5 मई को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जाटव जाति के 50 से अधिक लोगों के घर जला दिए गए थे। कुछ दिनों बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के दौरे के बाद वहीं फिर से हिंसा भड़क उठी। पिछले कुछ दिनों में सहारनपुर के कई गांवों और कस्बों में राजपूत तलवार लहराते हुए दिखे, गोलियां चली हैं तथा शब्बीरपुर में जाटव समुदाय के दो लोगों की हत्या कर दी गयी है। पूरे क्षेत्र में तनाव है तथा हिंसा के और भडकने के आसार हैं।
इस घटना पर राजनीति गर्म है, लेकिन इससे जुडे कुछ ऐसे सवाल हैं, जो अनुत्तरित हैं। पुलिस इस घटना से शेर सिंह राणा के रिश्ते को क्यों छुपाना चाहती है? प्रत्यक्षदर्शी पीड़ितों का कहना है कि गांव में आग पेट्रोल या डीजल से नहीं, बल्कि एक विशेष प्रकार के ज्वलनशील बैलून से लगायी गयी, जो फेकते ही आग पकड़ लेता था, उसे जलाने के लिए माचिस की आवश्यकता नहीं होती थी। ये बैलून किसने मंगवाए थे? इन बैलूनों का प्रयोग व अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से स्पष्ट है कि शब्बीरपुर से 5 मई को महाराणा
प्रताप की जयंती के लिए जा रहे डीजे को रोके जाने का विवाद प्लांटेड था और पूरी घटना दलितों को सबके सिखाने के लिए सुनियोजित थी।
जिला मुख्यालय सहारनपुर से 29 किलोमीटर दूर शब्बीरपुर जाटव बहुल बस्ती है, जिसमें कुछ घर राजपूतों के भी हैं। शब्बीरपुर के जाटवों की युवा पीढी शिक्षित ही नहीं, लगभग 75 प्रतिशत ग्रैजुएट है। गांव के जाटव तेजी से संपन्नता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं और अब किसी भी प्रकार की सामंती धाक बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। आंबेडकरवाद के जोर से उनमें आत्मविश्वास के साथ-साथ कुछ अक्खडपन भी आया है।
शब्बीरपुर से चार किलोमीटर दूर संपन्न राजपूतों का गांव शिमलना है। इस गांव के राजपूतों में एक ओर अभिजात तबका विकसित हुआ है, जिसका एक पैर दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर आदि शहरों में है तो दूसरा विदेशों में है। दूसरी ओर इस गांव में अपनी कई एकड जमीन, ट्रैक्टर, बैल-भैंसों के साथ पीछे छूट गए राजपूत परिवार हैं। इन परिवरों के युवाओं की दुनिया अपने खेत, छोटी-मोटी नौकरियों, नल-कल के ठेके से लेकर जिला मुख्यालय सहारनपुर के डीएम, एसपी कार्यालयों तक सिमटी है, जहां ये अपनी जर्जर हो रही माली हालत को सामंती अकड से छुपाते हुए घूमते पाए जाते हैं।
विकास की दौड में पीछे छूट गए ये राजपूत युवा उन लोगों के लिए अासान चारा हैं, जो राजपुताना की वापसी के नाम अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। यही कारण है कि इस गांव में आए दिन कोई न कोई राजपूत नेता आते हैं तथा अनेक प्रकार के कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
विवाद के दिन क्या हुआ था?
