h n

एबीवीपी समर्थक ने किया कबूल, ‘हमने तो शिक्षकों को भी पीटा है’

रामजस कॉलेज में मारपीट में शामिल एक एबीवीपी समर्थक के ऑडियो रिकार्ड में वह कहता है, ‘हमारे कॉलेज में आके प्रोटेस्ट करेंगे तो पिटेंगे ही… एक बंदे को इतना मारा, मार-मार के लाल कर दिया’, विकास लथेर की रिपोर्ट

एबीवीपी समर्थक (बाएं से दूसरा), जो 22 फरवरी को मॉरिस नगर थाने के पास रामजस कॉलेज में हुए विवाद को लेकर अनजान छात्रों से बातचीत कर रहा था

22 फरवरी की शाम को तकरीबन 04:30 बजे मेरे एक क्लासमेट ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में कोई हमला हुआ है और मॉरिस नगर पुलिस स्टेशन पर सारे स्टूडेंट पुलिस से इस मामले पर कार्रवाई करने का दबाव बनाने के लिए जमा हो रहे हैं।

उसने मुझे भी साथ आने को कहा। जब तक मैं वहां पहुंचा, पुलिस ने उस पूरे एरिया को सील कर दिया था। हमें पुलिस स्टेशन से थोड़ी दूर पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट वाली रेड लाइट पर ही रोक दिया गया।

जब मैं वहां खड़ा था तब कई छोटे-छोटे ग्रुप में बहुत से लोग वहां जमा होने लगे। साथ खड़े ये लोग बात कर रहे थे कि क्या हुआ होगा। वो जानना चाहते पर अब तक क्या हुआ उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

कुछ देर बाद काली टी-शर्ट और जींस पहने हुए एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हुआ, कंधे पर कॉलेज बैग था, जैसे अमूमन सभी कॉलेज स्टूडेंट के पास होता है। वो भी वैसा ही एक आम स्टूडेंट लग रहा था। उसने यहां हो रही बातचीत में हिस्सा लेना शुरू किया।

बातचीत के दौरान उसने बताया कि वो हरियाणा के भिवानी के एक छोटे गांव से है और रामजस कॉलेज में फिज़िकल साइंस का फर्स्ट इयर का छात्र है। हालांकि यह साफ़ नहीं हुआ कि वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का सदस्य था कि नहीं पर वो उनका समर्थक  तो ज़रूर था।

जैसे ही इस छात्र ने बताना शुरू किया कि रामजस कॉलेज में हुआ क्या था, मैं दंग रह गया। वो इस तरह खुलेआम गर्व से बता रहा था कि कैसे उसने और उसके दोस्तों ने कॉलेज की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों और प्रोफेसरों को पीटा और उन पर पत्थर फेंके।

बातचीत के दौरान उसने यह भी कहा कि अगर उमर ख़ालिद आ जाता तो ज़िंदा नहीं जाता। अब तक मुझे लग रहा था कि वह किसी सुनी हुई बात के आधार पर यह सब बात कर रहा है पर विस्तार के साथ उस घटना के बारे में उसके बताने से मुझे यक़ीन हो गया कि यह एक क़ुबूलनामा है। वह इस बारे में ख़ासा उत्साहित दिख रहा था, साथ ही यह बताते हुए कि उन लोगों ने क्या किया है, उसके गर्व को भी साफ देखा जा सकता था।

उस वक़्त ट्रैफिक और आस-पास के शोर की परवाह किए बिना मैंने उसके इन सब बयानों की ऑडियो रिकॉर्डिंग करने की सोची। इस पूरी रिकॉर्डिंग के दौरान मैंने उससे या उसके ग्रुप के किसी भी व्यक्ति से कोई बात नहीं की। मैं नहीं चाहता था कि मेरे किसी भी तरह इस बातचीत में हिस्सा लेने के कारण ख़ुद को रामजस कॉलेज का छात्र बताने वाला यह व्यक्ति किसी भी तरह हतोत्साहित या प्रोत्साहित हो।

यह पूरी बातचीत दिखाती है कि कैसे कोई छात्र एक हिंसक भीड़ का हिस्सा बन जाता है। किस तरह एबीवीपी जैसे संगठन कुछ पूर्वग्रहों को अपने फायदे के लिए न केवल इस्तेमाल करते हैं, बल्कि उनको और सुदृढ़ बनाते हैं। इससे यह भी साफ दिखा कि सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ से होने के कारण आप में किस तरह का आत्मविश्वास आ जाता है। खासकर इस बात को लेकर की पुलिस आपके ख़िलाफ़ कोई एक्शन नहीं लेगी।

जिन लोगों को मैंने ‘अनजान शख़्स’ के नाम से संबोधित किया है, वे बहुत आराम से इस एबीवीपी समर्थक के ऐसी हिंसा के जरिये किसी विचारधारा से असहमत होने, आलोचना और किसी विषय पर सवाल करने की संस्कृति को दबाने की बात को सुन रहे थे, उसका मज़ा ले रहे थे।

