स्मृति सभा में सभी वक्ताओं ने एक स्वर से यह स्वीकार किया कि भले ही पत्रकार एवं लेखक राजकिशोर जी आज हमारे बीच नहीं हैं, किंतु उनकी विरासत सदैव हमारे साथ रहेगी। अधिकांश वक्ताओं ने उनकी लोहिया से आंबेडकर तक की यात्रा को भी याद किया। वक्ताओं ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की स्मृति सभा में उपस्थिति इस बात का सबूत है कि पत्रकारों, लेखकों और पाठकों के बीच उनकी क्या लोकप्रियता थी।
बताते चलें कि देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में अहम जिम्मेवारी संभालने वाले राजकिशोर जी का निधन बीते 4 जून को हो गया था। उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि वे अपनी अंतिम अनुवादित और प्रिय कृति ‘जाति का विनाश’ का प्रकाशित रूप नहीं देख सके। उन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व ही अंतिम विदा ले ली। उनकी पत्नी विमला जी ने इस पुस्तक का लोकार्पण किया। पुस्तक का प्रकाशन फारवर्ड प्रेस ने किया है।
कवि एवं आलोचक अशोक बाजपेयी ने कहा कि मैं सुस्पष्ट एवं सुगढ़ गद्य लेखन के लिए उन्हें याद करना चाहूंगा। उन्हें अहसास था कि स्वतंत्रता एवं न्याय कितने मूल्यवान हैं। वे अपनी विचारधारा के प्रति अत्यंत दृढ़ थे। नारीवाद एवं दलित मुक्ति पर उनका फोकस, हिन्दी और यहां तक कि अंग्रेजी मीडिया में भी बेजोड़ था। संभवतः वे अंतिम ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने पत्रकारिता एवं साहित्य के बीच की दूरी मिटाई।
वहीं पत्रकार एवं लेखक उर्मिलेश ने कहा कि मेरी उनसे पहली मुलाकात उस दौरान हुई, जब हम दोनों नवभारत टाइम्स में काम करते थे। वे दिल्ली संस्करण से संबद्ध थे और मैं एक अन्य संस्करण से। मैं उनसे कनिष्ठ था, लेकिन अपने व्यवहार से वे यह जाहिर नहीं होने देते थे, जो उनकी विनम्रता का परिचायक था। उनके लेखन में झलकती ईमानदारी, समझदारी और समाज के वंचित वर्गों की तरफदारी मेरेे लिए प्रेरणा के स्रोत थे। उर्मिलेश ने यह भी कहा कि राजकिशोर जी को अपने जीवन में वह सम्मान हासिल नहीं हुआ, जिसके वे हकदार थे। हिन्दी पत्रकारिता हिन्दू पत्रकारिता ही नहीं, सवर्ण पत्रकारिता भी रही है, परंतु उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
जबकि पत्रकार प्रियदर्शन ने उन्हें याद करते हुए कहा कि राजकिशोर की भाषा सरल किंतु प्रभावी होती थी। ‘‘यद्यपि वे अपनी विचारधारा के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान थे, परंतु अपने लेखन में कभी उन्होंने प्रतिशोध के भाव को स्थान नहीं दिया। उनका ईमेल आईडी था ‘ट्रुथ ओनली’ और वे इसका पालन भी करते थे।
फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक डाॅ. सिद्धार्थ ने राजकिशोर से अपने लंबे जुड़ाव की चर्चा करते हुए कहा कि वे मेरे मित्र भी थे और शिक्षक भी। मिलने पर वे व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम बात करते थे। सामाजिक सरोकार ही उनके विमर्श का विषय होता था। भारतीय समाज के समक्ष चुनौतियां ही उनकी सतत चिंता का सबब था। जाति और पितृ-सत्ता से भारतीय समाज की मुक्ति उनकी चिंता के केंद्रीय सरोकार थे।
इस मौके पर समाजशास्त्री और स्वराज पार्टी के नेता योगेन्द्र यादव ने उन्हें एक गहरे लोकतांत्रिक मानस वाले व्यक्ति के रूप में याद किया और कहा कि बेबाक असहमति के साथ मित्रता कैसे कायम रखी जाये, यह मैंने राजकिशोर जी से सीखा।
स्मृति सभा में प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह, सविता पाठक, अरुण त्रिपाठी और कवयित्री अनामिका ने भी राजकिशोर जी से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। वहीं संजीव सिद्धिक ने राजकिशोर की कुछ कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन लेखक और पत्रकार व राजकिशोर जी के मित्र ओम थानवी ने किया।
अंत में राजकिशोर जी की पत्नी विमला जी ने अनौपचारिक तौर पर सबके प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि आप सभी लोगों ने जो संबल मुझे प्रदान किया है, वह मेरे जीने का सहारा बनेगा।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)
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