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अपने विवाह की तैयारी

विवाह से एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य रेखांकित होता है और वह यह कि हम केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि व्यापक समाज के सदस्य हैं (व्यक्ति का संबंध केवल स्वयं से होता है जबकि समाज के सदस्य के तौर पर हमारे अस्तित्व का संबंध, अन्य लोगों के साथ हमारे संव्यवहार व रिश्ते से भी होता है)

प्रिय दादू,
आपके पत्र के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। अंशत: उस पत्र के कारण, मेरे माता-पिता ने यह तय किया है कि मेरा विवाह किसी ऐसे परिवार में किया जाना चाहिए जिसे मेरे परिजन अच्छे से जानते हों। क्या आप मुझे इस बारे में कोई सलाह देना चाहेंगे?

सप्रेम,
आशा

प्रिय आशा,
मुझे तुम्हारे माता-पिता के निर्णय के बारे में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। बहुत-बहुत बधाई और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

मैं तुम्हें क्या सलाह दूं? जब कोई विवाह करता है तो एक अर्थ में वह उसके वयस्क जीवन की असली शुरुआत होती है। हमारी परंपरा में विवाह ही किसी व्यक्ति के विद्यार्थी जीवन से गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का द्वार है।

विवाह से सामंजस्य बिठाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है परंतु विवाह से जुड़ा रोमांच और नयापन, इस चुनौती को आसान बना देता है। विवाह का एक अर्थ तो यह है कि आप एक नए घर में जाते हैं। विवाह के कारण घर बदलना अपेक्षाकृत आसान होता है। सामान्य स्थितियों में तो निवास स्थान में परिवर्तन किसी भी व्यक्ति के लिए भारी तनाव का सबब बन सकता है। शोध से पता चलता है कि आपके किसी नजदीकी व्यक्ति की मृत्यु के बाद, निवास स्थान में परिवर्तन सबसे अधिक तनावपूर्ण घटना होती है।

स्वाभाविकत:, इस परिवर्तन की प्रकृति इस पर भी निर्भर करती है कि विवाह के बाद तुम संयुक्त परिवार में रहोगी या केवल अपने पति के साथ। दोनों स्थितियों के अपने लाभ और हानियां हैं (यद्यपि मेरे विचार में सबसे बेहतर होगा कि तुम अपने माता-पिता और/या सास-ससुर के घर के नजदीक, अपने अलग मकान में रहो)।

विवाह से एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य रेखांकित होता है और वह यह कि हम केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि व्यापक समाज के सदस्य हैं (व्यक्ति का संबंध केवल स्वयं से होता है जबकि समाज के सदस्य के तौर पर हमारे अस्तित्व का संबंध, अन्य लोगों के साथ हमारे संव्यवहार व रिश्ते से भी होता है)।

कुछ व्यक्ति हमेशा यह प्रयास करते हैं कि वे अपने आसपास के लोगों पर हावी रहें। ऐसे लोग अपने में ही सिमटे रहते हैं। दूसरी ओर, वे लोग, जो अन्यों पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश नहीं करते, अपने आसपास के लोगों से बेहतर समन्वय बनाने में सफ ल होते हैं। परंतु कोई व्यक्ति अपनी चलाने का कितना ही आदी क्यों न हो, वह अपने जीवन से संबंधित कुछ लोगों के मामले में अपनी आदतें बदलता ही है। इनमें शामिल हैं माता-पिता, जीवनसाथी, बच्चे और मित्र। इसके विपरीत, अपने सहकर्मियों के मामले में वह अपने व्यवहार में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं करता। परंतु आश्चर्य न करना यदि सब पर दादागिरी करने वाले व्यक्ति को भी तुम उसके आफि स में बॉस के सामने अत्यंत विनम्रतापूर्वक व्यवहार करते देखो!