वे महिला रिपोर्टरों, बेक़सूर विद्यार्थियों, अपने शिक्षकों को पीटने जैसी घटिया और आपराधिक हरकत पर ठहाके लगा रहे थे। वे भले ही इस घटना के क़ानूनन दोषी नहीं हैं पर अगर नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो वे भी उतने ग़लत हैं, जितने इस घटना को अंजाम देने वाले।

यह एक गंभीर सामाजिक स्थिति की तरफ इशारा भी है, जहां कुछ युवा भारतीयों का यूं सांस्कृतिक नफ़रत फैलाना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की बात कहना स्वीकार्य है।

इस घटना ने मेरी इस धारणा को और मजबूत कर दिया है कि अगर आप स्व-घोषित ‘देशभक्त’ हैं तो आप समाज में किसी भी तरह का हमला करने के बाद भी साफ बच सकते हैं।

हर कट्टरपंथी की तरह इस एबीवीपी समर्थक की भी एक आपराधिक प्रवृत्ति थी, बावजूद इसके वे अन्य लोगों की नैतिकता पर सवाल उठा रहा था, अलग-अलग संस्कृतियों से आने वाले लड़के-लड़कियों पर घटिया कमेंट कर रहा था। (कि कैसे वो सिगरेट पीते हैं, अपोजिट सेक्स के दोस्त बनाते हैं, अंग्रेज़ी बोलते हैं, या फिर इस एबीवीपी समर्थक के दोस्तों के मुक़ाबले बॉडी-बिल्डर नहीं हैं)

एबीवीपी के इस समर्थक ने जब खुले तौर पर ये बताना शुरू किया कि उसने अपने साथी छात्रों और डीयू के प्रोफेसरों को भी पीटा है तो उसकी आवाज़ में कोई घबराहट या हिचक नहीं थी। वह बार-बार इस बात को दोहरा रहा था जिससे लग रहा था कि वह इसे लेकर काफी गंभीर था और इसमें उसे कोई गड़बड़ी नहीं लग रही थी।

पुलिस को लेकर उसके बयानों से पता चलता है कि कानून को लेकर वह पूरी तरह से बेपरवाह था। उसे पता था कि पुलिस दोषियों को दंड देने और निर्दोषों को बचाने में पूरी तरह से अक्षम है और ये भी पता चलता है कि वे (हमलावर/एबीवीपी) जानते थे कि पुलिस कहीं न कहीं उनके पक्ष में थी।

इस रिकॉर्डिंग से कई ज़रूरी सवाल उठते हैं: अगर एबीवीपी के नेतृत्व वाला डूसू इस हिंसा में शामिल नहीं था (जैसा वे कह रहे हैं) तो उन्हें उन छात्रों के बचाव में उतरने की क्या ज़रूरत पड़ी, जो गर्व से खुलेआम इस आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने की बात स्वीकार रहे थे?

जब वह एबीवीपी समर्थक अपनी ‘वीरता’ के क़िस्सों का बखान कर रहा था, तब भी उसने एक भी बार दूसरी तरफ के छात्रों के किसी भी तरह से उकसाने, मारने-पीटने या हिंसक होने की बात का ज़िक्र नहीं किया।

क्यों दिल्ली पुलिस और मीडिया ने इसे एबीवीपी और वामपंथी समूहों के बीच हुई ‘झड़प’ कहा जबकि यह साफतौर पर एकतरफ़ा हमला था। उन कॉलेज छात्रों और शिक्षकों को पीटने की शर्मनाक घटना जहां वे खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं कर सके। जांच करने वाली संस्था को इन सब सवालों के जवाब देने होंगे।

और यहां एक निजी राय भी जोड़ना चाहूंगा: हमें इस मिथक को दूर करना चाहिए कि यह शहरी ‘एलीट’ और देसी राष्ट्रवादियों के बीच हुई कोई झड़प थी। इस एबीवीपी समर्थक और इस जैसी मानसिकता के कई और अपने आप को हरियाणा का असली प्रतिनिधि मानते हैं।

मैं ख़ुद भी हरियाणा से आता हूं। एक छोटे-से गांव की साधारण पृष्ठभूमि से आने बावजूद मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छी शिक्षा दिलाई है। मुझे इस एबीवीपी समर्थक की इस संकीर्ण, कट्टर मानसिकता से परेशानी है और मैं इस बात पर ज़ोर देकर कहना चाहूंगा कि वो मेरे राज्य का प्रतिनिधि नहीं हैं।

अब वक़्त आ गया है कि हम जैसे आम लोग जो इन अपराधियों से असहमत हैं, सामने आकर यह असहमति जताएं, जिससे ख़ुद को संस्कृति और नैतिकता का ‘ठेकेदार’ समझने वाले इन लोगों का भरम टूट जाए। मैं इस बात पर भी शर्मिंदा हूं कि जिस तरह इस एबीवीपी समर्थक ने रामजस जैसे नार्थ कैंपस के इतने प्रतिष्ठित कॉलेज की छवि ख़राब करने की कोशिश की है।

