समय बेशक बहुत कीमती है परंतु स्वस्थ रिश्ते बनाने का कोई ऐसा शार्टकट नहीं है, जिसमें हमें समय खर्च न करना पड़े। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने के लाभ और उसका महत्व हमें समझना ही होगा।
परिवारों को परामर्श देने और वैवाहिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए काम करने वाले एक संगठन के निदेशक बतौर मैं पूरी दुनिया में वैवाहिक संबंधों और अभिभावकत्व पर केंद्रित सेमीनार इत्यादि करता रहता हूं। विडंबना यह है कि इस कारण मैं अपनी पत्नी और तीन छोटे लड़कों के साथ समय नहीं बिता पाता। कुछ साल पहले मैंने और मेरी पत्नी ने नए साल पर यह संकल्प लिया कि हम अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताएंगे। यह तब हुआ जब मेरी पत्नी ने विनम्र परंतु दृढ़ शब्दों में मुझसे कहा कि मेरी जिम्मेदारी मेरे घर से शुरू होती है। उसने कहा, ”मैंने तुम्हें कई मंचों से यह बोलते सुना है कि तुम अधिकांश समय अपने बच्चों से दूर रहते हो और इस कारण अपराधबोध से ग्रस्त रहते हो। अपराधबोध त्याग दो और तुम्हारे विचार में जो होना चाहिए, वह करना शुरू कर दो।’’ फिर हमने यह तय किया कि हर सोमवार की शाम हमारा पूरा परिवार एक साथ बिताएगा।
मुझे भी यह एहसास हुआ कि मैं नहीं चाहता कि बड़े होने पर मेरे बच्चे यह कहें कि मैं दूसरों के लिए अच्छा शिक्षक तो था परंतु अपने बच्चों का अच्छा पिता नहीं था। मैं अपने बच्चों से कतई यह सुनना नहीं चाहूंगा। ईश्वर ने बच्चे उनके माता-पिता को दिए हैं, उनके स्कूलों, दादा-दादियों या नौकरानियों को नहीं। मेरे बच्चों का पालन-पोषण करना मेरी जिम्मेदारी है, जब भी उन्हें मेरी ज़रूरत पड़े, तब मुझे उनके साथ खड़ा होना चाहिए और यह मेरी प्राथमिकता होनी चाहिए।
अपने बच्चों के साथ गुणात्मक समय बिताने के लिए कई महिलाएं अपनी नौकरियां छोड़ देती हैं। मैंने कई ऐसे परिवार देखे हैं जिनमें पति या पत्नी में से कोई एक पूर्णकालिक काम करता है और दूसरा अंशकालिक नौकरी ढूंढ लेता है ताकि वे बच्चों को अधिक समय दे सकें। मैं कई ऐसे पिताओं को जानता हूं जिन्होंने ऐसी नौकरियां चुनीं, जिनमें उन्हें अपेक्षाकृत कम काम करना पड़ता था क्योंकि उनकी पत्नियां ऐसी पूर्णकालिक नौकरियां कर रही थीं, जिनमें उन्हें बहुत व्यस्त रहना पड़ता था और वे बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाती थीं।
मेरे संस्थान को तो दूसरा निदेशक मिल जाएगा परंतु मेरी पत्नी को दूसरा पति और मेरे बच्चों को दूसरा पिता नहीं मिल सकता। मेरे बच्चों को सुख और आनंद से मात्र इस कारण वंचित नहीं होना चाहिए कि मैं अपने कार्यालय में उच्च पद पर हूं। पूरे परिवार के साथ कहीं बाहर जाकर या घर पर ही समय बिताना तभी संभव होगा जब हम इसे अपनी प्राथमिकता बनाएं और अपने साप्ताहिक कार्यक्रम में उसे जगह दें। अगर आप यह मानकर चलेंगे कि अपने परिवार के साथ समय बिताना एक ऐसा काम है जो आप कर पाएं तो ठीक और न कर पाएं तो ठीक तो आप पिता या मां या पत्नी या पति बतौर अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं करेंगे।
कुछ समय पहले, एक सज्जन अपने किशोरवय के लड़के के साथ मेरे पास आए और मुझसे कहा कि उनका लड़का चिड़चिड़ा हो गया है, वह किसी की सुनता नहीं है और अपना समय केवल अपने मित्रों या ऑनलाईन गेम खेलने में बिताता है। इससे उनके घर का वातावरण खराब हो रहा है। वे चाहते थे कि मैं उनके लड़के की काउंसिलिंग करूं ताकि उसके व्यवहार में बदलाव आए।
