कुएं भर जाते हैं, पर्वतों में झरने फूट पड़ते हैं, जंगल घने हो जाते हैं, धरती शस्य श्यामला हो जाती है, धान के फसल लहलहाने लगते हैं। सर्वत्र हरित छवि की छटा छटने लगती है। वर्षा और शरद ऋतु का मिलन होता है – भाद्रपद का महीना। इस समय पूरे छोटानागपुर (झारखण्ड) क्षेत्र में उल्लास का माहौल होता है। यहां के आदिवासी समुदाय करम महोत्सव मनाने में जुट जाते हैं। करम त्यौहार कृषि और प्रकृति से जुड़ा है, जिसमें फसलों की अधिक पैदवार के लिए प्रकृति से अराधना की जाती है। करम, कर्म पर आधारित त्यौहार है, इसे भाई-बहन के निश्च्छल प्यार के रूप में भी उल्लिखित किया जाता है। यह प्रकृति के आदिम सम्मान का भी पर्व है। करम प्रकृति को बचाने, उसे समृद्ध करने और जिंदगी को प्रवाह देने वाला पर्व है। यह उत्सव भाद्रपद शुक्ल पक्ष के एकादशी से 15 दिनों तक मनाया जाता है।
इस दौरान करम वृक्ष के रूप में साल या केंदु की डालियां अखड़ा या आंगन में गाड़ कर अराधना की जाती है। उपवास रखा जाता है। मौसमी फूल-फल, चूड़ा-खीरा, चावल, दूध, जावा फूल (अंकुरित बीज) आदि चढ़ाए जाते हैं। फिर सभी लोग पहान के द्वारा करम कथा सुनते हैं। फिर अखड़ा में युवक-युवतियों द्वारा पारंपरिक रूप से करमगीत और नृत्य प्रस्तुत करते है। करम कथा और करम गीत कई अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन सभी में कर्म प्रधानता और प्रकृति संरक्षण के संदेश दिए गए हैं। पूजा के बाद करम वृक्ष को खेत में गाड़ दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि फसलों में कीड़े नहीं लगेंगे।
प्रस्तुत है इस त्योहार की कुछ झलकियां।
फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर, 2015 अंक में प्रकाशित