इन जैसे लोगों को यह बताने का समय आ गया है कि देश में ऐसे ढेरों युवा हैं, जो सामाजिक न्याय, समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं और इस तरह लगातार होने वाले हिंसक हमले उनके इस विश्वास को कमज़ोर नहीं कर सकते।

मैं जानता हूं कि ऐसे उन्मादी नेताओं के खिलाफ जो किसी का खून बहाने या फिर निर्दयतापूर्ण हिंसा करने से कतराते नहीं, उनके ख़िलाफ़ इस तरह का लेख अपने नाम से प्रकाशित करवाना मुझे जोख़िम में डाल सकता है। लेकिन मैं ईमानदारी से मानता हूं कि इन ‘गुंडा राष्ट्रवादियों’ को हमारे इसी डर से ही ऊर्जा मिलती है।

मुक्त रूप से अपने विचार रखने की जगहें बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रही हैं। हमें अपने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों पर वापस अपना दावा करना होगा।

एक बहुलतावादी और लोकतांत्रिक समाज ख़ासकर शिक्षा संस्थानों में बौद्धिक आलोचना की जगह हमेशा बरकरार रहनी चाहिए। हम सबको विरोध की स्वस्थ संस्कृति को बचाने की ज़रूरत है। कल्चर्स ऑफ़ प्रोटेस्ट नाम का दो दिनी सेमिनार इसी बात को बढ़ावा देने के लिए रामजस साहित्यिक सोसाइटी ने आयोजित किया था।

ऐसा नहीं है कि इस सेमिनार को सिर्फ उन लोगों ने खोया है, जो इसका आयोजन करने वाले थे। दरअसल हम सबने खोया है क्योंकि हमें चर्चा, बहस और विचारों का मुक्त आदान-प्रदान करने से लगातार वंचित किया जा रहा है।

ऐसा सिर्फ एक छात्र संगठन एबीवीपी और उसके समर्थकों की वजह से हो रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास पूर्ण अधिकार है हम सबको ये बताने के लिए हमें क्या पढ़ना चाहिए क्या नहीं, क्या सोचना चाहिए और किन मुद्दों पर बहस या चर्चा करनी चाहिए।

अनुवाद के बारे में: वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए मैंने सभी बातों का अनुवाद किया है, यहां तक ही ऐसी भी सूचनाओं का अनुवाद किया है जो पाठक के नज़रिये से कम उपयोगी हैं। मैं नहीं कह सकता कि यह किसी चूक या गलती से पूरी तरह से बचा रह गया है। हालांकि मुझे एक प्राकृतिक लाभ ये मिला कि वह छात्र हरियाणवी बोल रहा था और मैं भी हरियाणा का ही हूं।

सभी बयान एक दूसरे के पूरक या फिर तार्किक रूप से एक दूसरे का अनुसरण नहीं करते हैं। हालांकि बोलने वाला बार-बार अपनी कही बातों को दोहरा रहा था। जैसे- हिंसा के अपने कारनामों की बात करते हुए वह बहुत ही सहजता से जेएनयू, आइसा और रामजस के अंग्रेजी विभाग के छात्रों के बारे में बता रहा था।

पहले तो वह ख़ुद को रामजस कॉलेज का छात्र बताता है, लेकिन बातचीत के दौरान कई बार एबीवीपी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी बताता है।

रामजस कॉलेज में हुए विवाद और अन्य तत्वों की आपराधिक जिम्मेदारी की छानबीन के लिए ये आॅडियो रिकॉर्डिंग अच्छे और विश्वसनीय शुरुआत हो सकते हैं।

अनुवाद के साथ मैं आॅडियो फाइलें भी यहां दे रहा हूं।

एबीवीपी समर्थक या कार्यकर्ता की रिकॉर्डिंग की प्रतिलिपि

ये आडियो रिकॉर्डिंग एबीवीपी के एक समर्थक की बातचीत की है। जिसे 22 फरवरी, 2017 को शाम 04:49 से 05:11 बजे के बीच में रिकॉर्ड किया गया। एबीवीपी के यह समर्थक खुद को रामजस कॉलेज को पहले साथ का छात्र बताता है। वह यहां से फिज़िकल साइंस की पढ़ाई कर रहा है। वह बताता है कि वह हरियाणा के भिवानी जिले से है।

इस आडियो रिकॉर्डिंग के अनुवाद में हमने उसे एबीवीपी समर्थक के रूप में दर्शाया है।

इसके अलावा तमाम लोग जो उससे बात कर रहे हैं उन्हें अंजान शख़्स की कैटगरी से अनुवाद में दर्शाया गया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि एबीवीपी समर्थक से बात करने वाले बहुत सारे लोग थे। (कोई भी आडियो सुनकर अलग अलग आवाज़ों को आसानी से पहचान सकता है।):

तारीख: 22 फरवरी 2017

रिकॉर्डिंग 1:

