वह मुंबई में मेरी नौकरी का दूसरा दिन था। मैं केवल पांच दिन पहले मुंबई आई थी क्योंकि मेरे पति वहां काम करते थे। हमारी शादी हुए तब एक महीना भी नहीं गुजरा था। मैं एक छोटे-से कस्बे में बड़ी हुई थी, जहां शाम के 6:30 बजे तक सड़कों पर चहल-पहल लगभग खत्म हो जाती है। मुंबई की विराटता और उसकी दौड़-धूप भरी, तेज रफ्तार जिंदगी मेरे लिए एक अजूबा थी। मैं अपना काम खत्म कर उस नए, अनजान शहर के विभिन्न इलाकों से गुजरती हुई घर पहुंची। मैंने खाना पकाया और अपने पति का इंतजार करने लगी। पिछले दिन, जब मैं 7:30 बजे घर पहुंची थी तब वे घर आ चुके थे। मुझे लग रहा था कि आज भी वे मुझसे पहले घर पहुंच चुके होंगे। मैं इंतजार करने लगी। कभी न रुकने वाली घड़ी के कांटे आगे बढ़ते गए। 8:30, 10:00, 12:00। जब 12:30 बज गए तब मुझसे रहा नहीं गया।
परंतु मैं कर क्या सकती थी? उन दिनों मोबाईल फोन नहीं हुआ करते थे। यह पेजर के युग से भी पहले की बात है। मेरे घर पर लैंडलाईन भी नहीं था। मैं अकेली थी और काफी घबराई हुई थी। मैंने अपने फोन की डायरी ढूंढने की कोशिश की। उसमें मेरे भाई का नंबर था जो मुंबई में ही रहता था। परंतु हाय री किस्मत! मैं अपनी फोनबुक आफिस में ही भूल आई थी।
मैंने अपने पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दरवाजा खोला और जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे पति अब तक घर नहीं आए हैं तब उन्होंने केवल इतना कहकर दरवाजा बंद कर लिया कि ‘इंतजार करिए, वे आ जाएंगे।’ उनके इस व्यवहार से मुझे बहुत धक्का लगा। जिस कस्बे से मैं आई थी, वहां तो इतना कहने पर पड़ोसियों की भीड़ मेरे घर पर इकट्ठा हो जाती और शायद उनमें से कुछ मेरे पति को खोजने निकल पड़ते। परेशानहाल, मैं अंधेरी रात में नीचे गई और बिल्डिंग के सिक्युरिटी गार्ड को अपनी समस्या बताई। उसने भी बिना कोई चिंता या घबराहट दिखाए केवल इतना कहा ‘आ जाएंगे।’
मैं घर वापस आकर चुपचाप बैठ गई। मैं सोचने लगी कि कल मैं क्या करूंगी। मैं अपने भाई से कैसे संपर्क स्थापित करूं? क्या मुझे पुलिस स्टेशन जाना चाहिए? बीच में मैंने कई बार लिफ्ट के दरवाजे के खुलने और बंद होने की आवाज सुनी। परंतु मेरे घर के दरवाजे की घंटी नहीं बजी। मुझे यह सोचकर बहुत अचंभा हो रहा था कि आज लोग इतनी देर रात घर क्यों लौट रहे हैं।
लगभग 1:30 बजे मैंने लिफ्ट का दरवाजा खुलने की आवाज सुनी और फिर मेरे घर की कॉलबेल बजी। मुझसे एक क्षण के लिए हिलते भी नहीं बना। फिर, मेरे पति ने आवाज दी। मैंने दरवाजा खोला और मैं फूट-फूट कर रोने लगी। मैं बहुत गुस्से में थी और भूखी भी। मैंने खाना लगाया और हम दोनों ने चुपचाप खाना खा लिया। मैं गुस्से में उबल रही थी। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उनकी एक मीटिंग थी-मानो इतना कहने मात्र से आशंकाओं और यंत्रणा के जिस दौर से मैं गुजरी थी, उसकी पूर्ति हो जाती।
‘चुप्पी’ के हथियार का प्रयोग न करें
