बामसेफ और भारतीय मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष वामन मेश्राम से प्रेरित और दिशा-निर्देश प्राप्त दलित बहुजन कार्यकर्ताओं ने एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की। गत 6 दिसंबर, 2012 को डा. भीमराव आम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर नई दिल्ली स्थित गढ़वाल भवन में यह घोषणा की गई। लगभग 3 हजार कार्यकर्ताओं ने जय मूलनिवासी की उदघोषणा कर नई पार्टी के लिए कार्य करने का संकल्प लिया।
राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आरके अकोदिया को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। पार्टी के संस्थापकों ने कहा कि यह नई पार्टी बामसेफ और भारतीय मुक्ति मोर्चा के आंदोलनों से प्रेरित है। उन्होंने दावा किया कि हम 2014 के लोकसभा चुनाव में कम-से-कम 250 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे। यह घोषणा भी की गई कि नई पार्टी को मेश्राम की शुभकामनाएं प्राप्त हैं और वह उनके दिशा-निर्देश में काम करेगी।
नई पार्टी के गठन के घोषणा हेतु आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए अकोदिया ने कहा कि आजादी के 65 साल बाद भी भारत दुनिया के गरीब देशों में गिना जाता है। देश के मात्र 3 प्रतिशत लोग ही 97 प्रतिशत जल, जमीन और संपत्ति, संसाधन पर काबिज हैं और 97 प्रतिशत लोगों के हिस्से में मात्र 3 प्रतिशत जल, जमीन और संपत्ति है। अकोदिया ने कहा कि हमारी पार्टी का मूल उदेश्य है शोषित एवं पिछड़े वर्ग को सत्ता के संसाधनों में बराबरी का हक दिलाना और मूलनिवासियों को सत्ता के केंद्र में लाकर खडा़ करना। हालांकि नवनिर्मित पार्टी के नाम को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। पहले इसका नाम जनसत्ता पार्टी तय किया गया था। लेकिन चुनाव आयोग में किसी अन्य पार्टी के इसी नाम से रजिस्टर होने के कारण आयोग ने यह नाम देने से इनकार कर दिया। पार्टी के लिए अन्य वैकल्पिक नामों पर विचार हो रहा है।
बहरहाल, बामसेफ दवारा गठित नई पार्टी ने बहुत सारे सवाल राजनीतिक हलकों में खड़े कर दिए हैं। मसलन, क्या यह नई पार्टी गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई राजनीति करते हुए भारत के दलितों और ओबीसी को एक सशक्त राजनीतिक विकल्प देगी या फिर सिर्फ बहुजन समाज पार्टी का विरोध के लिए जानी जाएगी?
(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)
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