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शिक्षा, साहित्य और मीडिया पर विचार

पिछले दिनों पटना में आयोजित 'अर्जक संघ' के सामाजिक सम्मेलन में शिक्षा, साहित्य और मीडिया की भूमिका पर विचार गोष्ठी हुई। मुझे कई धार्मिक-सामाजिक सम्मेलनों को देखने का मौका मिला है पर पिछड़े वर्ग व ओबीसी के मिशन और मुद्दों पर आधरित इतना बड़ा समारोह मैं पहली बार देख रहा था

पिछले दिनों 9 और 10 मई को पटना में आयोजित ‘अर्जक संघ’ के सामाजिक सम्मेलन में शिक्षा, साहित्य और मीडिया की भूमिका पर विचार गोष्ठी हुई। मुझे कई धार्मिक-सामाजिक सम्मेलनों को देखने का मौका मिला है पर पिछड़े वर्ग व ओबीसी के मिशन और मुद्दों पर आधरित इतना बड़ा समारोह मैं पहली बार देख रहा था। पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के स्टॉल भी लगभग हर सम्मेलन में रहते हैं पर यहाँ बहुजन साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं की भरमार थी और उसी अनुपात में बिक्री भी- साहित्य के पाठ और पाठकों की चिंता को झुठलाते हुए।

Arjak1_nजब सत्र शुरू हुआ, तो सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। सब किसान, मजदूर और आमजन पर सजग, सतर्क और जिज्ञासु। मंच पर विद्वानों के अतिरिक्त कुछ पत्रकार, समाजसेवी, शिक्षक, कर्मचारी और पधाधिकारी भी। वहां स्वतन्त्राता, समानता और भाईचारे के दावे वाले देश में दो तरह की शिक्षा, दो तरह के साहित्य और दो तरह के मीडिया पर न केवल चिन्ता व्यक्त की गई और देश के नवनिर्माण में उनकी भूमिका पर भी बात हुईण् वक्ताओं के अनुसार बहुजनों को देशी और दुरूहता के नाम पर अँग्रेजी से दूर रखा गया जबकि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और टेक्नॉलोजी का ज्ञान अँग्रेजी के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने अँग्रेजी सहित संस्कृत भाषा के ज्ञान की भी आवश्यकता बतायी थी। अँग्रेजी ज्ञान-विज्ञान को समझने और दुनिया में आगे बढऩे के लिए और संस्कृत प्राचीन साहित्य पढ़कर उसके अंधविश्‍वास, मिथक और व्यर्थता से मुक्ति पाने के लिए। संसार की तमाम लिपियों की तरह भारत में भी लिपियाँ बहुजन समाज की देन है। देवनागरी लिपि ब्राह्मी से निकली है और ब्राह्मी का सबसे प्राचीन संस्करण अशोक के शिलालेखों में ही उपलब्ध है। इसलिए हमें देवनागरी और उसकी भाषाओं पर भी गर्व है पर उनका उपयोग हमें बहुजन-पाठ के तौर पर करना चाहिए।

बामसेफ से आये उद्यानचन्द्र राय और इन पंक्तियों के लेखक ने बतौर आरम्भिक वक्ता अंग्रेजी शिक्षा की आवश्यकता पर बल देने के अलावा मीडिया पर बात करते हुए कहा कि श्बहुजन समाज के लिए यह संतोष की बात है कि उसने ‘फॉरवर्ड प्रेस’ के रूप में एक वैकल्पिक प्रिंट मीडिया पैदा कर लिया है, जो एक ही कवर में हिन्दी और अँग्रेजी दोनों भाषाओं में छपती है। एक ओर हिन्दी के आलेख और दूसरी ओर उसके अँग्रेजी अनुवाद। इस बाईलिंगुअल मासिक पत्रिका ने विगत तीन-चार वर्षों में ही धूम मचा दी है। इसने न केवल बहुजन समाज में क्रांति पैदा की है बल्कि विरोधी विचारधाराओं को भी प्रभावित किया है। इस सम्मेलन के स्टॉलों पर भी उसके अद्यतन अंक देखे जा सकते हैं।

