है कि अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस सिद्धांत का हवाला दिया था, जिसे मंत्रिमंडल ने मंजूरी देते हुए आरक्षण देने का निर्णय लिया। कैबिनेट की बैठक के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बताया था कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले का उदाहरण देते हुए कहा था कि राजस्थान में आरक्षण की सीमा 50 से बढाकर 54 प्रतिशत की जा सकती है। दूसरी ओर जो लोग 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं होने की रट लगाए रहते हैं, उन्हें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जातिगत आधार पर होने वाली जनगणना के आंकड़े अगर मिल जाए तो देश में आरक्षण की सीमा को 70 प्रतिशत से ज्यादा करने की दरकार आन पड़ेगी। गौरतलब है कि अभी जो आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा है वह 1931 की जनगणना के आधार पर है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो आरक्षित जातियों की आबादी में काफी अधिक इजाफा हो गया है।
उत्तर भारत की अन्य वंचित जातियों की तरह ही हैं गुर्जर, गडरिया और एसबीएस की अन्य जातियां। एसबीएस की कई जातियां तो घुमक्कड़ और खानाबदोश जातियां हैं। इनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थितियां अत्यंत कमजोर हैं। गुर्जरों ओर गडेरियों की जीविका का मुख्य आधार पशुपालन और दूध बेचना है। आज के उत्तर आधुनिक समय में कोई भी जाति दूध बेचकर और पशुपालन कर आर्थिक और सामाजिक रूप से कितनी समृद्ध हो सकती है यह अनुमान करने की बात है। खैर, फिलहाल गुर्जरों के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की मांग को राजस्थान सरकार ने प्रकारांतर से मान ली है और गुर्जर सहित पांच जातियों को अनुसूचित जनजाति न सही एसबीएस का दर्जा दे दिया है। हालांकि बैंसला अभी न तो सरकार के फैसले का स्वागत कर रहे हैं और न ही विरोध। फिर भी उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे 50 फीसदी की सीमा में ही 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे थे, लेकिन सरकार ने 50 फीसदी के बाहर जाकर आरक्षण दिया है।
अन्य राज्यों को भी मिलेगा अब मौका
राजस्थान के बाद अब उत्तर भारत के और भी राज्य 50 फीसदी से अधिक आरक्षण पाने का पुख्ता दावा कर सकेगा, क्योंकि राजस्थान वाली स्थिति कमोबेश सभी राज्यों की है। राजस्थान ने उन राज्यों के लिए दरवाजा खोलने का काम किया है। दूसरी ओर उनकी बोलती बंद करने का काम किया है जो 50 फीसदी का हवाला देकर सम्पूर्ण सामाजिक न्याय का गला घोंटने पर आमादा रहते हैं।
एसबीएस में शामिल जातियां
राजस्थान में विशेष पिछड़ा वर्ग में अब निम्नलिखित जातियां शामिल है –
बंजारा, बालदिया, लबाना।
गाडिय़ा, लुहार, गाडोलिया।
गुर्जर, गूजर।
राइका, रेबारी (देवासी)
गडरिया (गाडरी), गायरी हैं।
गौरतलब है कि ओबीसी आयोग ने रिपोर्ट के बाद विशेष पिछड़ा वर्ग में एक नई जाति गडरिया को शामिल किया है।
(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)
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