h n

सत्तर साल बाद भी ओबीसी के साथ भेदभाव : शरद यादव

ओबीसी में शामिल जातियों के लोग भारत के मूल निवासी हैं। सत्तर साल बाद भी उन्हें उनका वाजिब हक नहीं मिल सका है। दूसरे राष्ट्रीय ओबीसी अधिवेशन में केंद्र सरकार को इसके लिए आड़े हाथों लेते हुए सांसद शरद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी निशाना साधा

शरद यादव

बीते 7 अगस्त को नई दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब सभागार में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के तत्वावधान में आयोजित दूसरे अधिवेशन में राज्यसभा सांसद शरद यादव को सम्मानित किया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि आजादी हासिल हुए 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं और देश का बहुसंख्यक समाज अभी भी इंसाफ से वंचित है। हालत यह है कि यह समाज जहां था, वहीं पर अटका हुआ है। इसकी वजह बताते हुए यादव ने साफ किया कि मूल निवासी पिछड़े समाज के साथ देश के शासकों ने न्याय नहीं किया। साथ ही इसके नाम पर राजनीति भी खूब की गयी। उन्होंने कहा कि यदि यह राजनीति समाज के विकास के लिए की गयी होती तो आज यह बहुसंख्यक समाज विकास के नये कीर्तिमान रचता।

दूसरे ओबीसी राष्ट्रीय अधिवेशन के मौके पर मंचासीन नेतागण

इस मौके पर खचाखच भरे सभागार में लोगों का आहवान करते हुए शरद यादव ने कहा कि आज सभी को अलग-अलग लड़ने के बजाय एक होकर लड़ना चाहिए। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री सह जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का नाम लिये बगैर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वे पिछले 43 वर्षों से संसद में हैं। हमेशा देश को बांटने वाली शक्तियों का विरोध किया है। वे आगे भी करते रहेंगे। उन्होंने केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज बहुसंख्यक मूलनिवासियों के कल्याणार्थ शुरू किये गये योजनाओं में कटौती की जा रही है। इसका सबसे अधिक असर शिक्षा पर पड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में मूल निवासी ओबीसी के लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

अधिवेशन में महिलाओं की रही महत्वपूर्ण भागीदारी

इससे पहले राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ की ओर से उन्हें सम्मानित किया गया। इस मौके पर सांसद हुकुमदेव नारायण् यादव, हंसराज अहीर, सांसद नाना पटोले, पूर्व सांसद डॉ. खुशाल बोपचे और न्यायमूर्ति व्ही ईश्वरैया भी मौजूद थे। अधिवेशन की अध्यक्षता महासंघ के अध्यक्ष प्रोफेसर बबनराव तायवाडे ने की। इस अवसर पर महासंघ  की ओर से कई मांगों को रखा गया। इनमें सामाजिक जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने, केंद्रीय स्तर पर स्वतंत्र ओबीसी मंत्रालय की स्थापना करने, मंडल आयोग और नच्चियप्पा समिति व स्वामीनाथ आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने, ओबीसी के खेत-मजदूरों को साठ वर्ष की उम्र पार करने के बाद पेंशन देने, ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर खत्म करने, ओबीसी कर्मचारियों को प्रोमोशन में आरक्षण देने, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ओबीसी के लिए सीटें आरक्षित करने, न्यायपालिका में आरक्षण लागू करने, ओबीसी के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक अधिकार देने और केंद्र व राज्य सरकार के कार्यालयों में ओबीसी के रिक्त पदों को तत्काल भरने की मांग शामिल हैं।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूजीसी के नए मसौदे के विरुद्ध में डीएमके के आह्वान पर जुटान, राहुल और अखिलेश भी हुए शामिल
डीएमके के छात्र प्रकोष्ठ द्वारा आहूत विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि आरएसएस और भाजपा इस देश को भाषा...
डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए बहुआयामी प्रयास आवश्यक
आज एक ऐसे व्यापक केंद्रीय कानून की जरूरत है, जो डायन प्रथा को अपराध घोषित करे और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलना सुनिश्चित करे।...
राहुल गांधी का सच कहने का साहस और कांग्रेस की भावी राजनीति
भारत जैसे देश में, जहां का समाज दोहरेपन को अपना धर्म समझता है और राजनीति जहां झूठ का पर्याय बन चली हो, सुबह बयान...
‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ नई किताब के साथ विश्व पुस्तक मेले में मौजूद रहेगा फारवर्ड प्रेस
हमारी नई किताब ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान : इतिहास का पुनरावलोकन’ पुस्तक मेले में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। यह किताब देश के...
छत्तीसगढ़ में दलित ईसाई को दफनाने का सवाल : ‘हिंदू’ आदिवासियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट
मृतक के परिजनों को ईसाई होने के कारण धार्मिक भेदभाव और गांव में सामाजिक तथा आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। जबकि...