जीव खुदशाह की पुस्तक (आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग-पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं) चार अध्याय में पिछड़े वर्ग की मीमांसा करती है। पुस्तक में वर्ग की जांच-पड़ताल आम्बेडकर की वैचारिकी को केंद्र में रखकर किया गया है। जबकि लेखक ने स्वयं लिखा है कि शोध प्रकल्प के रूप में काफी संदर्भ सामग्री एकत्रित की है।
प्रथम अध्याय में पिछड़े वर्ग की उत्पत्ति और इस वर्ग का वर्गीकरण किया गया है। इस अध्याय में लेखक पिछड़े वर्ग की खोज की शुरुआत मानव उत्पत्तिकाल से करता है। आगे इसकी व्याख्या वैज्ञानिक तथ्यों से लेकर धार्मिक मान्यताओं तक की गई है। जातीय वर्गीकरण का आधार उत्पादक व अनुत्पादक जातियों के आधार पर किया गया है। उनके उत्पादक मूल्यों के आधार पर वर्ण व्यवस्था में उन्हें अस्पृश्य एवं स्पृश्य माना गया है।
प्रथम अध्याय में पिछड़े वर्ग के उदभव की वृहद चर्चा करने के उपरांत द्वितीय अध्याय को लेखक ने जाति एवं गोत्र विवाद तथा हिन्दूकरण पर केन्द्रित किया है। शोध के दौरान इन जातियों के ग्रंथ एवं लेखों में ऊंची जाति होने के दावे को धर्मग्रंथों को मान्यता देते हुए पिछड़े वर्ग की अवैध संतति मानता है। गोत्र के उद्भव पर भी लेखक चर्चा करता है। लेकिन पिछड़ा वर्ग के गोत्र अगड़ी जातियों के समान हैं। जातिगत विवेचना के तहत गौतम बुद्ध की जाति को खंगालने का प्रयास लेखक ने किया है। गोत्र के आधार पर उच्च वर्ग में शामिल किए जाने पर लेखक प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। संत कबीर, संत सेना, महात्मा फुले, पेरियार एवं संत नामदेव जैसे समाज सुधारकों के बावजूद यह वर्ग पिछड़ा क्यों है। संजीव खुदशाह अपनी पुस्तक में आरक्षण व्यवस्था की पड़ताल करते हुए विभिन्न जातियों की अधिकृत सूची के साथ ही इस सूची में शामिल होने को आतुर जातियों की भी चर्चा करते हैं। पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित जातियों की आधिकारिक सूची सूचनात्मक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। पुस्तक में पिछड़े वर्ग की समस्याओं और उनके आंदोलनों का अध्ययन बड़ी ही सर्तकतापूर्वक किया गया है।
आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग (पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं), मूल्य : 200रु
संजीव खुदशाह : शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली
(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2013 अंक में प्रकाशित)
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