एबीवीपी समर्थक: कल एक बस भर के आई पुलिस थी, कल मामला शांत हुआ, कल भी पिटते ये; कल भी पिटते।

अनजान शख़्स: कल आइसा-वाइसा नहीं थे।

एबीवीपी समर्थक: कल आइसा नहीं था। कल जेएनयू वाले आए थे। कल आइसा नहीं आई थी। कल जेएनयू वाले आए थे। कल इन्हें पीटते। कल ये पीटे नहीं लगा लो, कल इनके थोड़े बहुत लगे थे। कल पुलिस ने निकाल दिया कि चलो मामला शांत हो गया; हम छह बजे चले गए, उनको (जेएनयू के लोग) चार बजे निकाल दिया था हम दो घंटे रुक कर चले गए।

आज जब आए (कॉलेज) तो साले फिर पुलिस थी, आज पता चला कि कॉलेज वाले प्रोटेस्ट कर रहे हैं दोबारा, इंग्लिश (रामजस का विभाग) वाले, कर रहे हैं; फिर थोड़ी देर में पता चला कि आइसा वाले भी आ रहे हैं। तुम्हारी मां की, ये जेएनयू थोड़े न है, डीयू है और ऊपर से रामजस कॉलेज, हंसराज होता, हिंदू होता, चल जाता। वो इंटेलीजेंट बच्चे हैं, इतना प्रोटेस्ट में ध्यान नहीं देते। नहीं देते भाई। रामजस कॉलेज की वो ही बात है, हरियाणा और यूपी वालों से भरा पड़ा है। और जिन्हें कुछ नहीं आता वो है। जिनके सिर्फ दंगे आए हैं.. ना पर्सेंटेज में, जिनके साथ दंगे लिख के आए हैं वो हैं।

अनजान शख़्स: तो क्या हुआ?

एबीवीपी समर्थक: तो वो पिटे, सुबह से मारने लग रहे हैं।

अनजान शख़्स: इनको? (प्रदर्शनकारियों की तरफ इशारा करते हुए जो पुलिस स्टेशन के सामने जमा हुए थे।)

एबीवीपी समर्थक: एक बस थी। एक बस और बुलाई पुलिस की। फिर भी पुलिस वाले ऐसे बोल रहे थे, ‘हम थोड़ी ढील देते हैं! अब यार मीडिया आ गई है, तो ढील नहीं दे सकते।’ ये वहां भी पिटे फिर पुलिस स्टेशन के बाहर भी पिटे। ये मीडिया वाले साले अब भी झूठ बोल रहे हैं।

अनजान शख़्स: मीडिया को तो बोलने दो।

एबीवीपी समर्थक: मीडिया वालों के कारण अभी पुलिस वो नहीं दे रही अभी, ढील। के अब, ‘अगर हमारे (पुलिस) आगे लग गए न तो मीडिया वाले हमारी लेनी कर देंगे’ -पुलिस के नजरिये से बात करते हुए।

(उसके बाद कुछ शब्द सुनने योग्य नहीं हैं।)

अनजान शख़्स: मीडिया वालों ने क्या बोला?

एबीवीपी समर्थक: उन्होंने (मीडिया) इसे पॉलीटिकल बना दिया, पॉलीटिकल बना दिया है, प्रॉब्लम ये आ रही है अभी। रियलिटी नहीं दिखा रहे हैं, कि बात क्या है। वो सिंपल प्रोटेस्ट कर रहे थे, उमर ख़ालिद का, एबीवीपी क्या करेगी उसमें। और हमारे डीयू में आने की ज़रूरत क्या थी इन्हें। कल मामला शांत हो गया था तो आज क्यों आए। पिटेंगे ये। हमारे कॉलेज में आके प्रोटेस्ट करेंगे तो पिटेंगे ही, सिंपल सी बात है ऐसा माहौल था कि ये कल भी पिट चुके हैं।

(बातचीत के आख़िर के कुछ शब्द नहीं सुनने योग्य नहीं हैं क्योंकि लेखक को पहली रिकॉर्डिंग को सेव करने और दूसरी रिकॉर्डिंग शुरू करनी थी।)

रिकॉर्डिंग 2: 

अनजान शख़्स: रामजस में कल क्या हुआ था भाई साहब

एबीवीपी समर्थक: कल भाई बस शीशे वगैरह फूटे थे।

अनजान शख़्स: रूम नंबर 26? इंग्लिश की क्लास तो रूम नंबर 26 में ही लगती है न?

एबीवीपी समर्थक: ‘भाई, रूम नंबर 26 वगैरह में नहीं हुआ था हमारा, कैंटीन के ऊपर है ना, सेमिनार (हॉल) है इनका।’

अनजान शख़्स: हां, वहां कैंटीन के ऊपर है देखा मैंने।

एबीवीपी समर्थक: वे वहां जेएनयू वालों को ले जा रहे थे और हमने प्रोटेस्ट किया कि वहां नहीं आने देंगे इन लोगों को, उमर ख़ालिद को।

अनजान शख़्स: बहुत अच्छा किया।

एबीवीपी समर्थक: इस बात पर प्रोटेस्ट हुआ था और भाई अगर नहीं मानेंगे तो पिटेंगे ही।

अनजान शख़्स: पीटे भी हो क्या आप सब इंग्लिश वालों को?

