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पटना में नवनिर्मित सभ्यता द्वार का ऐतिहासिक संदर्भ

बिहार की राजधानी पटना में सभ्यता द्वार बनाया गया है। बीते 21 मई को इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। करीब पांच करोड़ रुपए की लागत से बना यह द्वार बिहार के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। इसका ऐतिहासिक संदर्भ बता रहे हैं राजेंद्र प्रसाद सिंह :

मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया, दिल्ली के इंडिया गेट और फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजा की श्रृंखला में पटना का सभ्यता द्वार भारतीय इतिहास में दर्ज होगा। बिहार की यह बुलंद इमारत बिहार की गौरव गाथा का प्रतीक है। ग्रीक इतिहासकार मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र की काफी प्रशंसा की है।

उसने लिखा है कि गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा नगर है। यह 16 किलोमीटर लंबा और 3 किलो मीटर चौड़ा है। नगर चारों ओर से एक ऊंची दीवार से घिरा है, जिसमें 64 तोरण द्वार एवं 570 बुर्ज हैं। मेगास्थनीज द्वारा वर्णित इसी पाटलिपुत्र में सभ्यता द्वार का बनाया जाना गर्व की बात है।

पटना से सटे वैशाली में बौद्ध स्तूप परिसर में अशोक स्तंभ

कोई शक नहीं कि बिहार का नामकरण बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण हुआ है। बिहार में जगह-जगह पर विहार हैं, स्तूप हैं, अनेक बौद्ध स्थल हैं। नालंदा, विक्रमशिला जैसे बौद्ध विहार कभी बिहार की शान हुआ करते थे। आज भी खुदाई में बिहार की धरती से अनेक विहार, स्तूप आदि मिल रहे हैं। कोई एक दशक में तेल्हाड़ा बौद्ध विहार मिला है, तितरा का स्तूप मिला है, लाली पहाड़ी का बौद्ध स्थल मिला है और कैमूर में सम्राट अशोक का अभिलेख मिला है।

पटना के कुम्हरार में खुदाई के दौरान की तस्वीर। खुदाई के दौरान यहां मौर्य कालीन अवशेष मिले थे। इनमें मौर्य कालीन स्तंभ शामिल थे

बिहार का इतिहास गौरवशाली है। बिहार की धरती पर बर्द्धमान महावीर हुए। गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की। सम्राट अशोक ने विशाल साम्राज्य की स्थापना की। शेरशाह ने प्रशासन एवं भूमि सुधार के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित किये।

पटना में नवनिर्मित सभ्यता द्वार

पटना का सभ्यता द्वार इस गौरवशाली इतिहास का आख्यान है। पटना का सभ्यता द्वार 32 मीटर ऊँचा, 8 मीटर चौड़ा तथा लाल-सफेद सैंड स्टोन से बना है। अशोक कन्वेंशन सेंटर के पीछे गंगा तट पर बना है। इसका विस्तार एक एकड़ भू-भाग में है। इसे कोई पांच करोड़ रुपए की लागत से डेढ़ साल में बनाया गया है। सभ्यता द्वार के सबसे ऊपर मिश्र धातु के स्तंभ-सिंह समेत स्तूप की आकृति बनाई गई है। ऋतंभरा द्वार पर महावीर, बुद्ध और सम्राट अशोक के संदेश उकेरे गए हैं। गौतम बुद्ध के वही संदेश दुनिया भर में अनूदित हुए हैं। यूनान, तुर्की और मध्य एशिया से लेकर समूचे पूर्वी एशिया के देशों में हजारों बौद्ध विद्वान इस संदेश को देने के लिए बुलाए गए। दुनिया भर के लोगों ने ज्ञान लिया, वही ज्ञान जिसे हजारों साल पहले गौतम बुद्ध ने बिहार की धरती से पाया था।

पटना के पश्चिम दरवाजा की पेंटिंग। अब इस दरवाजे का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। अवशेष के रूप में यहां एक मौर्य कालीन सतंभ है

सभ्यता द्वार में दो छोटे और एक बड़ा द्वार है। परिसर में सम्राट अशोक की भव्य मूर्ति लगाई गई है। वही सम्राट अशोक जिनका साम्राज्य उत्तर और पश्चिमोत्तर में ब्रिटिश हुकूमत से भी अधिक फैला हुआ था। गंगा तट पर मौजूद सभ्यता द्वार का यह क्षेत्र अशोक के समय में जल परिवहन का प्रमुख मार्ग था। सम्राट अशोक ने जब धम्म विजय का अभियान चलाया था, तब अपने पुत्र महेंद्र को महेन्द्रू घाट से श्रीलंका प्रचार प्रसार के लिए भेजा था। वही घाट आज महेन्द्रू घाट के नाम से विख्यात है। इस महेन्द्रू घाट से पटना का सभ्यता द्वार तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। मुख्य जल मार्ग पर स्थित होने के कारण महेन्द्रू घाट मौर्य काल में एक व्यस्त नदी घाट रहा है। पाटलिपुत्र से श्रीलंका जाने के लिए गंगा नदी के रास्ते ताम्रलिप्ती तक जाया जाता था। बंगाल की खाड़ी होते हुए श्रीलंका पहुंचा जाता था। कहना न होगा कि पटना का सभ्यता द्वार वहां है, जहां से देश-विदेश के लोग जल मार्ग से कभी पटना में प्रवेश करते थे।

(कॉपी एडिटर : नवल/प्रेम बरेलवी)


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लेखक के बारे में

राजेन्द्र प्रसाद सिंह

डॉ. राजेन्द्रप्रसाद सिंह ख्यात भाषावैज्ञानिक एवं आलोचक हैं। वे हिंदी साहित्य में ओबीसी साहित्य के सिद्धांतकार एवं सबाल्टर्न अध्ययन के प्रणेता भी हैं। संप्रति वे सासाराम के एसपी जैन कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

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