आदिवासी समुदाय और गांवों में पारम्परिक विधि-विधान-संस्कार के साथ पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है। इन पत्थलगड़ियों में मौजा, सीमाना, पुरखों की स्मृति, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी रहती है। वंशावली और पुरखों की याद संजोए रखने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है। गोंड समुदाय ‘गाता कल’ कहते हैं। कई जगहों पर अंग्रेज-दुश्मनों के खिलाफ लड़कर शहीद होने वाले वीर सूपतों के सम्मान में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है।
मगर आदिवासियों के इस पारंपरिक व्यवहार को सरकारों ने नक्सली गतिविधि कहते हुए इनके विरुद्ध दमनकारी अभियान चला रखा है। दूसरी ओर, आदिवासी इसे अपनी परंपरा और अपने अधिकारों की लड़ाई बता रहे हैं। वर्तमान में झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिलों में चल रहे पत्थलगड़ी आंदोलन के तहत आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लेख कर पत्थरों को गाड़ा जा रहा है। स्थानीय आदिवासियों के मुताबिक वे ऐसा अपने लोगों को जागरूक करने के लिए तो कर ही रहे हैं; साथ ही इसका एक मकसद यह भी है कि बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगे।
पत्थलगड़ी आंदोलन छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में जोर पकड़ रहा है। वहीं आंदोलन को दबाने के लिए सरकार द्वारा भी दमनकारी कार्रवाईयां की जा रही हैं। आदिवासियों के पक्ष में काम करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी एच.पी. किंडो, ओएनजीसी के रिटायर्ड अधिकारी जोसेफ तिग्गा, बच्छरांव से दाऊद कुजूर, सुभाष कुजूर और पीटर खेस समेत दो दर्जन से ज्यादा लोग गिरफ्तार कर लिए गए हैं। सेवानिवृत्त आईएएस किंडो बस्तर में आदिवासियों के लिए व्यापक आंदोलन चलाने वाले आईएएस बी. डी. शर्मा के सहयोगी भी रहे हैं।
इसी कड़ी में झारखंड-छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती पूर्वी क्षेत्र जशपुर और बलरामपुर में भी पांच आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया है। इसके अलावा 45 अन्य आदिवासियों पर सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। इनमें दाऊद कुजूर, मिलियन मिंज, आनंद मिंज, सेल्बेस्तर मिंज गांव बछराव, जयमान मिंज गांव बुटंगा, सुधीर एक्का, जयदेव मिंज, फुलजेन्स एक्का, सरबकम्बो से मुक्ति प्रसाद खाखा, पिता पीयूष खाखा, विनय एक्का, विकास एक्का, जगदेव मिंज, गांव शाहीडाँड़, एमेल्डा मिंज, जयमन मिंज, रमन मिंज, विजय मिंज, अंजू लता टोप्पो, राहुल मिंज, क्रिस्तोफर जुनुस फिलमोन एक्का आदि शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार की दमनकारी कार्रवाई के विरोध में सर्व आदिवासी समाज ने विरोध व्यक्त किया है। सर्व आदिवासी समाज के विनोद नागवंशी ने बताया कि हमलोगों ने 9 मई को एक बैठक कर छत्तीसगढ़ सरकार को चेतावनी दी है कि हमारे सभी गिरफ्तार साथियों को रिहा किया जाए। साथ ही हम आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार पत्थलगड़ी को सुनिश्चित किया जाय। यदि ऐसा नहीं किया गया तो 14 मई के बाद हर गांव में आदिवासी पत्थलगड़ी करेंगे और जेल भरो आंदोलन किया जाएगा। आदिवासियों की ओर से राष्ट्रपति को भी ज्ञापन देकर कहा गया है कि पत्थलगड़ी के उनके संविधान सम्मत अधिकार को सुनिश्चित किया जाय।
सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि विनोद नागवंशी के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार पत्थलगड़ी आंदोलन से बैकफुट पर आ गयी है। वह आदिवासियों की संवैधानिक शक्ति व अधिकारों का हनन कर रही है। इसे विफल करने के लिए वह पत्थलगड़ी के खिलाफ कथित सद्भावना यात्रा निकाल कर भ्रम फैला रही है। साजिश के तहत वह कभी इसे क्रिश्चियन मिशनरी का षडयंत्र तो कभी नक्सलवाद से प्रेरित बता रही है। अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करने वालों को वह नक्सलवादी कह कर जेल में डाल रही है। उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी आंदोलन का मिशनरी संस्थाओं से कोई संबंध नहीं है और न ही नक्सलियों से कोई लेना-देना है। इस आंदोलन का फैसला इस वर्ष की शुरूआत में विभिन्न ग्रामसभाओं द्वारा ग्रामवासियों की सहमति से लिया गया था।
गाैरतलब है कि पत्थलगड़ी के विरोध में रायगढ़ से भाजपा सांसद विष्णुदेव साय, एवं भाजपा से ताल्लुक रख रहे जशपुर राज परिवार के प्रलब प्रताब जूदेव और भाजपा कार्यकर्ताओं ने सद्भावना यात्रा निकाली थी और भड़काऊ भाषणबाजी कर आदिवासियों के संवैधानिक पत्थलगड़ी को तोड़ दिया था। इसके बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई तो पुलिस ने आदिवासियों को ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
बहरहाल माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की। पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’और ‘मेगालिथ’ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी की परंपरा है।
(कॉपी एडिटर : अनिल)
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