मैं जो कहना चाह रहा हूं वह केवल यह है कि तुम्हारा और तुम्हारे होने वाले पति का स्वभाव कैसा भी हो, शादी के बाद तुम्हें उसे बदलना होगा। इसका एक कारण यह है कि विवाह अपने साथ ढेर सारी जिम्मेदारियां लाता है। विवाह के बाद तुम्हें ‘मैं’ की बजाए ‘हम’ के संदर्भ में सोचना शुरू करना पड़ता है। विवाह के बाद हमारे व्यक्तित्व में इसलिए भी परिवर्तन आता है क्योंकि विवाह में दो ऐसे लोगों का मिलन होता है जिनकी अलग-अलग रुचियां और व्यक्तित्व होते हैं। विवाह के बाद तुम दोनों के व्यक्तित्व में कुछ चीजें जुड़ेंगी और कुछ घटेंगी, कुछ मजबूत होंगी और कुछ कमजोर।

सुनो और देखो

तुम्हें एक दूसरे से समन्वय बैठाना होगा। तुम एक-दूसरे के व्यक्तित्व और रुचियों के बारे में कई नई बातें जानोगी। परंतु यह तभी संभव हो सकता है जब तुम एक-दूसरे से खूब बातें करो ताकि तुम यह समझ सको कि तुम्हारा साथी क्या महसूस करता है, क्या सोचता है और किस प्रकार का आचरण करता है। बातचीत करने में महिलाओं का कोई सानी नहीं है। पुरुषों की तुलना में वे अपनी भावनाएं बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाती हैं। इसलिए तुम्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि उसकी तुलना में तुम कितना बोलती हो और इस पर भी कि तुम अपनी भावनाएं जितनी खुलकर व्यक्त करती हो, क्या वह भी करता है। अगर तुम्हारा पति ज्यादा बात नहीं करता और विशेषकर यदि वह अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं करता तो तुम्हें प्रश्न पूछकर और अन्य तरीकों से उसे इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह बातचीत करे और अपनी भावनाएं व्यक्त करे।

बातचीत से भी ज्यादा जरूरी है अवलोकन। हम भारतीय दूसरे व्यक्तियों के आचार-व्यवहार के अवलोकन द्वारा उनकी भावनाओं को समझने में सिद्धहस्त हैं। परंतु आप किसी व्यक्ति के हावभाव के आधार पर उसकी भावनाएं तभी समझ सकते हैं जब आप उसके प्रति फिक्रमंद हों। मेरे ससुर कुर्सी या पेड़ से भी ‘बातचीत’ कर सकते थे। वे एक कुशल इंजीनियर थे और अवलोकन द्वारा अजीवित पदार्थों की ‘आंतरिक भावनाओं’ को भी समझने में सक्षम थे।

अत: बातचीत तो महत्वपूर्ण है ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि तुम सामने वाले व्यक्ति के हावभाव और व्यवहार पर ध्यान दो और उसकी भावनाओं को समझने के लिए उसके स्थान पर स्वयं को रखकर देखो।

मेरी पीढ़ी में महिलाओं के लिए यह करना बहुत आसान और स्वाभाविक था। पुरुष इस काम में फि सड्डी थे। परंतु हम एक बदलती हुई दुनिया में रह रहे हैं और मैं देख रहा हूं कि कुछ पुरुष भी अब इस काम में सक्षम हो गए हैं। दूसरी ओर, कुछ महिलाएं, विशेषकर पेशेवर महिलाएं, उतनी ही असंवेदनशील बन गईं हैं जितने कि पुरुष हुआ करते थे।

मेरी तो यही सलाह होगी कि तुम दोनों एक-दूसरे से खूब संवाद करो और इसमें अपने कानों के साथ-साथ आंखों का भी इस्तेमाल करो। अर्थात् सुनो भी और देखो भी, ताकि तुम्हें केवल सतही चीजें न दिखें बल्कि तुम्हें यह भी समझ में आ सके कि तुम्हारा साथी असल में क्या सोच रहा है या महसूस कर रहा है।

मैं तुम्हें बता दूं कि विवाह से जो सबसे बड़ा सुख मिलता है वह सेक्स नहीं है। वह सुख मिलता है अंतरंगता से, वह सुख मिलता है किसी दूसरे व्यक्ति को हर तरह से समझने से और अपने शेष जीवन में उसकी फिक्र करने से। अभी बस इतना ही। मैं इस बारे में आगे भी लिखूंगा।

सप्रेम,
दादू

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

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लेखक के बारे में

दादू

''दादू'' एक भारतीय चाचा हैं, जिन्‍होंने भारत और विदेश में शैक्षणिक, व्‍यावसायिक और सांस्‍कृतिक क्षेत्रों में निवास और कार्य किया है। वे विस्‍तृत सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक मुद्दों पर आपके प्रश्‍नों का स्‍वागत करते हैं

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