नई दिल्ली, 14 अक्टूबर : छत्तीसगढ में चल रही जल, जंगल, जमीन की लडाई को पिछले दिनों हिषासुर के नाम से शुरू हुए सांस्कृतिक आंदोलन से बडी ताकत मिली है। राजनैतिक आंदोलन जहां मुख्य रूप से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि को ही जोड पाने में सक्षम होते हैं, वहीं सांस्कृतिक आंदोलन सामान्य जनों, महिलाओं, किशोरों में भी अपनी पैठ बना लेते हैं।
राज्य में इस आंदोलन की शुरूआत मार्च, 2016 में हुई, जब मानपुर शहर में आरएसएस से जुडे लोगों ने दक्षिण कोशल अखबार के प्रकाशकों में से एक विवेक कुमार की गिरफ्तारी के लिए एक रैली निकाली। उनका आरोप था कि विवेक कुमार ने एक फेसबुक स्टेटस के माध्यम से हिंदू देवी दुर्गा का अपमान किया है। विवेेक को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें कई महीने में जेल में रहना पडा। सामाजिक कार्यकर्ता व पेशे से व्यवसायी विवेक मानपुर क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं। उन पर हुए इस हमले से इलाके के दलित, पिछडेे व आदिवासियों को आक्रोशित कर दिया तथा उन्होंने भी बहुजन नायक महिषासुर का अपमान करने के विरोधी में कई रैलिया निकालीं, धरना प्रदर्शन कियेे गये तथा महिषासुर का अपमान करने वालों पर भी एफआईआर दर्ज करवा दी। महिषासुर के अपमान के मामले में भी हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत रद्द कर की है और वह फरार है।
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विवेक कुमार की गिरफ्तारी का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि सितंबर, 2016 में सुकमा में लोकप्रिय सीपीआई नेता तथा आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय महासचिव मनीष कुंजाम में पुलिस संरक्षण में दक्षिणपंथी तकतों ने मुहिम छेड दी। कुंजाम पर भी दुर्गा के संबंध मेंं एक व्हाट्स एप मैसेज ग्रुपों में भेजने का अरोप लगाया गया। नतीजे में दक्षिपंथ से जुडे लोगों ने एक दिन सुकमा बंद करवाया तो उसके जबाव में आदिवासी संगठनों ने भी बंद का आह्वान किया, जिसके प्रभाव में सुकमा व आसपास के कस्बे कई दिनों तक बंद रहे।
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इसी प्रकार अक्टूबर के पहले सप्ताह में मुंगेली शहर में सतनामी पंथ के तेज-तर्रार नेता विकास खांडेरकर को भी गिरफ्तार कर लिया गया। विकास की गिरफ्तारी पूर्व आरएसएस से जुडे लोगों ने सतनामी पंथ के पवित्र स्थल ‘जैत खंभ’ पर जूते की माला पहना दी थी तथा दलित बस्तियों में तोडफोड की थी। इस घटना के बाद पूरे छतीसगढ से दलित-बहुजन सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता मुंगेली पहुंच रहे हैं तथा महौल तनाव पूर्ण बना हुआ है। शहर में पिछले कई दिनों से धारा 144 लगी हुई है।
‘हमर बसना’, जशपुर समेत छत्तीसगढ के कई अन्य कस्बों में भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं। जशपुर की घटना में एक डॉक्टर ने व्हाट्स एप मैसेज प्रसारित किया था।
इन घटनओं का असर यह हुआ है कि छतीसगढ में बहुजन समुदाय के लोग बडे पैमाने पर महिषासुर दिवस मनाए जाने की योजना बना रहे हैं। सुकमा में 15 अक्टूबर को महिषासुर दिवस को आयोजन किया जा रहा है, जिसके छत्तीसगढ के दूर-दराज के इलाकों से विभिन्न जनजातियों के लोग बडी संख्या में सपरिवार सुकमा पहुंच रहे हैं। आइए, अखबारों के स्थनीय संस्करणों व कुछ बेबपोर्टलों में छपी खबरों के माध्यम से इस घटना को समझने की कोशिश करें।
हॉट पिक : महिषासुर एक जननायक
‘फारवर्ड प्रेस बुक्स’ की किताब ‘महिषासुर : एक जननायक’ का हिंदी संस्करण संस्करण आंदोलनकारियों व बुद्धिजीवियों के बीच खूब पढी जा रही है। 1100 प्रतियों का इसका पहला संस्करण जून, 2016 में प्रकाशित हुआ था, जो चार महीने में ही खत्म हो गया। अब इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ है। अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने 8 अक्टूबर को अपने बुक रिव्यू पेज पर इस किताब को ‘हॉट पिक’ के अंतर्गत रखा और इसी समूह के हिंदी अखबार ‘हिंदुस्तान’ ने 9 अक्टूबर को अपने रविवार के संस्करण में इसकी समीक्षा प्रकाशित की।
व्हाट्स एप मैसेज पर हंगामा
छत्तीसगढ से प्रकाशित विभिन्न अखबारों में व्हाट्स एप मैसेज के बाद कई जगह हुए हंगामों, आगजनी, रैलियों, बंद आदि की खबरें छपीं :
https://www.youtube.com/watch?v=cN2iLQgWUdA
राजस्थान में भी एफआईआर
छत्तीसगढ के अतिरिक्त राजस्थान समेत कुछ अन्य राज्यों से भी उपरोक्त्त व्हाट्स एप मैसेज के कारण दलित, आदिवासी और अन्य पिछडी जातियों के युवकों व नौकरीपेशा लोगों पर एफआइआर करवाये जाने की सूचना है।
महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, वर्धा/ दिल्ली। मोबाइल : 9968527911ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ : महिषासुर : एक जननायकइस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी ‘Mahishasur: A people’s Hero’ शीर्षक से उपलब्ध है।