एबीवीपी समर्थक: और! नहीं पीटेंगे तो कहां जाएंगे। टीचर को भी पीटा है हम लोगों ने तो

अनजान शख़्स: अरे यार तुम्हें (तुमने) गुरु को भी पीट दिया।

एबीवीपी समर्थक: अबे यार, वो ही बात है, ब्रेन वॉश करने के लिए गुरु ही होता है। सारे गुरु आगे खड़े हैं प्रॉब्लम तो यही आ रही है न।

अनजान शख़्स: शीशा कौन सा फूटा है, कैंटीन का?

एबीवीपी समर्थक: कैंटीन के ऊपर जो रूम है, उसका।

अनजान शख़्स: अच्छा वहां तो शीशा ही शीशा है।

(इस दौरान कुछ लोग इस बारे में टिप्पणी कर रहे थे लेकिन एक आपसी बातचीत थी इस वजह से ये बातें ज़्यादा स्पष्ट नहीं हैं।)

अनजान शख़्स: बहुत पुराना प्रिंसिपल है रामजस का, उसका कोई कुछ नहीं कर सकता; हम भी रामजस से पास आउट हैं।

एबीवीपी समर्थक: अभी सही बोल रहा हूं, अभी ऐसा करोगे तो, वही बात है, आइसा वालों को नहीं मारे, तुम्हें ज़रूर मारेंगे। (यहां ‘तुम्हें’ शब्द किसके लिए इस्तेमाल किया गया, ये अस्पष्ट है। ये प्रोफसरों के लिए हो सकता है, जिनके बारे में ये बातचीत चल रही है। या फिर कुछ दूरी पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों के बारे में हो सकता है। क्योंकि उस वक्त एबीवीपी समर्थक उनकी तरफ देखते हुए हंस रहा था।)

(उस वक़्त इस समर्थक से दो लोग बात कर रहे थे तब रामजस के इस छात्र को कहते सुना जा सकता है कि आइसा वालों को अंडे मारे थे।)

अनजान शख़्स: बच्चे लोग गए, नया जोश है।

एबीवीपी समर्थक: एक बंदे को तो इतने मारे

अनजान शख़्स: कहां पे?

एबीवीपी समर्थक: शर्ट का रंग लाल था उसका (कुछ बातें स्पष्ट नहीं थीं, लेकिन ऐसा लग रहा था कि कह रहा हो, सर पे गंजा सा था।) लाल कर दिया उसको मार-मार के वो जब पिट रहा था, उसकी गर्लफ्रेंड रो रही थी, ‘हमें क्यों मार रहे हो’ (लड़की की आवाज़ की नकल उतार कर वह हंस रहा था।) ‘हमें क्यों मार रहे हो’, गर्लफ्रेंड रो रही थी उसकी।

अनजान शख़्स: ये साले चरसी होते हैं… (आगे की कुछ बातें सुनने योग्य नहीं हैं।)

एबीवीपी समर्थक: पुलिस अभी भी आ रही है!

अनजान शख़्स: मामला गंभीर है भाई साहब।

एबीवीपी समर्थक: मामला बहुत गंभीर होने वाला भी है। ये (प्रदर्शनकारी) जाएंगे कैसे यहां से। ये समझ नहीं आ रहा मुझे।

अनजान शख़्स: कौन?

एबीवीपी समर्थक: पुलिस प्रोटेक्शन इन्हें जेएनयू तो नहीं छोड़ के आएगी।

अनजान शख़्स: अच्छा वो भी आए हैं यहां पे?

एबीवीपी समर्थक: आइसा वाले यहीं तो बैठे हैं। इसलिए रामजस वाले यहां पर हैं, कि पुलिस हटे यहां से और रामजस वाले ‘गां…काटे’ (इस बात को दोहराने के बाद वह व्यंग्यपूर्ण तरीके से हंसता है।)

अनजान शख़्स: कोई कह रहा है वो भी बैठे हैं (यह किसके बारे में कहा गया स्पष्ट नहीं)

एबीवीपी समर्थक: (कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो रहीं) … जो हेड है डीयूएसयू का।

अनजान शख़्स: तंवर

एबीवीपी समर्थक: वो डिपार्टमेंट में बैठा है, डीयूएसयू डिपार्टमेंट। और कोई कॉलेज के बच्चे नहीं हैं, ना हिंदू के हैं, ना हंसराज के। सिर्फ रामजस के हैं। और इधर रोड के उस साइड तो वो (रामजस के छात्र) हैं और इस साइड है आइसा वाले। तभी दोनों साइड ब्लॉक है, पुलिस स्टेशन के आगे।

अनजान शख़्स: अच्छा रामजस में बहुत मारधाड़ होता है!