मैंने उस लड़के से अकेले में बातचीत की। उसने मुझे खुलकर सारी बातें बताईं। उसने कहा कि वह इसलिए परेशान रहता है क्योंकि उसके पिता उसके साथ समय नहीं बिताते। वे मध्यपूर्व के एक देश में काम करते हैं और जब छुट्टियों पर घर आते हैं तब भी वे अपना अधिकांश समय अपने मित्रों या अपने माता-पिता के साथ बिताते हैं। उसने बताया कि एक बार उसके पिता उससे इतने नाराज़ हो गए कि अपनी छुट्टी के बीच में ही नौकरी पर वापस चले गए और उसके बाद आठ महीने तक उन्होंने उससे फोन पर भी बातचीत नहीं की। इससे वह बहुत अवसादग्रस्त हो गया और अपने जीवन के खालीपन को भरने के लिए उसने अधिक से अधिक समय टीवी देखने और ऑनलाईन गेम खेलने में बिताना शुरू कर दिया। मैंने उससे कहा कि वह मुझे लिखकर बताए कि अपने घरवालों से वह क्या चाहता है। और मुझे यह पता चला कि उसकी इच्छा इतनी भर है कि उसके पिता उसके व परिवार के साथ समय बिताएं। कुल मिलाकर, वह केवल यह चाहता था कि उसका परिवार एक सामान्य परिवार हो।
जब मैंने उस लड़के के पिता को बताया कि उनके लड़के ने क्या लिखा है तो उन्हें बहुत धक्का लगा। उनका लड़का सिर्फ इतना चाहता था कि उसके पिता उससे स्नेह करें और उसके साथ वक्त बिताएं। और फिर, उस पिता ने, जो अपने ‘विद्रोही’ लड़के से माफी मांगी-उस लड़के से जिसके बारे में वे पूरी तरह ‘नाउम्मीद’ हो चुके थे-और यह संकल्प लिया कि वे नियमित रूप से अपने लड़के और लड़की के साथ समय बिताएंगे।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मेरी पत्नी ने मुझे समय रहते चेता दिया और अब मेरा छोटा लड़का, जो दस बरस का है, बहुत बेसब्री से सोमवार की शाम का इंतजार करता है। वह कब जब यह भी पूछता है कि हर दिन सोमवार क्यों नहीं होता। क्या आपकी पत्नी या पति और आपके बच्चे उस दिन बहुत खुश होते हैं जब वे घर आने पर पाते हैं कि आप घर पर ही हैं? क्या आपके बच्चे घर आना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि घर उनके लिए एक ऐसा स्थान है जहां उन्हें आनंद, सुख और संतोष मिलता है? हमें अपने पारिवारिक जीवन में हंसी मज़ाक और मौज़-मस्ती को जगह देनी ही होगी।
जब मैं यह लेख लिख रहा था तब मेरे मन में विचार आया कि क्यों न मैं अपने सिद्धांत को आज़माकर देखूं और यह पता लगाने की कोशिश करूं कि मेरे बच्चे उसके बारे में क्या सोचते हैं। सन् 2014 के आखिरी महीने में मैंने अपने बच्चों से पूछा कि 2015 में मैं ऐसा क्या करूं, जो मैं अब तक नहीं करता आ रहा हूं। मैंने यह बात अपने तीनों बच्चों से अलग-अलग पूछी। मेरे सबसे छोटे लड़के ने तो तुरंत यह जवाब दिया कि वो चाहता है कि हर सोमवार को परिवार के साथ समय बिताने का हमारा कार्यक्रम आगे भी ठीक से चलता रहे। बीच में हमारा यह कार्यक्रम कुछ गड़बड़ा गया था क्योंकि मुझे लंबे समय तक बाहर रहना पड़ा और इस बीच हमने अपना मकान भी बदला। इसलिए उसकी इच्छा थी कि आगे हमारे इस कार्यक्रम में कोई बाधा न आए। मेरे दूसरे लड़के अंकित ने कहा कि ”मुझे बहुत मज़ा आता है क्योंकि मैं अब यह जान गया हूं कि मेरे परिवार में किसे क्या करना आता है और क्या नहीं आता। फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा, ”पापा, तुम तो ठीक से गेंद भी नहीं फेंक पाते’’।
तो आप अपने घर को इस मामले में दस में से कितने नंबर देना चाहेंगे? क्या वह एक ऐसी जगह है जहां आना आपको रोमांचित और प्रसन्न कर देता है? क्या आप एक-दूसरे के साथ समय बिताने के लिए लालायित रहते हैं? जो आप आज कर सकते हैं वह यह है कि अपने बच्चों के साथ कुछ समय बिताइए और अपने घर को आनंद से भर दीजिए।
यह लेख ”फैमिली मंत्र’’(www.familymantra.org) से अनुमति प्राप्त कर प्रकाशित किया जा रहा है। यह पत्रिका शहरी परिवारों की समस्याओं पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य परिवारों को मजबूती देना और उन्हें पुन: एक करना है।