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तमिलनाडु के थनथाई पेरियार द्रविड़ कड़गम (टीपीडीके) के कार्यकर्ता आज के दिन बुहत अधिक संतुष्ट हैं, क्योंकि वे सूअर को आनुष्ठानिक जनेऊ या “पवित्र धागा” पहनाने के अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के संदर्भ में मीड़िया और जनता का ध्यान खींचने में सफल हुए हैं। जैसा कि सबको ज्ञात है कि सूअर को जनेऊ पहनाने का यह कार्यक्रम तमिल महीने अवदी मे पड़ने वाले आवनी अविट्टम के दिन होना तय था। प्रत्येक वर्ष इसी दिन ब्राह्मण पुरूष एक आनुष्ठानिक समारोह में अपना धागा बदलते हैं, जिसे हिंदी में आमतौर जनेऊ के रूप में जाना जाता है। तमिल में इसे ‘पूननूल’ कहा जाता है। उनका ऐसा करने का उद्देश्य खुद को ब्राह्मण के रूप में चिन्हित करना होता है। इस वर्ष यह दिन 7 अगस्त को पड़ा था।
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हालांकि कार्यक्रम के बाद टीपीडीके के नौ सदस्यों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें तमिल पिथान, जीवनानंदम, बालन, चन्द्रन, नागराज, कन्नाडसन, वेंकटेश, सेनवाम और विक्की हैं। इन लोगों को तब गिरफ्तार किया गया, जब वे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने का प्रयास कर रहे थे। कार्यक्रम स्थल संस्कृति कॉलेज से केवल 50 मीटर दूर रायपेट्टी में अन्ना की प्रतिमा के पास था। टीडीपीके के कार्यकर्ता अपने साथ चार सूअर ले जा रहे थे, जिन्हें जनेऊ पहनाना था। ये कार्यकर्ता ब्राह्मणवादी आचार-विचारों के विरोध में नारे लगा रहे थे और अपने संघर्ष का समर्थन कर रहे थे। पहले से ही भारी संख्या में उपस्थित पुलिस ने झपट्टा मार कर कार्यकर्ताओं को पकड़ लिया और सूअरों को अपने कब्जे में ले लिया।
गिरफ्तार किए गये लोगों को पुलिस अपने साथ ले गई। इस संदर्भ में टीपीडीके के महासचिव कोवाई रामकृष्णन बताते हैं कि “ हमें अभी तक यह नहीं मालूम चल सका है कि पुलिस ने हमारे कार्यकर्ताओं के खिलाफ किन-किन धाराओं के तहत मुकदमा किया है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने देर रात कार्यकर्ताओं को स्थानीय कोर्ट ले गयी जहां से उन्हें पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया। वे अपनी बात को आगे बढाते हुए कहते हैं कि हमारे कार्यकर्ता इस बात के लिए मानसिक तौर पूरी तरह से तैयार थे। हमें उम्मीद थी कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार करेगी”।
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बहरहाल 7 अगस्त को सूअरों को जनेऊ पहनाना है, इसकी घोषणा पहले ही कर दी गई थी। जैसी कि उम्मीद थी, इस मुद्दे पर विवाद खड़ा हुआ। ब्राह्मणवादी संगठनों ने टीपीडीके द्वारा जारी पोस्टरों की ‘आपत्तिजनक भाषा’ और ‘अपमानजनक चित्रों’ की निंदा की थी। ब्राह्मणों के संगठनों ने कृष्णागिरी, कोयम्यबटूर, त्रिपुर और इरोड जिलों में सूअर को जनेऊ पहनाने के कार्यक्रम का विरोध किया। इन पोस्टरों में एक भारी-भरकम सूअर को जनेऊ पहने मुस्कराते हुए चित्रित किया गया था और इस कार्यक्रम की टैग लाइन की घोषणा की गई थी।
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टीपीडीके समर्थक बताते हैं कि ‘विष्णु के कई अवतार हैं, सूअर (वाराह) उनमें से एक है’। वे आधुनिक युग के एक मंदिर की संरचना में गोपुरम का चित्र दिखाते हुए बताते हैं कि इसमें एक सूअर (वाराह) जनेऊ पहने हुए है। टीपीडीके के सदस्य कहते हैं कि “ हम कुछ भी ऐसा नहीं कर रहे हैं, जिसे ब्राह्मण पहले ही कर न चुके हों। इंटरनेट पर प्राचीन स्मारकों के हजारों चित्र हैं, जिसमें वराह अवतार जनेऊ पहने हुए है”।
आखिर टीडीपीके ने विरोध का यह तरीका ही क्यों चुना?
इस संदर्भ में टीपीडीके सदस्य कहते हैं कि “ ब्राह्मण यह अनुष्ठान यह दिखाने के लिए करते हैं कि केवल उन्हें ही, यह पवित्र धागा पहनने का अधिकार है। हालांकि अन्य जातियां भी जनेऊ पहनती हैं, जिसमें कुछ शूद्र जातियां भी शामिल हैं। इन जातियों को कभी भी आवनी अविट्टम के दिन के इस समाराहों में शामिल नहीं किया जाता है। वे आगे कहते हैं कि यह अनुष्ठान यह दिखाता है कि जनेऊ पहनने का अधिकार वेद केवल ब्राह्मणों को देते हैं”।
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टीपीडीके के प्रवक्ता कहते हैं कि “ यह हमारी सबसे बड़ी सफलता है कि ब्राह्मणों को हमारा विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा”। वे आगे कहते हैं कि “ बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं, जिन मुद्दों का विरोध करने लिए तमिल समाज के अधिकांश हिस्से एकजुट हो जाते हैं। जैसे कि कावेरी जल बंटवारा , कूडनकुलम, हाइड्रो कार्बन का मुद्दा, किसानों का मुद्दा। लेकिन ये लोग (ब्राह्मण) इन मुद्दों पर भी एक समुदाय के रूप में एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए, कभी भी सामने नहीं आते। वे इन मसलो से ऐसे दूर रहते हैं, जैसे उनका इससे कोई लेना-देना न हो, क्योंकि ये चीजे उनको प्रभावित नहीं करतीं। वे लोग बहुत सुरक्षित स्थिति में हैं। यहां तक की विशेषाधिकार हासिल होने के चलते, पानी की कमी का भी सामना नहीं करते। लेकिन चूंकि यह मामला उनकी पहचान और सामाजिक हैसियत का है, तो वे (ब्राह्मण) सड़कों पर उतर आए और यह भी मांग उठाई कि फिल्मों में ब्राह्मणों के अपमानजनक और उपहासात्मक चित्रण को बंद किया जाए”।
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