विवाद के दिन (5 मई) को भी शिमलाना में ऐसा ही एक कार्यक्रम महाराणा प्रताप जयंती के नाम पर था। जिसके लिए पूरे उत्तर भारत से राजपूतों को बुलाया गया था। कार्यक्रम में लगभग 2500 लोग मौजूद थे, जिसमें शिमलाना और निकटवर्ती गांव के राजपूतों के अतिरिक्त उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ से आए लगभग 800 लोग थे। कार्यक्रम सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक चलना था। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथियों में से एक शेर सिंह राणा भी था।
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उस दिन सुबह लगभग 9 बजे शब्बीरपुर के कुछ राजपूत युवक अपने गांव से डीजे लेकर उपरोक्त कार्यक्रम में भाग लेने के लिए निकले। उनके साथ शिमलाना के लोगों के अतिरिक्त कुछ बाहरी लोग भी थे। गांव के लोग बताते हैं कि शब्बीरपुर के जाटव प्रधान (मुखिया) शिव कुमार ने डीजे को लेकर कुछ टिप्पणी की। इससे पहले 14 अप्रैल को शब्बीरपुर के दलितों को शिमलाना के राजपूतों की शिकायत के कारण आम्बेडकर जयंती आयोजित करने की अनुमति प्रशासन से नहीं मिली थी। प्रधान ने उकसावे की ऐसी कोई खास बात नहीं की थी, जिससे मार-पीट की नौबत आ जाए। लेकिन डीजे ले जा रहे राजपूत अप्रत्याशित रूप से भड़क उठे और वहां एक बडा बवाल खड़ा कर दिया। राजपूतों की ओर से कट्टे और देशी पिस्टल लहराए जाने लगे, उन्होंने
फ़ायरिंग भी की, जिसके जबाब में दलितों ने अपने घरों की छत से और बाहर निकल कर पत्थर चलाना शुरू कर दिया। पत्थरबाजी से राजपूत भागे लेकिन फिर पहले से ज्यादा संख्या में जुट गए। दलितों ने फिर पत्थर चलाए। इस प्रकार दो-तीन घंटे पर दोनों पक्षों के बीच खींच-तान चलती रही और गांव रण-क्षेत्र बना रहा। इस समय राजपूतों की संख्या लगभग पच्चास थी और दलितों की ओर से लगभग पूरा गांव लड रहा था।
जिस समय शब्बीरपुर में यह घटना हो रही थी, उस समय शिमलना में जयंती का कार्यक्रम शुरू हो चुका था और वक्ताओं के भाषणों का दौर जारी था। शब्बीरपुर की घटना की सूचना कार्यक्रम के मंच पर पहुंची तो सभी राजपूत उद्वेलित हो उठे। कुछ वक्ता खडे हुए और शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने मंच से कहा कि पुलिस वहां पहुंच रही है, इसलिए कार्यक्रम स्थल से कोई भी वहां न जाए। (हालांकि इस बीच 50-60 युवा शब्बीरपुर की ओर निकल चुके थे)। लेकिन मंच पर मौजूद शेर सिंह राणा ने कहा कि उसके मोबाइल पर सूचना आई है कि वहां तीन-चार राजपूतों को गोली लगी है। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में दिल पर पत्थर रखकर कार्यक्रम जारी रखना कायरता है। उसने कार्यक्रम को तत्काल स्थगित करके शब्बीरपुर चलने की सलाह दी। लेकिन अन्य वक्ता उससे सहमत नहीं हुए। वे समझ रहे थे कि इस समय इस उत्तेजित भीड को शब्बीरपुर भेजने का अर्थ क्या है। कार्यक्रम चलता रहा लेकिन राणा बार-बार कार्यक्रम खत्म कर शब्बीरपुर चलने पर जोर देता रहा। जब अन्य लोग उससे सहमत नहीं हुए तो उसने तुरूप का पत्ता खेला और माइक लेकर घोषणा कर दी कि “अपने भाइयों के खून के बाद मुझसे कार्यक्रम में रहा नहीं जा रहा। जिसे न जाना हो, न जाए, लेकिन मैं यहां अब नहीं रूक सकता। आप लोग कार्यक्रम जारी रखो। मैं अकेला अपने भाइयों को देखने जा रहा हूं”।
कार्यक्रम के घटनाक्रम का उपरोक्त ब्योरा शिमलाना के राजपूतों ने दिया और स्वयं राणा ने भी हमसे बातचीत में यह बात घूमा-फिरा कर स्वीकार की। (देखें वीडियो)
