आज सुबह मैं बिना अपने मोबाइल के ही बाहर चली गई।आधे रास्ते जाकर ही मुझे इसका एहसास हुआ और मैं उसे लेने वापस नहीं गई। लेकिन मुझे लगता रहा कि मेरा कोई जरूरी हिस्सा, मानो जैसे शरीर का कोई अंग ही पीछे छूट गया है। हमें मानना ही पड़ेगा कि दुनिया भर में, मोबाइल फोन ने संचार माध्यमों में एक क्रांति ला दी है।
चार साल पहले जब मेरे बेटे ने अफ्रीका के दूर-दराज एक गाँव में जाकर गरीबों की सेवा करने का फैसला किया तो मुझे यह जानकर बहुत दु:ख हुआ कि उस क्षेत्र में फोन लाइनें नहीं थी और हम केवल डाक सेवा के द्वारा ही एक-दूसरे से संपर्क रख सकते थे। जिसका मतलब था कि हमें लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता था और शायद हमारे खत एक-दूसरे का रास्ता काटते जाते थे जैसा कि मेरे और मेरे पिता के खतों के साथ होता था जब 27 साल पहले मैं पहली बार विदेश गई। और फिर शुक्र है कि उसके गाँव में एक मोबाइल टावर लग गया और अब हम आपस में बातचीत कर सकते हैं —मैं उसकी आवाज, उसकी हँसी सुन सकती हूँ और जो कुछ उसके जीवन में हो रहा है उसे साथ के साथ साँझा कर सकती हूँ।
भारत में जहाँ खासतौर पर लैंडलाइन कनेक्शन लेने में बहुत लाल फीताशाही (और रिश्वतखोरी) होती है, जहाँ पेशगी देकर लंबा इंतजार करना होता है, मोबाइल फोन ने हर आम आदमी के लिए, चाहे वह शहर का हो या दूर-दराका के गाँव का, तात्कालिक संचार संभव बना दिया है।
लेकिन क्या इस छोटे से उपकरण में जिस पर इतना निर्भर हो गए हैं,सबकुछ अच्छा ही है या इसकी कोई कीमत भी चुकानी पड़ती है?
मोबाइल खतरा
कुछ दिनों पहले अमेरिका के एक अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोबाइल फोन इस्तेमाल और कैंसर के बीच संबंध पर लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी।
इकत्तीस मई को उसमें छपी एक रिपोर्ट में लिखा था: ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैनल का यह निष्कर्ष है कि सेलफोन ‘संभवत कारसिनोजेनिक ’(कैंसर का कारण बनने वाले) होते हैं। इससे यह लोकप्रिय उपकरण भी उन चुनिंदा ड्राईक़्लीनिंग रसायनों और कीटनाशकों की श्रेणी में आ जाता है जोमानव स्वास्थ्य के लिए संभावित खतरे हैं।
संगठन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के परिणाम विशेषज्ञों के उस छोटे लेकिन बढ़ते समूह की चिंताओं को बढ़ाते हैं जो सेलफोन से निकलने वाली निम्नस्तरीय विकिरणों के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करते हैं।’’
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलीफोर्निया के भौतिकशास्त्री और महामारीविज्ञानी तथा अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के नेशनल कैंसर एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य डॉ. जॉनाथन एम. सैमेट के नेतृत्व में 14 देशों के 31 वैज्ञानिकों ने कई मौजूदा अध्ययनों की समीक्षा की जो मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियाफ्रीक्वेंसी मैगनेटिक फील्ड्स के स्वास्थ्य प्रभावों पर केंद्रित थे। एक पत्रकार सम्मलेन में डॉ. सैमेट ने कहा कि मोबाइल फोनों को ‘‘संभवत:
कारसिनोजेनिक’’ के रूप में श्रेणीबद्ध करने का पैनल का फैसला मुख्य रूप से उस मेडिकल डाटा पर आधारित था जो दिखाता है कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों में एक दुर्लभ किस्म का मस्तिष्क का ट्यूमर,ग्लियोमा, होने का खतरा बढ़ जाता है। मोबाइल फोन और पैरोटिड के कैंसर तथा मोबाइल फोन और अकूस्टिक न्यूरोमा में भी संबंध देखा गया है। कान के पास एक लार ग्रंथि को पैरोटिड कहते हैं, जबकि अकूस्टिक न्यूरोमा वहाँ होताहै जहाँ कान दिमाग से जुड़ता है।
पिछले साल 13 देशों में इंटरफोन नाम के एक अध्ययन, जो मोबाइल फोन इस्तेमाल और ब्रेन ट्यूमर के बीच के संबंध विषय पर सबसे बड़ा और लंबा चला अध्ययन था, ने पाया कि जिन प्रतिभागियों में मोबाइल फोन इस्तेमाल का स्तर सबसे ऊँचा था, उनमें ग्लियोमा का खतरा 40 प्रतिशत अधिक था।(अगर इस बढ़े हुए खतरे की पुष्टि हो जाती है तो भी तुलनात्मक रूप सेग्लियोमा दुर्लभ होता है और व्यक्तिगत खतरा बहुत कम रहता है।)
