कहते हैं कि विवाह एक जीवनपर्यंत रोमांचक यात्रा की शुरुआत होती है। त्याग, परिवर्तन और नई-नई खोजें इस यात्रा के हिस्से होते हैं। विवाह एक ऐसी रोमांचक यात्रा है, जिसमें दो अजनबी एक दूसरे से जुड़ते हैं और जीवन के उतार-चढ़ाव में, अच्छे और बुरे दौर में, खुशी और गम में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। दुख की बात यह है कि विवाह आजीवन गारंटी के साथ नहीं आते। एक बार शादी हो गई, दीवाने प्यार का हनीमून का दौर गुजर गया। एक दूसरे की तारीफों के पुल बांधने का वक्त खत्म हो गया। उसके बाद पति-पत्नी को आपस में जोडऩे वाली गोंद सूख-सी जाती है। आपको अचानक लगने लगता है कि आपके शयनकक्ष में एक अजनबी रह रही है। उसके बाद तर्क-वितर्क का दौर शुरू हो जाता है। अपनी असली भावनाएं व्यक्त करना हम बंद कर देते हैं। हमारे मन में कुछ ऐसे विचार भी आने लगते हैं, जो व्यक्त करने लायक ही नहीं होते और हम सोचने लगते हैं कि क्या हम इस व्यक्ति के साथ पूरा जीवन तो छोडि़ए, एक और दिन भी बिता सकते हैं।
यह सब होने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि हम एक दूसरे से जुड़े रहना भूल जाते हैं। जब हम जुड़े रहना कहते हैं तो हमारा इससे क्या अर्थ होता है। शब्दकोष कहते हैं कि जुड़े रहने का अर्थ है एक होना या किसी श्रृंखला से आपस में संबद्ध होना। एक शब्दकोष उदाहरणस्वरूप कहता है दो सड़कें आपस में जुड़कर हाईवे बनाती हैं। हमारे जैसे विवाहित जोड़ों या वे लोग जो जल्द ही विवाह के बंधन में बंधने वाले हैं आखिर कैसे यह सुनिश्चित करें कि हम एक दूसरे से जुड़े रहें। इसका एक ही तरीका है दो से एक बन जाना।
पति : मैं हमेशा से ऐसा आदमी रहा हूं जो हर तरह के व्यक्तियों से हर समय, हर विषय पर बात कर सकता है। जाहिर है कि मैं बतौर वक्ता अपनी पत्नी पर हावी हो गया। किस्से-कहानियां सुनाने और प्रशिक्षण देने की कला में माहिर होने के कारण बातें करना मुझे बहुत अच्छे से आता था। परंतु जल्दी ही मुझे यह अहसास हुआ कि मुझमें जो कमी थी वह यह थी कि मैं अपनी भावनाएं बांटता नहीं था और अपनी पत्नी के साथ खुलकर बातचीत नहीं करता था। और क्या आप जानते हैं..मेरी पत्नी ठीक यही चाहती थी।
पत्नी : मैं ऐसे परिवार से हूं जहां मेरे माता-पिता हम बच्चों को सब कुछ करने देते थे। बशर्ते वह उनकी मर्जी के अनुरूप हो। चाहे कुछ चुनने का मसला हो या जीवन जीने का तरीका, मैं केवल एक छोटी-सी आज्ञाकारी लड़की थी। इसलिए मैं बातचीत करने में बहुत संकोच करती थी। मैं सुनना ज्यादा चाहती थी और बोलना कम। मैं कभी अपने दिल की बात किसी से नहीं बांटती थी। मैं अपने दिल की बात अपने दिल में ही रखने की आदी थी। मेरे लिए मेरी असली भावनाओं को प्रकट करना एक कठिन संघर्ष था। साधारण बातचीत में तो फिर भी मैं स्वयं की भावनाओं को ठीक ढंग से व्यक्त कर पाती थी परंतु जब कोई बहस होती थी तब मेरी बातें अक्सर पटरी से उतर जाया करती थीं। या तो मैं चुप्पी साध लेती थी और या फिर अपने बचाव में बहुत कड़वी भाषा का इस्तेमाल करती थी। उससे उपजता था रोष, क्रोध का विस्फोट। चुप्पी की लम्बी अवधि भावनारहित व्यवहार और अंतत: दुख और पीड़ा। कई बार ऐसा होता कि मेरे पास उसके साथ बांटने को इतना कुछ रहता और मैं अपने मन की इतनी सारी बातें उसे बताना चाहती परंतु वो मुझे अपने शब्दों की बाढ़ में डुबो देता था और मैं स्वयं से पूछती थी, वह मुझे समझ क्यों नहीं पाता।
