बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर द्वारा गठित रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इन्डिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकाारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले हाल ही में अखबारों की सुर्खियां तब बने जब उन्होंने भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट में आरक्षण की बात कही। कथित तौर पर भद्र मीडिया ने उनके बयान को चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार के बाद हल्के रूप में लिया। परंतु फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने इसकी गंभीरता का वर्णन किया और साथ में क्रीमीलेयर व पिछड़े वर्गों के लिए नये आयोग के गठन को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की नयी रणनीति का खुलासा भी किया। प्रस्तुत है उनके साथ की गयी बातचीत का संपादित अंश :
फारवर्ड प्रेस : आपने अभी हाल ही में क्रिकेट में दलितों-पिछड़ों को आरक्षण देने की बात कही। यह विचार कैसे आया?
आठवले : यह बात मेरे जेहन में तब आयी जब इंगलैंड में भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान से बुरी तरह हार गयी। हालांकि मैं यह मानता हूं कि खेल में हार-जीत होती रहती है परंतु चैंपियन्स ट्राफी के फाइनल में भारतीय टीम जिस बुरी तरीके से हारी, वह सभी को चौंकाने वाली थी। इससे पहले टीम ने शुरूआती मैच में पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था। पहली बार तो यह यकीन ही नहीं हुआ कि विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ियों के रहते टीम इंडिया कैसे हार सकती है। सभी खिलाड़ी जिस तरीके से एक के बाद आउट हो रहे थे, मैंने यह सवाल उठाया था कि कहीं मैच फिक्स तो नहीं था। तभी मैंने यह भी कहा कि क्रिकेट में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए।
फारवर्ड प्रेस : आपके हिसाब से इस तरह के आरक्षण का क्या महत्व है?
आठवले : मैं यह मानता हूं कि दलित-पिछड़े वर्ग के बच्चों में भी खेल प्रतिभा है। जैसे आज वंचित समाज के बच्चे आरक्षण के कारण मौका मिलने पर इंजीनियर और डॉक्टर बन रहे हैं, वैसे ही यदि उन्हें मौका दिया जाय तो वे भी अच्छे खिलाड़ी बन सकते हैं। मैं यह भी मानता हूं कि खेलों में कहीं न कहीं दलित व पिछड़े वर्ग की प्रतिभाओं के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जाता है। क्रिकेट में ही देख लिजीये। विनोद कांबली के बाद भारतीय क्रिकेट में कोई बड़ा खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का प्रर्दशन नहीं कर सका।
फारवर्ड प्रेस : वर्ष 2013 में यह खबर आयी थी कि मुंबई के लिए अंडर-14 श्रेणी में सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर को टीम में शामिल कर लिया गया लेकिन उससे अच्छा प्रदर्शन करने वाले पिछड़े वर्ग के खिलाड़ी भूपेन ललवानी(नाबाद 398 रन) और स्पिनर सत्यक पटेल(एक पारी में छह विकेट) को छांट दिया गया था।
आठवले : निश्चित तौर ऐसा नहीं होना चाहिए था। सचिन तेंदुलकर के बेटे को जैसे टीम में शामिल किया गया, वैसे ही भूपेन ललवानी और सत्यक पटेल जैसे प्रतिभावान खिलाड़ियों को भी लिया जाना चाहिए था। इसलिए तो मैंने क्रिकेट में आरक्षण की बात कही है।
फारवर्ड प्रेस : क्रिकेट में आरक्षण मिले, इसके लिए बतौर मंत्री आप भारत सरकार से खेल नीति में बदलाव की अनुशंसा करेंगे?
अाठवले : आपने सही कहा। आरक्षण केवल क्रिकेट में ही नहीं, बल्कि सभी प्रकार के खेलों में मिले। इसके लिए नीतिगत बदलाव किया जाना चाहिए। एक मंत्री के रूप में इसके लिए मैं पहल करूंगा।
फारवर्ड प्रेस : खेलों के प्रति आपकी दिलचस्पी प्रेरणादायक है। इसकी कोई खास वजह?
आठवले – खेलों के प्रति बचपन से लगाव था। किशोरावस्था में स्कूल में बॉलीबॉल, क्रिकेट और फुटबॉल आदि खेलता था। लेकिन बाद में अच्छा खिलाड़ी तो नहीं बन सका लेकिन राजनीति का अच्छा खिलाड़ी बन गया।
फारवर्ड प्रेस : क्रीमीलेयर को लेकर एक सवाल। केंद्र सरकार द्वारा क्रीमीलेयर की सीमा बढ़ाने की बात कही गयी थी। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?
आठवले : आपने सही कहा। पिछड़े वर्गों के लिए केंद्रीय आयोग ने इस संबंध में अपनी अनुशंसा की है। वर्तमान में यह सीमा 6 लाख रुपए है। लेकिन हम इसे बढ़ाकर 10 लाख तक करने जा रहे हैं।
फारवर्ड प्रेस : इसके लिए कोई समयावधि तय की गयी है?
अाठवले : समयसीमा तो नहीं लेकिन हम पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं और जल्द ही इस संबंध में मंत्रालय द्वारा पहल की जाएगी।
फारवर्ड प्रेस : पिछड़े वर्ग के लिए केंद्रीय आयोग को निरस्त करने की अधिसूचना जारी की जा चुकी है और नये आयोग के गठन को लेकर संसद में बजट सत्र में विधेयक भी लाया गया था, लेकिन राज्यसभा में सरकार पारित नहीं करवा सकी। क्या सरकार फिर से इसे राज्यसभा में पेश करेगी?
आठवले : निश्चित तौर पर हम नये विधेयक को मानसून सत्र में लायेंगे। एक बार विधेयक पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और उनकी स्वीकृति मिलने के उपरांत अमलीजामा पहनाया जा सकेगा।
फारवर्ड प्रेस : एक आख़िरी सवाल। नेट के जरिए संपन्न हुए मेडिकल इंट्रेंस एग्जाम में आरक्षण को लेकर कई तरह की खबरें सामने आई हैं। आप क्या कहेंगे?
आठवले : कुछ जानकारियां हमारे संज्ञान में भी आई हैं। कुछ राज्यों में इस तरह की खबर आई हैं कि आरक्षित कोटे के मेरिट धारी अभ्यर्थियों का चयन सामान्य कोटे में नहीं किया जा रहा है। यह गलत है और बतौर सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री मैं स्वयं इस मामले को देखूंगा।
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