मुख्य अतिथि राणा द्वारा मंच से की गई इस घोषणा के बाद कार्यक्रम का स्थगित हो जाना स्वभाविक था। शिमलाना से लगभग 1000 उत्तेजित राजपूत, जिसमें बडी संख्या में बाहरी लोग भी शामिल थे, शब्बीरपूर की ओर कूच कर गए और वहां पहुंच कर चुन-चुन कर जाटवों के घर जलाए। यह जानना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि घर सिर्फ जाटवों के जलाए गए। जाटवों के घर के बगल में नाई, अन्य ओबीसी जातियों यहां तक की दलित समुदाय के वाल्मिकियों के भी घर थे, उन पर हमला नहीं किया गया। यह जानना भी दिलचस्प है कि राजपूतना की शान को बरकरार रखने के लिए राजपूतों ने वहां कोई लूट-पाट नहीं की। गांव के कुछ घरों में शादी थी, वहां नगदी, आभूषण व अन्य कीमती सामान आदि भी थे। उसे उन्होंने लूटा नहीं, बल्कि आग के हवाले कर दिया।
जाटवों के घर जलाए जाने से पहले जो संघर्ष हुआ था, वास्तव में उसमें कोई मौत हुई ही नहीं थी। तीन-चार राजपूत युवाओं को गोली लगने की खबर पूरी तरह झूठ थी। उस दौरान एक निकटवर्ती गांव रसूलपुर का एक युवक पत्थर लगने से घायल हो गया था, जिसे दूसरे राजपूत युवक अपने साथ ले गए थे। बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी। सहारनपुर के डीएम बताते हैं कि उसके नाक पर पत्थर लगा था तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी मौत दम घुटने से हुई थी (देखें, नीचे डीएम से बातचीत)
राणा और राजपूत रेजिमेंट
सहारनपुर जिले में फारवर्ड प्रेस की टीम को कुछ दलित युवाओं ने बताया कि एक राजपूत रेजिमेंट का गठन किया गया है, जो पिछले कुछ समय से सक्रिय हो रही है। हमने अपनी पड़ताल में पाया कि शब्बीर की घटना से पहले घडकौली गांव में इस कथित रेजिमेंट की एक बैठक हुई थी, जिसमें गांव के जाटवों द्वारा लगाए गए “द ग्रेट चमार” वाले बोर्ड हटाए जाने की मांग प्रशासन से की गई थी तथा अल्टीमेटम दिया गया था कि अगर बोर्ड नहीं हटाया गया तो रेजिमेंट इसे स्वयं उखाड फेकेगी। हमें लोगों ने यह भी कहा कि रेजिमेंट का गठन शेर सिंह राणा ने किया है तथा उसके साथ क्षेत्र के 50-60 युवक सक्रिय रूप से जुडे हुए हैं।
शिमलाना के राजपूतों ने भी इस बात की ताकीद की कि कथित रेजिमेंट से जुडे लोग भी महारणा प्रताप जयंती में शामिल थे। स्वयं राणा ने भी साक्षात्कार में हमसे कहा कि उस दिन राजपूत रेजिमेंट की एक बैठक अलग कमरे में हुई थी। हालांकि उसने कहा कि वह रेजिमेंट से नहीं जुडा है। लेकिन घटना के दिन की एक तस्वीर फारवर्ड प्रेस के पास है, जिसमें राणा शिमलाना में कुछ युवाओं के साथ अलग कमरे में महाराणा प्रताप जयंती के बैनर के साथ पोज दे रहा है।
शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती के आयोजन के पीछे कौन था?
इस साल शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन पहली बार किया गया था। वह भी इतना भव्य कि कई राज्यों से अतिथि बुलाए गए। इस आयोजन के पीछे कौन था? इसके लिए धन की व्यवस्था किसने की?
गांव के प्रधान-पति वीरपाल सिंह, जो स्वयं राजपूत हैं, इस आयोजन से अपनी नाराज़गी छुपाते नहीं है और कहते हैं कि यह आयोजन बाहरी लोगों ने किया था तथा मुखिया होने के बावजूद उनसे सहमति तक नहीं ली गई थी। वे बताते हैं कि बाहरी आयोजकों ने गांव के 6-7 युवाओं को अपने विश्ववास में लेकर यह सारा खेल रचा (देखें वीडियो)। वीरपाल सिंह बाहरी आयोजकों और गांव के उनके विश्वासपात्र युवाओं का नाम उजागर करने से इंकार करते हैं।
सवाल यह है कि एक सुदूर गांव में इस प्रकार के आयोजन के लिए परदे के पीछे से कौन काम कर रहा था? क्या वही, जो आयोजन का मुख्य अतिथि था?
किस केमिकल से जलाए गए जाटवों के घर?