पति : विवाह में समस्याएं बढ़ती ही जा रही थीं। जब भी मैं सोचता कि चलो अब कुछ शांति का दौर आया है तभी कोई न कोई समस्या उठ खड़ी होती थी। कुछ समय बाद हमलोगों ने यह पता लगाने का निर्णय किया कि आखिर हम गलती कहां कर रहे हैं। कुछ किताबों को सरसरी तौर पर पढऩे के बाद मेरे हाथ जॉन पावेल की पुस्तक वाय आई एम अफ्रेड टू टेल यू हू आई एम, (मैं तुम्हें यह बताने में क्यों डरता हूं कि मैं क्या हूं) लगी। इस पुस्तक में आपसी संवाद के स्तरों की विस्तृत चर्चा थी। लेखक ने यह बताया था कि किस प्रकार हमारे आपसी संवाद के विभिन्न स्तर होते हैं और एक दूसरे से सही अर्थों में जुडऩे के लिए हमें गहरे स्तर पर जाकर संवाद करना होता है। नीचे संवाद के स्तरों का हमारा संस्करण, अर्थात् जैसा हमने समझा और लागू किया, दे रहे हैं।
औपचारिक स्तर – हाय, हैलो, नमस्ते, आप कैसे हैं आदि।
जानकारियां या सूचनाएं बांटने का स्तर – कोई भी ऐसी बात जो आपके दिमाग में आती है या किसी कारणवश आपको याद आती है, उसे कहना परन्तु बिना अपनी राय उसमें जोड़े।
विचार या राय बांटने का स्तर – आपके द्वारा दी जा रही जानकारी या सूचना में अपनी राय जोड़ देना जिससे वह जानकारी व्यक्तिगत बन जाती है। विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रकट करना, सलाह देना, समालोचना करना और किसी समस्या के संभावित समाधान सुझाना।
भावनाएं बांटने का स्तर – स्पष्ट शब्दों में यह बताना कि आप किस दौर से गुजर रहे हैं परंतु बिना अपने जीवनसाथी पर कोई आरोप लगाए। दिल की गहराई से बात करना, विशिष्ट घटनाओं व संदर्भों तक स्वयं को सीमित रखना, कोई निर्णय न सुनाना और दूसरे व्यक्ति पर दोष न लादना।
खुले मंच का स्तर – यह वह स्थान है जिसकी नींव आपसी विश्वास पर रखी जाती है, जो आजीवन प्रतिबद्धता के सीमेण्ट से जुड़ा होता है और जिसकी फिजा में घुली होती है निशर्त प्रेम की खुशबू। यह वह स्थान है जहां जोखिम उठाए जाते हैं, रहस्यों को हौले-हौले खोला जाता है और दो अजनबी एक दूसरे से जुड़ जाते हैं! हमने तय किया कि हम इसका प्रयोग करेंगे और हम धीरे-धीरे आपसी विश्वास और सत्य की सीढ़ियां चढने लगे।
पत्नी : शुरुआत में आखिरी दो स्तरों का संवाद करने में बहुत समस्याएं पेश आईं। एक तो मैं यह समझ ही नहीं पाती थी कि अपनी भावनाओं को किन शब्दों में व्यक्त करूं। दूसरे, अपने दिल की हर बात दूसरे के साथ बांटने का विचार डरावना और घबराहट भरा था। क्या होगा यदि मार्का आशंकाएं मेरे हर विचार पर छा जाती थीं और मेरे अंदर से एक आवाज सी आती थी कि मैं अपने रहस्यों को बांटने की मूर्खता न करूं। जब मैंने हिम्मत कर सब कुछ बांटना शुरू किया तो मेरा सामना मानो जंगल की आग से हुआ। जब उसने मुझे उसके रहस्य बताए तो मैं अवाक रह गई!
