“किसे कहानियां पसंद हैं?” सभी ने अपने हाथ उठा दिए। “’किसे कहानियों से नफरत है?’” एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा। नहीं, नहीं रुको। वो अलमारी के पास, कोने में खड़ा लड़का, जो अपनी उम्र से ज्यादा बड़ा दिख रहा था; उसने धीरे-धीरे अपना दाहिना हाथ उठाया। मैं उसके पास गया और उससे पूछा कि क्या वह बताना चाहेगा कि उसे कहानियों से नफरत क्यों हैं। लड़के ने अपनी छोटी-छोटी आँखों से मेरी तरफ देखा और फिर बोला – ‘असल में मैं सब कहानियों से नफरत नहीं करता – केवल उनसे जो उबाऊ ढंग से सुनायी जातीं हैं और उनसे भी, जो मेरी गलतियाँ बताने के लिए सुनाईं जातीं हैं…और…एक मिनट…उनसे भी, जिनमें मेरी कोई भूमिका नहीं होती। फिर मैंने कहा, “’मैं जानता हूँ कि तुम्हें अच्छी कहानियां बहुत पसंद हैं और शायद तुम्हारे पास सुनाने के लिए भी बहुत सी कहानियां हैं। क्यों, ठीक है ना? लड़के के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी और उसने सर हिलाकर मेरी बात से सहमती प्रकट की। थोड़ी दूर बैठा एक दूसरा लड़का बीच में बोला, “’अंकल, नारायण के पास हमेशा सुनाने के लिए कोई न कोई कहानी होती है!” फिर एक के बाद एक कई लड़कों ने इस बड़े दिखने वाले छोटे लड़के के बारे में कही गयी बात का समर्थन किया। अगर आप उस समय मेरा चेहरा देखते तो पाते कि मैं कान से कान तक मुस्कुरा रहा हूँ। यह घटनाक्रम है बच्चों के एक समर कैंप का, जहाँ मुझे उन्हें कहानी सुनाने की कला सिखाने के लिए आमंत्रित किया गया था।
हर परिवार को एक निश्चित समय निर्धारित करना चाहिए, जिसमें अभिभावक और बच्चे एक साथ बैठकर कुछ मजेदार और कुछ गंभीर बातें करें (और पूरे परिवार के एक साथ बैठकर टीवी देखने से काम नहीं चलेगा)। आज की दुनिया में बच्चों के लिए कहानियों का अर्थ है टेलीविजन, सिनेमाघर, यूट्यूब आदि पर संगीत से सराबोर फिल्में, वीडियो या सीरियल देखना। इसका नतीजा यह हुआ है कि जब कोई कहानी उन्हें पढ़ कर या वैसे ही सुनायी जाती है तो वे उस पर ध्यान ही नहीं देते। बच्चों को रंगीन परदे के आकर्षण से मुक्त करने और उन्हें सुनना सिखाने का सबसे अच्छा उपाय है परिवार की महफिलों को दिलचस्प बनाना।
मेरी दृष्टि में इसका सबसे अच्छा तरीका है कहानियां सुनने-सुनाने के लिए समय निकालना। जब हम कोई कहानी पढ़ते या सुनाते हैं-चाहे वह सीधी-सच्ची हो या जटिल – हम चारों ओर से हमें घेरे मीडिया से प्रतियोगिता कर रहे होते हैं और इस मुकाबले को जीतने का एक ही तरीका है – ऐसी कहानियां सुनाना जिनमें शुरू से आखिर तक बच्चों की भागीदारी हो। दूसरे शब्दों में, हमें हमारे बच्चों को कहानियां सुनाने की कला सीखनी होगी। और इसमें शामिल हैं कहानियां सुनाने से लेकर उनको अभिनीत करने तक की पूरी प्रक्रिया। इसके तीन कदम हैं।
पहला कदम : जब हम कोई कहानी पढ़ें या सुनाएं तो बच्चों को उस पर बातचीत करने का मौका दें। बच्चों को उनका पसंदीदा चरित्र चुनने दें (इस पर कुछ नियंत्रण के लिए आप मुख्य चरित्र को अपने लिए चुन सकते हैं)। उन्हें यह भी चुनने दें कि वे किसी प्रकार का चरित्र चुनना चाहेंगे-जानवर, वस्तु, व्यक्ति, परियां, राक्षस, अलौकिक शक्तियों वाला नायक, फिल्मी किरदार या बाईबल के पात्र। उन्हें यह भी चुनने दें कि कहानी के पात्र कहां हैं – किसी जंगल में, शहर में या गांव में। कहानी से उन्हें क्या शिक्षा मिली, इसका भी निर्धारण उन्हें करने दें (इसके लिए शुरूआत में कुछ बातचीत करनी होगी, ताकि उन्हें बताया जा सके कि कहानी में कौन-कौन सी शिक्षाएं अंतर्निहित हैं)। बच्चों को पात्रों के चित्र बनाकर उनमें रंग भरने दें। जिस स्थान पर चरित्र हैं, उसका स्केच बनाने दें। अगर वे कोई वाद्य बजाना सीख रहे हैं तो उन्हें उसे बजाने दें। पृष्ठभूमि की आवाजों की कल्पना करने दें, किसी पात्र का अभिनय करने दें और ऐसी लाइनों का सृजन करने दें जो कि कहानी सुनाने के दौरान उपयुक्त मौकों पर जोर से दोहराई जा सकें। ये कुछ तरीके हैं जिन्हें आप अपना सकते हैं। आप स्वयं भी कथावाचन की प्रक्रिया को दिलचस्प बनाने के लिए कोई उपाय सोच सकते हैं। इससे न केवल कहानी रंगीन और दिलचस्प बन जाएगी बल्कि यह आपके लिए भी एक अच्छा अनुभव होगा।