एबीवीपी समर्थक: तभी तो बोल रहे हैं, रामजस जाने की हिम्मत कैसे की सालों ने और कहीं तो देखा जाता।

अनजान शख़्स: हां, फेमस है रामजस।

(उस वक्त उसने बोलने की शैली में कुछ समय के लिए बदलाव किया था)

एबीवीपी समर्थक: अरे! एक बार तो हम अपने कॉलेज वालों को (उन छात्रों के बारे में बात करते हुए जिन्होंने कार्यक्रम को आयोजित या फिर उसका समर्थन किया था) भी कूटेंगे हम। ये (बाहर से आने वाले प्रदर्शनकारी) तो चले जाएंगे, कॉलेज वाले कहां जाएंगे।

(एक अनजान शख़्स चुनाव के समय हथियारों के इस्तेमाल की बात करता है, लेकिन बीच में रामजस का छात्र टोक देता है, इसलिए ये स्पष्ट नहीं हो पाता कि अनजान शख़्स हथियारों के बारे में और क्या बात करने वाला था।)

एबीवीपी समर्थक ने फिर कहा: साल में एक ही बार पुलिस आती है, हमारे इलेक्शन में कल हमने सेमिनार रूम का गेट ‘फाड़ दिया’। (तोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाला हरियाणवी शब्द)

अनजान शख़्स: बहुत मारा कल? हाथ साफ कर लिया।

एबीवीपी समर्थक: कल इतना नहीं मारा बट आज ज़्यादा मारा है।

अनजान शख़्स: आज भी मारा है?

एबीवीपी समर्थक: आज तो रामजस से यहां (पुलिस स्टेशन) तक पीटते-पीटते लाए हैं।

(सभी साथ मिलकर हंसने लगते हैं और कुछ चींजों का मज़ाक बनाते हैं जो कि सुनने योग्य नहीं हैं।)

रिेकॉर्डिंग 3:

एक अनजान शख़्स दूसरे से: उमर ख़ालिद को बुलाया था, तो ये बच्चा लोग बहुत मारा होगा उसको।

दूसरा अनजान शख्स: जिसको बुलाया था या जिसने बुलाया था?

एबीवीपी समर्थक: भाई रामजस वालों ने ही बुलाया था और रामजस वालों ने ही पीटा।

अनजान शख़्स: इनकी रगों में देशभक्ति का खून है तो कोई कैसे इस देश की बुराई सुनेगा… जवानी का खून है।

एबीवीपी समर्थक: जो आना था वो आया नहीं (उमर ख़ालिद के बारे में) उनके वो चमचे पिटे हैं; उमर ख़ालिद को बुलाया था वो आया नहीं।

अनजान शख़्स: भीड़ से किसी ने चिल्लाया, ‘वो डर गया।’

एबीवीपी समर्थक: चाहे वो डर गया या कुछ भी लगा लो। पर उसके चमचे बहुत पिटे हैं। अभी भी पिट ही रहे हैं। पर साले ये मान नहीं रहे अब भी। प्रॉब्लम ये आ रही है कि ये मान नहीं रहें अब भी।

अनजान शख़्स: ये नशेड़ी हैं, उनको कितना भी मार लो, इन्हें कुछ असर नहीं पड़ता।

एबीवीपी समर्थक: ये बात तो सच है खुला नशा कर रहे हैं। बहन के… लड़कियां-लड़के सब सिगरेट का नशा चला रहे हैं ये आइसा वाले।

अनजान शख़्स: ये तो यही चाहते हैं।

(कुछ शब्द सुनने योग्य नहीं हैं)

अनजान शख़्स: ये (प्रदर्शनकारी) क्या आज़ादी-आज़ादी चिल्ला रहे हैं? संतालिस (1947) में आज़ादी मिल गई अब क्या कर रहे हैं!

एबीवीपी समर्थक: वे कह रहे हैं, ‘वी वॉन्ट फ्रीडम’। हम केहवा (कहते हैं) ‘पुलिसिये (पुलिस वाले) पांच मिनट छोड़ दें, ये तो फ्रीडम बोलना ही भूल जाएंगे ऐसे कर देंगे भाई फोटूवा (मीडिया) के डर से नहीं मार रहा हूं उनको; मीडिया पे आ गया तो घरवाले घर ही बुला लेगा एक मिनट में। ‘के बेटा घणा ही (बहुत बड़ा) गैंगस्टर बन गया है।’ (कुछ शब्द सुनने में नहीं आ रहे)… बस फोटो के डर से नहीं मार रहा हूं इनको, नहीं तो अभी तक साफ कर देता।

रिकॉर्डिंग 4:

एबीवीपी समर्थक: भाई … (कोई ऐसा शब्द था जो समझ नहीं आया) को बहुत पीटा ; हम सुबह से ही तो पीट रहे हैं। मीडिया वालों में, एक-दो लड़कियों को ‘बढ़ा दिया’ हमने (हरियाणवी में बढ़ाना मतलब पीटना)।

अनजान शख़्स: लड़की को ही मार दिया?