अगले दिन सुबह मैं उठी, मैंने नाश्ता बनाया, अपने पति के खाने का टिफिन तैयार किया और घर में ताला लगाकर काम पर चली गई। मैं पूरे दिन तनावग्रस्त रही। शाम को मैंने घर वापस आकर घरेलू कामकाज निपटाए। मेरे पति 8 बजे वापस आ गए। वे मुझे देखकर मुस्कुराए परंतु मैं मुस्कुरा न सकी। वे मुस्कुराते रहे और फिर मैं रोने लगी। उन्होंने मुझे बैठने को कहा और फिर हमने पूरी गंभीरता से बातचीत की। हमने एक दूसरे को बताया कि शादी के बाद हमारी एक दूसरे से क्या अपेक्षाएं हैं। इन अपेक्षाओं को तब से लेकर आज तक, कुछ अपवादों को छोड़कर, हम दोनों पूरा करते आए हैं।
उन्होंने मुझे बताया कि पिछली शाम उनके आफिस में अचानक एक आवश्यक मीटिंग बुला ली गई। उनके पास मुझे सूचित करने का कोई तरीका नहीं था क्योंकि तब तक मैं अपने आफिस से निकल चुकी थी। उन्होंने कहा कि ‘मैं जानता हूं कि तुम डर गई होगी और तुम परेशान हो। तुम गुस्सा कर सकती हो, चिल्ला सकती हो, मुझसे शिकायत कर सकती हो परंतु कभी गुस्से में मुझे बताए बिना घर से मत जाना।’ हमने यह तय किया कि हम कभी एक दूसरे से संवाद बंद नहीं करेंगे।
यह बहुत छोटी सीे अपेक्षा थी (यद्यपि शुरुआत में इसे पूरा करना मुश्किल था) परंतु यह एक ऐसा नियम है, जिसका हम आज तक पालन करते आए हैं। इस कारण जब भी हममें मतभेद हुए हम, उन पर अपेक्षाकृत जल्दी विजय प्राप्त कर सके।
जब अलग-अलग पृष्ठभूमियों के दो लोगों में विवाह होता है तब उनके बीच मतविभिन्नता और मतभेद होने स्वाभाविक हैं। जरूरत इस बात की है कि हम एक दूसरे को समझने की कोशिश करें, बातचीत करें और समस्या का हल ढूंढने का प्रयास करना कभी न छोड़ें। अपने लिए कुछ वर्जनाएं निर्धारित कर लें और यह प्रण करें कि आपका गुस्सा कितना ही औचित्यपूर्ण क्यों न हो, आप एक दूसरे का सम्मान करना और एक दूसरे से प्यार करना नहीं छोड़ेंगे।
अपनी शादी के शुरुआती दिनों में ही, सोच-विचार कर, कुछ दिशा-निर्देश तय कर लें, ताकि आपको यह स्पष्ट रूप से पता रहे कि आपको क्या करना है और क्या नहीं। यदि आपने अभी तक ऐसे दिशा-निर्देश तैयार नहीं किए हैं तो आज ही यह काम कर डालें। यह एक ऐसी चीज है जो आपके वैवाहिक संबंधों को लंबे समय तक मधुर बनाए रखेगी।
समय निकालकर एक दूसरे के साथ बैठें, बातचीत करें, एक दूसरे की सुनें और एक दूसरे के पुराने अनुभवों से सीख लें। हमें अपने वैवाहिक संबंधों से इतना प्यार तो होना ही चाहिए कि हम अपने ही व्यवहार या प्रतिक्रियाओं के प्रतिकूल प्रभाव से उसकी रक्षा करें।
शुरुआती सबक
कभी यह मानकर नहीं चलिए कि आपका जीवनसाथी यह जानता है कि आप क्या सोच रहे हैं।
अपने जीवनसाथी से खुलकर बात करिए और अपना व्यवहार एक-सा बनाए रखिए।
अपने लिए तय किए गए दिशा-निर्देशों का समय-समय पर पुनरावलोकन करते रहिए।
परिवार की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें बदलिए।
अगर कोई दिशा-निर्देश प्रासंगिक और उपयोगी न रह गया हो तो उसे बदल दीजिए।
यह सबक जिन्हें हमने अपनी गलतियों, विवादों और अनुभवों से सीखा है ने हमें एक दूसरे के नजदीक आने में मदद की है और हमारे रिश्ते को मजबूती दी है।
‘कभी दूसरे व्यक्ति से गुस्सा होकर घर से न निकलिए’ इस सिद्धांत को हमने अपने वैवाहिक जीवन में बिना किसी अपवाद के लागू किया है और इसके कारण मैं कई बार घर की दहलीज पर रुकी और पलटकर अपने पति से कहा कि मैं काम पर जा रही हूं। यह काम करता है-रिश्तों को गरमाहट देने का।
(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)
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