दूसरा कदम : बच्चों को यह मौका दें कि वे कहानी को आगे बढ़ा सकें। सब लोग गोला बनाकर बैठ जाएं और एक व्यक्ति, जो कि कहानी का निदेशक है, कहानी सुनाना शुरू करे (उसे कहानी की दिशा, उसकी सीख, उसके संदेश इत्यादि के बारे में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए)। शुरूआत में बच्चों से यह पूछा जा सकता है कि कहानी में आगे क्या होगा। इसके लिए उन्हें कोई समय-सीमा (उदाहरणार्थ ३० सैकंड) दी जा सकती है। हां, आप इस संबंध में सीमाओं का निर्धारण कर सकते हैं ताकि कहानी अपनी राह से भटक न जाए। बच्चे कहानी के पात्रों का अभिनय भी कर सकते हैं। इस सत्र में शामिल सभी लोगों को एक-एक कर अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए। कहानी तेजी से आगे बढ़े या धीरे-धीरे, यह आप तय कर सकते हैं और जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाएगी, यह प्रक्रिया और रचनात्मक होती जाएगी। गोले में बैठा अगला बच्चा या व्यक्ति कहानी में कोई वाक्य, गाना, या आवाज जोड़ सकता है। याद रखिए. कहानी के निदेशक बतौर कहानी को खत्म करना आपका विशेषाधिकार है। इसके बाद सभी भागीदारों को शाबाशी दें या कहानी-भागीदारी चार्ट में उन्हें स्टार दें। हमेशा यह सुनिश्चित करें कि इस सत्र को एक निश्चित समय के अन्दर समाप्त किया जाए। अगर कहानी खत्म नहीं हो पाती है तो उसे अगले दिन के लिए छोड़ दें। अगले दिन कहानी में तब तक घटी घटनाओं को संक्षिप्त में बताएं और फिर आगे बढ़ें।
तीसरा कदम : बच्चों को कथावाचन की इस प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी करने दें। हमारी तरह बच्चों को भी उनकी जिंदगी की घटनाएं याद रहती हैं और जब उन्हें उन घटनाओं को किन्हीं मूल्यों से जोड़ने का मौका दिया जाता है, तो उन्हें एक तरह से अपना पथप्रदर्शक मिल जाता है। बच्चों को उनके जीवन की घटनाओं और मूल्यों के बीच के संबंध को स्वयं खोजने दें और उसे उन पर लादने की कोशिश न करें। यह कैसे किया जा सकता है? इसके लिए बच्चों को कहानी सुनाने के दौरान ही उसे आगे बढ़ाने और अभिनीत करने का मौका दें। अभिभावक बतौर हमें न सिर्फ कहानियों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सुनना-सुनाना है वरन् उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर भी देना है। बच्चों की टिप्पणियों पर ध्यान देना है और उनके सामने कहानी का चित्र खींचते चलना है। जब एक बार हम किसी कहानी का मूल स्वर समझ लेते हैं तो फिर हम उसमें बदलाव भी ला सकते हैं। इसे कथा-शिल्प कहा जाता है। इसका आधार यह है: हर कहानी की एक शुरूआत होनी चाहिए, एक मध्य और एक अंत। और कहानी का किसी नैतिक मूल्य से सीधा जुड़ाव होना चाहिए (अगर आप कथा-शिल्प के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो मैं आपको कहानी सुनाने की कला पर किसी अच्छी पुस्तक को पढ़ने की सलाह दूंगा)। कथा-शिल्प दरअसल एक ऐसी प्रक्रिया है जो सहभागिता के बगैर अधूरी है। इसमें बच्चों की पूरी भागीदारी होनी चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि कहानी को इस दिशा में ले जाना क्यों बेहतर है और कहानी को अभिनीत करने का यह अनुक्रम क्यों बेहतर है। कथा गढ़ते समय समय यह ध्यान रखिए कि आपको बहुत गंभीर नहीं रहना है ताकि बच्चे उत्साह और खुशी से इस प्रक्रिया में भाग लें। एक बार कहानी की दिशा निर्धारित हो जाए, उसके बाद उसे अभिनीत करने में बच्चे की मदद करें, उसे शब्दों और वाक्यों को बदलने और अपने हावभाव और भावनाओं को कहानी में जोड़ने की स्वतंत्रता दें। इस तरह कथावाचन सत्र मजेदार सांझा अनुभव बन जायेंगे। इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरी करने का हर सप्ताहांत में उत्सव मनाएं।
याद रखिए, कहानियां हमारे जीवन का तानाबाना हैं। अगर बच्चों को दिलचस्प और अच्छे ढंग से कहानी सुनाना आ जाएगा तो वे दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना, अपनी बात को ठीक से लोगों के सामने रखना और मिलजुल कर काम करना सीख जाएंगे। तो इसलिए कहानी सुनने-सुनाने का समय निर्धारित कीजिए और अपने बच्चों के साथ मज़ा मौज़ करने का आनंद लीजिए।
यह लेख ”फैमिली मंत्र” से अनुमति प्राप्त कर प्रकाशित किया जा रहा है। यह पत्रिका शहरी परिवारों की समस्याओं पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य परिवारों को मजबूती देना और उन्हें पुन: एक करना है।
फारवर्ड प्रेस के अगस्त, 2015 अंक में प्रकाशित