(13 जून 2016 को फारवर्ड प्रेस को महेश चंद्र गुरू का एक ईमेल मिला। उन्होंने लिखा, ‘‘हाल में प्रोफेसर कांचा आयलैया पर हुए हमले पर मेरी प्रतिक्रिया संलग्न है। इसका प्राथमिक उद्देश्य भारत की प्रगतिशील व धर्मनिरपेक्ष शक्तियों से मेरी एकजुटता को अभिव्यक्त करना है’’। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं होगा कि तीन दिन बाद ही वे ‘‘धार्मिक भावनाओं को आहत करने’’ के ‘अपराध’ में सींखचों के पीछे होंगे। प्रोफेसर आयलैया पर भी यही ‘अपराध’ करने का आरोप लगाया गया था। प्रोफेसर महेश चंद्र गुरू अपने इस लेख में कांचा आयलैया का ज़ोरदार बचाव कर रहे हैं – संपादक)
हिंदू धर्म की आलोचना की ही नहीं जा सकती, यह मानना गलत है। भारत, हिंदू धर्म से बड़ा है। धर्म केवल जीने के तरीके का नाम है। मनुष्यों को परंपराओं, प्रथाओं और अंधविश्वासों के घेरे में अपने को बंद नहीं होने देना चाहिए। भारत में सांप्रदायिक शक्तियां ऊँच-नीच पर आधारित जिस सोच को बढ़ावा दे रही हैं, सभी महान समाज सुधारकों ने उसकी निंदा की थी। हिंदुत्व संगठन भारत के टुकड़े-टुकड़े करने पर आमादा हैं। दरअसल, भारत की सुरक्षा व सार्वभौमिकता के लिए असली खतरा वे ही हैं। बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में वे शक्तिशाली बन गए हैं। वर्तमान केंद्र सरकार हिंदू कट्टरपंथियों की प्रतिनिधि है-धर्मनिरपेक्षतावादियों और राष्ट्रवादियों की नहीं।
हाल में प्रोफेसर कांचा आयलैया ने कहा था कि एक समुदाय के रूप में ब्राह्मणों ने भारतीय राष्ट्र की उत्पादक गतिविधियों में कोई योगदान नहीं दिया। यह बात बिलकुल सही है। ब्राह्मणवादी शक्तियां जीवन के सभी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के अपने गुप्त एजेण्डे को लागू करना चाहती हैं। वे न तो उन बुद्धिजीवियों में और ना ही उन सैनिकों में शामिल हैं, जिन्होंने भारत की विरासत को बचाए रखा है। बहुत समय पहले आंबेडकर ने कहा था कि पुरातनकाल से ब्राह्मण, व्यवस्था के सबसे बड़े गुलाम रहे हैं।
यह शर्मनाक है कि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के ब्राह्मण संगठनों ने प्रोफेसर आयलैया के पुतले जलाए और कथित रूप से हिंदुओं की भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए उनके विरूद्ध मामला दर्ज करवाया। प्रोफेसर आयलैया ने तो केवल एक सत्य को उद्घाटित किया था और प्रजातांत्रिक भावना के अनुरूप एक सार्वजनिक बहस शुरू करने की कोशिश की थी। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष समाज में एक श्रेष्ठ विद्वान और देशभक्त पर कीचड़ उछालने और परेशान करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। उन्होंने अहिंसक और प्रजातांत्रिक तरीके से संविधान द्वारा प्रदत्त वाणी व अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता के अधिकार का उपयोग करते हुए अपने विचारों को जनता के सामने प्रस्तुत किया था। अगर राजनीति का अपराधीकरण और सही सोचने वाली प्रगतिशील व्यक्तियों का उत्पीड़न रोका जाना है तो हिंदुत्व की राजनीति की कड़ी भर्त्सना की जानी चाहिए और उस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। प्रोफेसर आयलैया के महान विचार और कार्य प्रशंसा के पात्र हैं और प्रगतिशील व धर्मनिरपेक्ष शक्तियां उनके साथ खड़ी हैं। – महेश चंद्र गुरू