शिमलाना से एक हजार लोगों की भीड़ जिस ओर से आई, उस ओर सबसे पहले शब्बीरपुर का रविदास मंदिर था। इस मंदिर परिसर में डॉ आंबेडकर की प्रतिमा लगाने के लिए एक ऊंचे चबूतरे का निर्माण किया गया है। प्रशासन ने राजपूतों की शिकायत के कारण यहां प्रतिमा लगाने की अनुमति नहीं दी है। हमालवार रविदास मंदिर में तोडफोड करते हुए, घरों को आग लगाते हुए, जो जाटव महिला-पुरूष मिले, उन्हें पीटते हुए आगे बढे। गांव में उन्हें जो पहला जाटव घर मिला, उसमें शादी की तैयारियां चल रही थीं। उस घर को उन्होंने पूरी तरह नेस्तानबूद कर दिया। उसके आगे गांव की मुख्य गली के किनारे-किनारे जाटवों के जो घर थे, सभी में आग लगा दी गई।
शब्बीरपुर के जाटव महिला-पुरूष, जो घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं, तथा जिनकी पिटाई राजपूतों ने की, वे बताते हैं कि भीड में लगभग चालीस-पचास युवक ही थे, जो आग लगा रहे थे। उनके हाथों में बॉल के आकार की बैलूननूमा कोई चीज थी, जिसे वे घरो में फेंक रहे थे। उस बैलून के जमीन अथवा किसी भी ज्वलशील चीज – छप्पर, विस्तर, भूसे का ढेर आदि – से टकराते ही आग का पव्वारा फूट पडता था। उसमें कोई केमिकल था, जिसमें आग लगाने के लिए माचिस की जरूरत नहीं थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने हमें गांव में जगह-जगह उस कथित केमिकल के काले रंग के निशान दिखाए। ये निशान उन जगहों पर थे, जहां सीमेंट की दीवार थी और बैलून के टकारने के बाद केमिकल तो बिखर गया था, लेकिन सीमेंट होने के कारण आग नहीं लग सकी थी।
इन बैलूनों का महाराणा प्रताप जयंती पर मंगाए जाने से स्पष्ट है कि हमले की तैयारी पहले से थी और इसके पीछे किसी न किसी संगठन का हाथ है।
पुलिस की जांच में आग लगाने के लिए किए जाने वाले इस केमिकल को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है तथा केमिकलों के निशान की कोई फारेंसिक जांच नहीं करवाई जा रही है।
पुलिस पूरी घटना को लेकर जिले के एसएसपी सुभाषचंद्र दुबे की भूमिका बहुत ही विवादास्पद रही है। उन्होंने स्थानीय अखबारों में लगतार दलितों के विरूद्ध खबरें छपवाई। केमिकल वाले बैलून की बात दर्जनों प्रत्यक्षदर्शियों के कहने के बावजूद वे इसे रिकार्ड में दर्ज न करने पर अडे हुए हैं। रसायन विभाग के एक प्राध्यापक बताते हैं कि इस प्रकार का विस्फोटक बनाया जाना संभव है। इसे “ डाइनाइट्रोपोलिन-ट्राइनाइट्रौपोलिन” नामक रसायान से भी बनाया जा सकता है, इसके अतिरिक्त इस प्रकार का बैलून “सिपिकरिक” नामक रासयन से भी तैयार किया जा सकता है। इनमें टक्कर लगते ही बहुत तेजी से आग लगती है।
फारवर्ड प्रेस टीम में शामिल पत्रकार संजीव चंदन ने इस पूरे प्रसंग में सहारनपुर के डीएम नागेंद्र प्रसाद सिंह और एसपी सुभाषचंद्र दुबे से फोन पर बातचीत की। मामले को समझने के लिए बातचीत के निम्नांकित अंश देखें। इन दोनों अधिकारियों के बयानों के विरोधाभास स्वयं ही अपनी कहानी कहते हैं।
एसएसपी का कथन (19 मई की बातचीत)
संजीव चंदन : शब्बीरपुर में जो आग लगी है क्या उसमें किसी केमिकल का इस्तेमाल हुआ है?
एसएसपी : कोई भी आग, मतलब भूसे और कंडे की आग, अगर चौबीस घंटे तक न भी बुझाई गई हो तो बुझ जाती है। वो गाँव है, मैं भी गाँव का ही रहने वाला हूँ। गाँव में कच्चे घर होते हैं, छप्पर के नीचे खाना बनता है। गाँव में प्रतिदिन कूड़े भी जलाये जाते हैं। पांच तारीख को लगी आग का धुंआ आपको अठारह-उन्नीस तारीख तक नहीं देखेंगे।
संजीव चंदन : नहीं मैं तो केमिकल के दाग के बारे में पूछ रहा हूँ
एसएसपी : वह तो धुंआ हो सकता है। मान लीजिये किसी दीवाल पर कोई जलने का दाग है और आपने दुबारा चूना नहीं लगाया तो पांच साल तक बना रहेगा कालापन।
संजीव चंदन : नहीं हमें ..
एसएसपी : नहीं ऐसा कुछ नहीं है यह पूरी तरह हैपोथेटिकल चीज है। शब्बीरपुर तो हम 7 बार गये हैं 5 से 12 तक।
संजीव चंदन : नहीं मैं तो धुंए की बात नहीं कर रहा हमें लगा कि पेट्रोल या डीजल की जगह किसी केमिकल का…
एसएसपी : नहीं ऐसा कुछ नहीं है।
संजीव चंदन : पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्या कहती है, एक मौत को लेकर?