वक्ताओं ने कहा कि यदि जातियाँ नहीं टूटी, जिसकी संभावना बहुत कम है, तो बहुजन समाज को इस देश के हर क्षेत्र में अपनी विरासत और पहचान की तलाश करनी होगी। दलितों ने अपने इतिहास और विरासत की पहचान कर ली है। पिछड़े वर्ग की जातियों की विरासत सर्वाधिक है, जिसकी पहचान किया जाना अभी बाकी है। इसलिए ब्राह्मणवाद दलितों से अधिक पिछड़ों को ही अपना मोहरा बना रहा है ताकि उसकी पोल न खुल जाये। इसके लिए पिछड़े समाज को आगे आने की जरूरत है और ब्राह्मणवाद को गाली देने के बदले अपने अन्दर छिपे ब्राह्मणवाद को पहचानने और उसे निकाल बाहर करने की जरूरत है।

फेडरेशन आफ इंडियन रेशनलिस्टस एसोशियशन के महासचिव बलविंदर सिंह बरनाला ने पंजाब और केरल के उदाहरण से देश में बहुजनों की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्रांति को रेखांकित किया।

पूर्व जज आद्याशरण चौधरी ने शिक्षा को संवत्र्ती सूची से हटाकर केन्द्रीय सूची में लाने की बात कही। उच्च न्यायालय की अधिवक्ता और अम्बेडकर मिशन की डॉ. माला दास ने न्यायपालिका में बहुजनों की कम भागीदारी और उनके साथ हो रहे भेदभाव पर चिंता व्यक्त की। पत्रकार संजय श्याम ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार मीडिया बहुजनों का नोटिस नहीं लेता। इसके लिए उन्होंने वैकल्पिक मीडिया की आवश्यकता पर जोर दिया। ‘भारत शोषित समाज’ के चन्द्रशेखर कुमार ने समान विचारधाराओं वाले संगठनों द्वारा साझा आन्दोलन चलाने की आवश्यकता पर बल दिया। अर्जक संघ के संस्थापक रामस्वरूप वर्मा के करीबी रहे रामचद्र कटियार ने अर्जक संघ के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।

अपने अध्यक्षीय भाषण में ‘अर्जक संघ’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.आर. सिंह ने 1968 में स्थापित इस संगठन के मिशन और विजन पर विस्तार से प्रकाश डाला। अन्य वक्ताओं में अधिवक्ता रविभूषण, प्रो. अलखदेव प्रसाद अचल, संजय मौर्या, रामावती अर्जक आदि प्रमुख थे। इस अवसर पर पिछड़ों की सांस्कृतिक संस्था ‘सृजन’ रोहतास के बैनर तले बिहार और यूपी के कलाकारों हरिश्चन्द्र यादव, हरिवंश आजाद, बृजमोहन आदि ने अपने उद्देश्यपरक और प्रेरक गीत-संगीत से वातावरण निर्माण में अहम भूमिका अदा की।

इस दो-दिवसीय सम्मेलन का कुशल संयोजन और संचालन राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. मनोज कुमार ने किया।

फारवर्ड प्रेस के जून, 2015 अंक में प्रकाशित

 

लेखक के बारे में

हरिनारायण ठाकुर

एम.एस. कॉलेज, मोतिहारी (बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ्फ़रपुर, बिहार) के अवकाश प्राप्त प्राचार्य हरिनारायण ठाकुर सुविख्यात साहित्य समालोचक हैं। इनकी प्रकाशित कृतियों में ‘बिहार में अति पिछड़ा वर्ग आंदोलन’ (2007, हिमाचल प्रेस, पटना), ‘हिंदी की दलित कहानियां’ (2008, समीक्षा प्रकाशन, मुज़फ्फरपुर-दिल्ली), ‘दलित साहित्य का समाजशास्त्र’ (2009, भारतीय ज्ञानपीठ; पांचवां पेपरबैक संस्करण 2022, वाणी प्रकाशन समूह; देश के सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में), ‘भारत में पिछड़ा वर्ग आंदोलन और परिवर्तन का नया समाजशास्त्र’ (2009, अद्यतन-2022, कई संस्करण, ज्ञान बुक्स, नयी दिल्ली), ‘भारतीय साहित्य का शूद्र-पाठ (शुद्ध-पाठ)’ (2017, समीक्षा प्रकाशन, मुज़फ्फरपुर-दिल्ली; दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के पाठ्यक्रम में) शामिल हैं। वहीं आत्मकथा ‘आकुल उड़ान’ वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशनाधीन है।

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