पति : खुले मंच का स्तर सिद्धांत के रूप में तो बहुत अच्छा मालूम पड़ता है परंतु व्यवहार में बहुत कठिन है। बल्कि शायद डरावना है। उसके रहस्य सुनना और मेरे रहस्य उसके साथ बांटना इतना कठिन था। हम दोनों अपना-अपना बचाव करते थे। एक दूसरे से अपनी तुलना करते थे। मानसिक क्लेश भोगते थे और हमारी जीवनपर्यन्त प्रतिबद्धता बार-बार कसौटी पर कसी जाती थी। एक बार तो मैं झुंझलाकर गुस्से से कह बैठा कि मैंने यह यात्रा शुरू ही क्यों की। पराजय के इन क्षणों में हमें अचानक खुले मंच के स्तर की परिभाषा याद हो आई। यह वह मंच है जिसकी नींव आपसी विश्वास पर रखी जाती है, जो आजीवन प्रतिबद्धता के सीमेण्ट से जुड़ा होता है और जिसकी फिजा में घुली होती है निशर्त प्रेम की खुशबू। यह वह स्थान है जहां जोखिम उठाए जाते हैं। गुप्त बातों को, रहस्यों को हौले-हौले खोला जाता है और दो अजनबी एक दूसरे से जुड़ जाते हैं!
जब हमने इस प्रश्न पर गहराई से विचार किया तो हम दोनों को यह समझ में आ गया कि आपसी विश्वास आजीवन प्रतिबद्धता और निशर्त प्रेम ही असली कुंजियां हैं और इन्हें बनाए रखने का एकमात्र तरीका है प्रार्थना। मैंने यह भी पाया कि जब हम एक दूसरे से जुडऩे के लिए कोई वार्तालाप करते होते थे तब एक कागज पर स्कैच बनाने या लिखने से बहुत मदद मिलती थी। कहने की जरूरत नहीं कि बोले गए शब्दों की गलत व्याख्या की जा सकती है और उन्हें हम जल्दी ही भुला भी देते हैं।
पत्नी : जब हम प्रार्थना करने लगे और आपसी विश्वास, आजीवन प्रतिबद्धता और निशर्त प्रेम को हमने अपने व्यावाहिक जीवन की नींव बना लिया, तब चमत्कारिक चीजें होने लगीं। जल्दी ही हमारे वार्तालापों में गहराई आ गई और यदि हम एक दूसरे को कोई चोट पहुंचाते भी थे तो उसके साथ ही हम स्वयं में बदलाव लाने का पक्का निर्णय भी करते थे। पेपर और पेन के इस्तेमाल से हम हमारे विचारों की श्रृंखला का एक तरह से रिकार्ड रख सके और इसने हमें सही रास्ते से भटकने नहीं दिया।
ऐसा नहीं है कि हमारा हर वार्तालाप खुले मंच वाले स्तर का होता है। परंतु हम महीने में कम से कम एक बार सच तक पहुंचने के लिए गहन वार्तालाप करने का समय जरूर निकालते हैं। इस वार्तालाप के पहले प्रार्थना करने से हमें बहुत मदद मिलती है, क्योंकि जब हम बातचीत शुरू करते हैं उसके पहले हम ईश्वर से अपनी उन गलतियों के लिए माफी मांग चुके होते हैं, जो हमने जानते-बूझते कीं या अनजाने में, सबके सामने की या छुपकर शब्दों से की या विचारों से, कोई काम करके की या कोई काम न करके। यह नई खोजों, प्रेम, क्षमाशीलता और दूसरे को स्वीकार करने की यात्रा है। यह वह यात्रा है जो दो अनूठे इंसानों को आपसी समझ पर आधारित एक ऐसे रिश्ते से जोड़ती है जिसका नाम विवाह है।
यह लेख शहरी-पारिवारिक समस्याओं पर केंद्रित फेमिली मंत्र पत्रिका, (www.familymantra.org), से अनुमति प्राप्त कर लिया गया है।
(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)