(उसने हरियाणवी में बताया कि कैसे उन लोगों ने महिला रिपोर्टरों के साथ बदतमीज़ी की। पाठकों की सुविधा के लिए मैं इसे हिंदी में लिख रहा हूं।)

एबीवीपी समर्थक: हमने उसे बोला फोटो मत खींच। नहीं मानी। तो मीडिया की एक लड़की और एक लड़के को हमने मारा। बहन के ***। (मज़ाक उड़ाते हुए ऐसे ही कुछ शब्द, जो ठीक से सुनाई नहीं दिए)

(बाकियों ने इस विषय से अलग कोई बात कही)

एबीवीपी समर्थक: दोपहर 1:30 बजे शुरू हुआ था। कई बार तो… (किसी जगह का नाम जो ठीक से सुनाई नहीं दिया) जाके पीटे, कई बार। फिर कॉलेज के अंदर पीटे। फिर बाहर साले जेएनयू वाले खड़े थे; मतलब अंदर कॉलेज वाले पीटे। फिर बाहर जेएनयू वाले आ गए।

भीड़ में से किसी ने पूछा: क्या आप रामजस से हो?

उसने जवाब दिया: हां।

वो अपनी बात पूरी ही करने जा रहा था कि फिर किसी ने पूछा, कौन-से डिपार्टमेंट से?

उसने बताया, फिज़िकल साइंस

फिर वो पिछली बात पूरी करते हुए बोला: हम उन्हें (रामजस के) इंग्लिश डिपार्टमेंट वालों को पीट रहे थे जिन्होंने उन्हें (वक्ताओं को) बुलाया था।

अनजान शख़्स: तुम्हें पता न चला कि उन्होंने बुला लिए?

एबीवीपी समर्थक: हां, तो हम पीट रहे थे उनको अंदर तो पता लगा कि बाहर भी हैं लोग (जेएनयू के छात्रों के बारे में कहा)

अनजान शख़्स: इंग्लिश डिपार्टमेंट जो है रामजस का, वो ही एक ऐसा डिपार्टमेंट है, रूम नंबर 26, जहां एसी लगा है। और किसी में एसी-वेसी नहीं है (कुछ और भी बोला जो सुनाई नहीं दिया)।

एबीवीपी समर्थक: अंदर उनको (इंग्लिश डिपार्टमेंट) पीटा, जेएनयू वाले बाहर आ गए थे, हम जैसे ही बाहर आए तो हमने उन्हें पीटा। क्योंकि बाहर पुलिस नहीं थी।

पुलिस भीतर थी क्योंकि (रामजस) कैंटीन के पास रौला मच गया था। (इसके बाद वो यह बताते हुए हंसने लगा कि कैसे उन्होंने बाकियों (इंग्लिश डिपार्टमेंट वालों) को भगा दिया) फिर एक बस (पुलिस की) और भर के बुलाई, (हम) मान ही नहीं रहे थे।

भीड़ में से कोई जो थोड़ी देर पहले ही आया था, उसकी दूर से ही आवाज़ आई कि ‘यार आज तो ज़रूर कुछ होगा।’

एबीवीपी समर्थक: न्यूज़ पर लाइव चल रहा है।

एबीवीपी समर्थक : ऐसे नहीं होगा देसी बम भी चलने चाहिए

कोई और व्यक्ति : नहीं यार, बम नहीं

उसने जवाब दिया: देख यार बम गिराना अच्छी बात नहीं है।

भीड़ में से कोई बोला: यह तो देशद्रोह हो जाएगा।

एबीवीपी समर्थक : हां, देशद्रोह हो जाएगा।

वही व्यक्ति जिसने बम वाली बात उठाई थी, फिर बोला: हाथ-पैर गिराने (तोड़ने) तक बहुत है।

एबीवीपी समर्थक: हां, साले जेएनयू वाले खप्टर (हरियाणवी में ‘बेकार’) खप्टर तो क्या हैं, ढीठ हैं। कल पिट के गए और आज फिर आ गए। तो ये फिर पिटेंगे।

डीयू में भी कम नशेड़ी नहीं हैं।

अनजान शख़्स: हां ये सही कह रहा है।

एबीवीपी समर्थक: ये (प्रदर्शन करने वालों के लिए बोलते हुए) तो पतले-पतले हैं, डीयू के नशेड़ी देखो तुम, रामजस के, ये बॉडी-बिल्डर हैं।

अनजान शख़्स तंज़ के लहजे में बोला: यार यूनियन ग्रुप (डूसू) में तो कोई दिख नहीं रहा है (बॉडी-बिल्डर)

अनजान शख़्स: डूसू का हेड नहीं आया है यहां पर। तंवर? (अमित तंवर)

एबीवीपी समर्थक: पता नहीं। पर अजय डेढ़ा तो यहीं है और प्रियंका छावरी (डूसू उपाध्यक्ष) तो यहीं पर है। अरे डूसू तो सारा वो (प्रदर्शन वाली जगह की तरफ इशारा करते हुए) बैठा है।

अभी हमारे टीचर पिटेंगे और सब तो देखी जाएगी इंग्लिश वाले तो सारे।

किसी ने प्रोफेसरों के बारे में पूछते हुए कहा: आए होंगे सारे?