अमेरिकन कैंसर सोसाइटी और द नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट समेत अधिकांश मुख्य मेडिकल संघों ने कहा है कि मोबाइल फोन और सेहत संबंधी मौजूदा डाटा आश्वस्त करने वाला है। सालों तक मोबाइल फोन के स्वास्थ्य प्रभावों पर जताए जा रहे सरोकारों को खारिज किया जाता रहा है क्योंकि उपकरणों से निकलने वाली रेडियो फीक्वेंसी विकिरणें सुसाध्य मानी जाती रही थीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन पैनल के फैसले के अनुसार मोबाइल फोनों को केवल कैटेगरी 2बी में ही श्रेणीबद्ध किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि वे संभवत: मनुष्यों के लिए कारसिनोजेनिक हैं। इसी श्रेणी में 240 अन्य पदार्थ भी आते हैं जैसे कि कीटनाशक डीडीटी, इंजन का धुआँ, सीसा और कई दूसरे औद्योगिक रसायन। इसी सूची में दो जाने-माने खाद्य पदार्थ भी हैं, आचारी सब्जी और कॉफी, और मोबाइल फोन उद्योग जगत ने इस ओर इशारा करने में कोई समय नहीं गँवाया।
उद्योग समूह सीटीआईए-द वायरलैस असोसिएशन के सार्वजनिक मामलोंके उपाध्यक्ष जॉन वाल्स ने एक वक्तव्य में कहा कि आईएआरसी द्वारा श्रेणीबद्ध करने का अर्थ यह नहीं कि मोबाइल फोन कैंसर का कारण बनते हैं।
इस साल अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ के शोध पर रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए द जरनल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन ने कहा है कि अगर मोबाइल फोन पर एक घंटे से भी कम समय तक बात की जाती है तो सिर का जो हिस्सा फोन एंटिनाके सबसे नकादीक आता है वहाँ दिमाग की सक्रियता बढ़ जाती है।शुरुआती और विस्तृत अध्ययनों में से एक, यह शोध लिखित रूप में बताता है कि मोबाइल फोन से आने वाले कमजोर रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नलों का दिमाग पर होने वाला प्रभाव मापा जा सकता है।
हालाँकि पैनल ने उपभोगताओ के लिए विशेष सिफारिशें नहीं की हैं, एक प्रतिनिधि ने इस बात कि ओर संकेत किया कि रेडियो फ्रीक्वेंसी से कुछ हद तक बचाव करने के लिए बातचीत के दौरान हैंड्स-फ्री हेडसेट या एसएमएस विकल्प हो सकते हैं।नॉन-आइयोनाइकिांग विकिरणों पर केंद्रित न्यूकालैटर माइक्रोवेवन्यूज के संपादक लुईस स्लेसिन ने एक ई-मेल में कहा कि विश्वस्वास्थ्य संगठन के कैंसर पैनल द्वारा चिंता जाहिर करने से मोबाइल फोन के स्वास्थ्य खतरों पर होने वाली बहस बदल सकती है।उन्होंने कहा ‘‘यह टेलिकॉम उद्योग जगत के लिए खतरे की घंटी है और अमेरिकी सरकार के लिए भी कि वे सेल फोन विकिरणों को गंभीरता से लें। … पहला कदम तो यह होना चाहिए कि बच्चों द्वारा सेल फोन का इस्तेमाल कम किया जाए।’’
हम क्या कर सकते हैं
उपर लिखी बातों को पढऩे के बाद हमारी क्या प्रतिक्रिया हो सकती है? यह शोध खुले तौर पर नहीं कह रहा कि मोबाइल फोन से कैंसर हो सकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि इससे कैंसर होने का खतरा बढ़ जरूर जाता है। चूंकि मोबाइल फोन का इस्तेमाल अभी भी बहुत हाल की घटना है, इतनी जल्दी किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचना संभव नहीं।
लेकिन मुख्य सरोकार बच्चों के प्रति होना चाहिए जो आज कल फोन इस्तेमाल करना शुरू कर रहे हैं और जिन्हें जीवन भर इसका‘‘जोखिम’’ झेलना होगा। अधिक से अधिक बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके मस्तिष्क तेजी से बढ़ रहे हैं और उनके कपाल भी पतले हैं। उन पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
वे लोग जो संभावित खतरों के प्रति चिंतित हैं उनके लिए एक साधारण हल है कि वह तार वाला या बेतार ब्लूटुथ हेडसेट इस्तेमाल करें। यह विकल्प सुविधाजनक तो नहीं है और कुछ आलोचकों ने ब्लूटुथ जैसे बेतार उपकरणों पर चिंता जताई है जिनके ट्रांसमिटर कान के अंदर लगाने की कारूरत पड़ती है।
इस बात का भी डर है कि चाहे मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का व्यक्तित खतरा कम है लेकिन दुनिया भर में तीन अरब मोबाइल फोन उपभोक्ता हैं, और छोटे से छोटा खतरा भी प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा बन सकता है।
लॉस एंजलीस के एक सर्जन डॉ. ब्लैक ने सीएनएन पर कहा,‘‘मेरी चिंता यह है कि सेल फोनों का बहुत ही विस्तृत इस्तेमाल होता है और सबसे बुरी बात यह होगी कि हमें दस साल बाद निश्चित अध्ययनों का पता चलेगा और तभी हमें उनके आपसी संबंधों की जानकारी होगी।’’
बात करने की बजाय शायद (एसएमएस) अधिक सुरक्षित — और सस्ती—होगी,बशर्ते आप मैसेज भेजते हुए अपने शरीर पर टिका कर न रखें! डू यू गेट दे मैसेज?
(फारवर्ड प्रेस के जुलाई , 2011 अंक में प्रकाशित )