एसएसपी : दम घुटने से मौत हुई है। बाकी उसे चोट है सर पर, लेकिन उसे मृत्यु का कारण नहीं माना गया है, कारण दम घुटना माना गया है।
संजीव चंदन : घडकौली गांव के बारे में क्या रिपोर्ट है आपको? वहाँ जो ‘द ग्रेट चमार बोर्ड’ है उसे हटाने को लेकर कोई धमकी दी गई है क्या?
एसएसपी : इसी आदमी (चन्द्रशेखर आजाद) ने बाबा साहब अम्बेडकर की प्रतिमा पर खुद कालिख लगाई थी और सारा हंगामा कराया था।
डीएम
का कथन, 18 मई 2017 की बातचीत
संजीव चंदन : राजपूत रेजीमेंट बनने की कोई सूचना है आपके पास?
डीएम : बन क्या रहा है, एक आदमी है, वह कह रहा है कि भीम सेना है तो हमारी भी सेना होनी चाहिए
संजीव चंदन : वह आदमी क्या शेर सिंह राणा है?
डीएम : हाँ रुड़की से आया है वह यहाँ पर। हालांकि न ऐसा रेजिमेंट बना है और यहाँ के लोग न बनने देंगे। क्योंकि यहाँ जितने भी जिम्मेदार लोग हैं समाज के, सब से मेरी बात हो गई। सब इसके पक्ष में नहीं हैं।
संजीव चंदन : मेरी शेर सिंह राणा से बात हुई, वह तो पूरे हिन्दू फोल्ड में बात कर रहे हैं। एक तरफ हिन्दू फोल्ड में बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ राजपूत रेजिमेंट बना रहे हैं।
डीएम : ये कन्फ्यूज्ड लोग हैं। इनको सोशायटी मे जब कोई स्टेटस नहीं मिलता है तो ऐसे ग्राउंड पर ही स्टेटस जेनेरेट करने की कोशिश करते हैं। वह फ्रंट पर तो आया ही नहीं कभी हमलोगों के सामने। लेकिन यह है कि नजर है इंटेलिजेंस की इनकी सारी गतिविधियों पर। अगर डिस्टर्ब करने की कोशिश करेंगे ये तो इनपर कार्यवाई की जाएगी। इंटेलिजेंस निगाह रखे हुए है, पुलिस निगाह रखे हुए है।
संजीव चंदन : एक दो चीजें प्राइमरी इन्फॉर्मेशन के तौर पर समझना चाह रहे थे, जैसे शब्बीरपुर में हमलोगों ने देखा कि आग जो लगाई गई उसमें केमिकल का इस्तेमाल हुआ है। हो सकता है हमारी समझदारी का मसला हो लेकिन ऐसा लगा जैसे कि केमिकल का इस्तेमाल हुआ हो, एक और दूसरा कि मारे गये लड़के का पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वह दम घुटने से मरा था- ये दोनो बात हम कंफर्म करना चाहेंगे।
डीएम : ऐसा है न कि कोई कंक्लुसिव रीजन नहीं है। डाक्टर लोग कंक्लुसिव नहीं लिखते हैं, वे लोग संकेत बताते हैं। जैसे दम घुटना कई कारणों से हो सकता है, कोई गिर गया हो, उसके ऊपर चार लोग रौंद दिए हों, जब भीड़ भागी हो तो, तब भी दम घुट सकता है, और वो बहुत सारे कारण हैं, उस पर तो टिप्पणी तभी कर पाएंगे जब इन्वेस्टीगेशन हो जायेगा। हां प्राइमरली उन्होंने ऐसा लिखा है।
संजीव चंदन : और कोई चोट?
डीएम : चोट तो नाक पर थी उसकी। कोई बड़ी चोट नहीं थी, जिससे कि डेथ का कारण हो। जैसे कोई टीपिकल इंजूरी बाहर से नहीं दिख रही थी। उनका यह कहना है कि इंजूरी डेथ का एक कारण हो सकती है। एक कारण हो सकता है कि दम घुटा हो। हम कोई टिप्पणी मेडिकल पर नहीं कर सकते हैं। इन्वेस्टीगेशन तो पुलिस कर रही है ना। उस पर हम कोई ऑथेंटिक टिप्पणी नहीं कर सकते।
संजीव चंदन : ये केमिकल वाले प्रसंग में भी आप नहीं कह पाएंगे कुछ?
डीएम : इसके बारे में भी हम नहीं कह पाएंगे क्योंकि पुलिस जांच कर रही है।
– साथ में संजीव चंदन, अनिल कुमार और अरविंद सागर