एबीवीपी समर्थक: हां, हवाबाज़ी में खड़े हैं सारे, कि पता नहीं क्या मैडल जीत के आए हैं।

(यहां से वह पूरी तरह हरियाणवी बोली में बोलने लगा, मैं उसकी बात हिंदी में लिख रहा हूं, शब्द अलग हैं पर बात के अर्थ वही हैं)

एबीवीपी समर्थक: पुलिस तब ही आती है, जब थोड़ा उनको पीट देते हैं। (उसने सामान्य दिनों में पुलिस के डीयू कैंपस आने के बारे में कहा कि वो तब ही आती है जब हम लोग मारपीट कर चुके होते हैं) (हंसते हुए अपनी ही बात दोहराने लगा) जब बीस मार लो तब पुलिस आती है।

वो तो अब मीडिया आ गई तो पुलिस दाब (दबाव में) है। बच्चे (छात्र) पुलिस से ना दाब रहे थे।

अनजान शख़्स: अब पुलिस वाले क्या करेंगे। इतनी पुलिस क्या करेगी?

एबीवीपी समर्थक: मीडिया के कारण पुलिस शांत है। अब अगर आइसा वाले पीट दिए, तो पुलिस पे बात आ जाएगी कि इतनी प्रोटेक्शन होते हुए कैसे पिटे वो।

अनजान शख़्स: ये (प्रदर्शन करने वाले) नहाते-वहाते नहीं हैं एक-एक दो-दो दिन।

एबीवीपी समर्थक: ये तो है, भो** ** बिना नहाए आए हुए हैं। 20 दिन का सड़ियल आ रहा है।

अनजान शख़्स: पूरी सर्दी नहाते नहीं हैं। आइसा वाले गंध हैं। चादर डाल के रहते हैं।

कोई और बोला: भर के ले जाएंगे बस में। (कुछ बोला जो साफ़ सुनाई नहीं दिया)

एबीवीपी समर्थक: देख वहां देख, (पुलिस स्टेशन के सामने हो रहे प्रदर्शन की तरफ इशारा करते हुए) कोई न कोई आइसा वाले को पीट दिया है। (हंसते हुए अपनी बात दोहराने लगा) कोई न कोई बालक पुलिस प्रोटेक्शन में था जो अब हमारे पकड़ में आ गया होगा; वो (अपने साथियों के बारे में बताते हुए) बीस हैं, सबको दो-दो (मारने को) मिलेंगे तो हिसाब हो जाएगा।

इसी समय पुलिस वाले भीड़ देखकर सबको तितर-बितर करने आ गए और मैंने जल्दी से कुछ तस्वीरें खींच लीं।

साभार: द वायर

इस पूरी बातचीत की रिकार्डिंग यहाँ पर उपलब्ध है


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

विकास लथेर

विकास लथेर दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के समाजशास्त्र विभाग में एम ए के विद्यार्थी हैं।

संबंधित आलेख

लोकतंत्र में हिंसक राजनीति का जवाब लोकतांत्रिक राजनीति से ही मुमकिन
जिस दिन बहुजन समाज की प्रगति को थामे रखने के लिए बनाया गया नियंत्रित मुस्लिम-विरोधी हिंसा का बांध टूटेगा, उस दिन दुष्यंत दवे जैसे...
बहुजन वार्षिकी : सियासी मोर्चे पर दलित-ओबीसी के बीच रही आपाधापी
वर्ष 2024 बीतने को है। लोकसभा चुनाव से लेकर देश के कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों व मुद्दों के आलोक में इस साल...
अयोध्या, संभल व अजमेर : अशराफगिरी रही है हिंदुत्व के मैन्युअल का आधार
जहां ब्राह्मण-सवर्ण गंठजोड़ ने हिंदुत्व सहित विभिन्न राजनीतिक परियोजनाओं के जरिए और अलग-अलग रणनीतियां अपनाकर, बहुसंख्यकों को गोलबंद करने के लिए प्रयास किए, वहीं...
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : जीत के बाद हवा में न उड़े महायुति सरकार
विमुक्त और घुमंतू जनजातियों और अन्य छोटे समुदायों ने संकट से उबरने में महायुति गठबंधन की मदद की है। हमारी नई सरकार से अपेक्षा...
राजस्थान : युवा आंबेडकरवादी कार्यकर्ता की हत्या से आक्रोश
गत 10 दिसंबर को राजस्थान के युवा दलित विशनाराम मेघवाल की हत्या कर दी गई। इसके विरोध में आक्रोशित लोग स्थानीय अस्पताल के शवगृह...