उड़ीसा के आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले में हेमगिर ब्लाक के लेफ्रीपाड़ा सीमा पर स्थित बांजीकच्छार गांव के जंगल में हाई टेंशन बिजली का टॉवर बनाने और गांव के ऊपर से हाईटेंशन तार ले जाने का स्थानीय आदिवासी भारी विरोध कर रहे हैं। ओडिशा जेनरेशन फेज-1 प्रोजेक्ट लिमिटेड (ओजीपीटीएल) द्वारा ये बिजली के हाईटेंशन तार लगाए जा रहे हैं। आदिवासियों ने ‘पेशा’ कानून,1996 के तहत नियमानुसार ग्रामसभा करके हाईटेंशन तार ले जाने और टॉवर लगाने का विरोध किया है। मगर उनकी सुनवाई तो दूर, स्थानीय पुलिस-प्रशासन उल्टा उन्हीं पर कहर बरपा रही है। पूरा गांव पुलिस छावनी में बदल दिया गया है और तीन युवक गिरफ्तार कर लिए गए हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि पेशा कानून, जंगल जमीन कानून, हाईकोर्ट के निर्देश और संविधान की धारा 244-1, भाग-क के अनुच्छेद 2 एवं 3 की धाराओं का उल्लंघन कर बांजीकच्छार जंगल में बिजली का तार खींचा जा रहा है। पेसा ग्रामसभा की ओर से आरंभ से ही इसका विरोध किया जा रहा है। ग्रामीणों के अनुसार हजारों की संख्या में पेड़ों की कटाई भी की गयी है। काटे जा रहे पेड़ों की वन विभाग द्वारा नियमानुसार गिनती भी नहीं की जा रही है। अब संगठित ग्रामीण गांव की सीमा पर पत्थलगढ़ी करके स्थानीय पुलिस-प्रशासन और बिजली कंपनी को आगाह कर रहे हैं। मगर बिजली कंपनी की शह पर पुलिस-प्रशासन आदिवासियों का दमन करने पर उतारू है।
पिछले 16 मई को ग्रामीणों द्वारा व्यापक विरोध सूचना पर पुलिस अधीक्षक सौम्या मिश्रा अपने दल-बल के साथ गांव पहुंचीं। गांव की सीमा पर रास्ते में पत्थलगढ़ी कर उसपर लिख रहे रहे युवकों को एसपी के निर्देश पर पुलिस ने पकड़ लिया। ये युवक आदिवासी परंपरा के अनुसार पत्थरों पर भारतीय संविधान के आदिवासियों से संबंधित उपबंध उकेड़ रहे थे। प्रत्येक खास घटनाक्रम और सुनवाई न होने तथा दमनचक्र की स्थिति में आदिवासियों को जगाने के लिए इस प्रकार पत्थलगढ़ी की परंपरा है। एसपी ने युवकों को ऐसा करने से मना किया, जिसपर दोनों पक्षों में बहस हुई। पुलिस अधीक्षक को यह अपना अपमान लगा और इसके बाद उनके निर्देश पर तीनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया व उनके खिलाफ पुलिस के काम में बाधा डालने एवं अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार का मामला थाने में दर्ज किया गया। इस घटना को लेकर गांव में तनाव बना हुआ है। पूरे इलाके में पुलिस भर दी गई है।
परियोजना से बड़ा नुकसान
ओजीपीटीएल द्वारा जिन क्षेत्रों से यह हाईटेंशन वायर ले जाई जा रही है वह महानदी और उसकी सहायक नदी का बेसिन क्षेत्र है। भविष्य में इस क्षेत्र में कई निजी पावरप्लांट व कोयला से सम्बंधित बड़े उद्योग प्रस्तावित हैं। सुन्दरगढ़ के अलावा इस परियोजना में छत्तीसगढ़ के सरायपाली, बसना, रायगढ़, सारंगढ़, जांजगीर आदि वनक्षेत्रों के रिजर्व व ऑरेंज फारेस्ट क्षेत्र बड़ी मात्रा में प्रभावित हो रहे हैं।
गौर तलब है कि हाई टेंशन तार से बिजली के संरचण के दौरान विद्युतीय चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है। इसके कारण सिरदर्द, अनिंद्रा, मांसपेशियों में ऐंठन के अलावा डीएनए पर नकारात्मक प्रभाव व कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं।
यहां कई दुर्लभ वन्य जीव-जंतु के साथ ही बड़ी संख्या में हाथी भी पाये जाते हैं। हाईटेंशन तार के कारण इन जीवों के अलावा बड़ी संख्या में पक्षियों पर भी कुप्रभाव पड़ने की आशंका है। पर आश्चर्य है कि इस परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति देने में इन सबको को पूरी तरह नकारा गया।
बांच्छीकछार के अस्तिनास तिर्की कहते हैं कि इन तारों के नीचे से होकर गुजरने पर पूरे शरीर में झनझनाहट होती है। किरण कुजूर, कुतरा तहसील के ग्राम टेलीघाना के किसान हैं। उनका कहना है कि बिजली का यह तार जंगल, जीव-जंतु और मानव जीवन के लिए भी खतरनाक है। कई बार बरसात में भेड़-बकरी चरा रहे ग्रामीणों को भी हल्का बिजली के करेंट का अनुभव हुआ। फिर आंधी तूफ़ान में इसके कारण जंगल जल जाने का खतरा है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो साल से ग्राम बांजीकछार में पत्थलगढ़ी होने से कंपनी और सरकार के लोग इधर नहीं आए थे। पर अब फ़ोर्स के साथ गांव पर हमला करके वे अपना काम करने पर उतारू हैं। पिछले दो सप्ताह में ही हजारों पेड़ काट दिये गये हैं। विरोध करने वाले ग्रामीणों पर फर्जी मामला लगाकर उन्हें जेल भेजा जा रहा है।
कंपनी का इंकार
पावर लाइन बिछा रही कंपनी ओजीपीटीएल के प्रशासनिक अधिकारी दीपोजोली चक्रवर्ती ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर हुई बातचीत में ऐसी किसी घटना की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वे एक सप्ताह से अमेरिका में हैं और इस बीच हुई किसी घटना के बारे में नहीं जानते। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बांजीकछार के ग्रामीणों की शिकायत के बारे में कंपनी को कोई जानकारी नहीं दी गयी है।
(कॉपी एडिटर : अनिल/नवल)
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