शिमला। हिमाचल की राजधानी व ऐतिहासिक शहर शिमला का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो रवि कुमार दलित से परिचित न हो। देर शाम को शिमला के सबसे बड़े उपनगर संजौली में अपनी दुकान के बाहर सब्जियां व मशरूम बेचने के लिए जोर-जोर से आवाज लगाकर ग्राहकों का ध्यान खींचता यह युवक अपने ही अंदाज में व्यवस्था परिवर्तन में भी जुटा है। रवि कुमार दलित का माथा श्रम से उपजे पसीने के मोतियों से चमकता रहता है। रवि सब्जी मंडी से अपनी पीठ पर भारी-भरकम बोरियों को रिक्शे पर लादता है। ढली मंडी से रवि संजौली स्थित दुकान में सब्जियां पहुंचाता है। दिन भर सब्जी बेचने के अलावा समाज को झकझोरने का प्रयास भी करता है।
संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के विचारों से प्रभावित रवि कुमार दलित एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जहां जाति-पाति के लिए कोई स्थान न हो और समाज के सभी वर्ग एक-दूसरे के साथ आदर से पेश आएं। निडरता का गुण रखने वाला रवि शिमला शहर की समस्याओं से लेकर देश भर के मसलों पर मौलिक राय रखता है। रवि न केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय है, बल्कि सूचना का अधिकार कानून के जरिए अहम सूचनाएं हासिल करने में भी आगे रहता है। ठीक ऐसे समय में जब दलित आंदोलन के नाम पर कई चेहरे वातानुकूलित माहौल से ही बाहर नहीं आ पाते, रवि कुमार अपने नाम के अनुसार दलित मुद्दों पर प्रखरता से प्रकाश डालते हुए अपना मत रखता है।
यह भी पढ़ें – दलित उद्यमिता की नयी उड़ान रविदास एयरलाइंस
बसपा के टिकट पर वीरभद्र सिंह के खिलाफ लड़ा चुनाव
शिमला में जन्में रवि का बचपन संघर्ष में बीता। परिवार का पुश्तैनी काम मोची का था। शिमला के सरकारी स्कूल में पढ़ाई के दौरान रवि कुमार को न केवल अध्यापकों से बल्कि सहपाठियों से भी अपनी जाति के कारण अपमान झेलना पड़ता। इस अपमान ने रवि को विचलित तो किया, परंतु ये अपमान उसे तोड़ नहीं पाया। चूंकि परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था, लिहाजा दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद रवि कुमार ने अपने पुश्तैनी धंधे में हाथ आजमाया। बाद में इस परिवार ने संजौली में सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया। इस समय रवि और उसका बड़ा भाई संजय दुकान चलाते हैं। रवि कुमार को स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही राजनीतिक दलों की रैलियों ने आकर्षित कर लिया। बचपन में वो भी राजनीतिक दलों के झंडे लेकर चुनाव के समय गलियों में नारे लगाया करता था।
बाद में रवि कुमार ने बसपा के टिकट पर हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ 2012 में विधानसभा चुनाव भी लड़ा। रवि कुमार दलित लंबे समय से शिमला के आंबेडकर चौक में आंबेडकर पुस्तकालय स्थापित करने की लड़ाई लडऩे में अग्रणी रहा है। यहां घोषणा के बावजूद आंबेडकर पुस्तकालय का निर्माण नहीं हो पाया है। इसके अलावा रवि कुमार दलित मसलों पर होने वाले हर आंदोलन में प्रमुख भूमिका में रहता है। देश के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक मसलों पर भी रवि कुमार अपने विचार सोशल मीडिया के जरिए प्रकट करता है। हाल ही में शिमला में पैदा हुए अभूतपूर्व जलसंकट के दौरान रवि कुमार ने अपने स्तर पर पानी की कमी झेल रहे लोगों की आवाज प्रशासन तक पहुंचाई।
जन-समस्याओं को उठाने में अग्रणी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के शिमला दौरे के दौरान रवि कुमार दलित ने सवाल उठाया था कि क्या देश के प्रथम नागरिक अपने व्यस्त शेड्यूल से समय निकाल कर दलितों के साथ मिलेंगे? संजौली में अपनी सब्जी की दुकान में काम करते-करते भी रवि कुमार को दलित मसलों व समाज के दबे-कुचले वर्ग के लोगों की आवाज उठाते देखा जा सकता है। शिमला में रहने के कारण रवि का संपर्क हर क्षेत्र के लोगों से है। वह प्रशासन के समक्ष भी जनता के मसलों को उठाता है। हिमाचल के शर्मसार कर देने वाले गुडिय़ा बलात्कार के बाद हत्या मामले को लेकर आंदोलन में भी रवि कुमार अग्रणी चेहरा रहा। जन समस्याओं को लेकर रवि कुमार अक्सर अनूठे तरीके से विरोध प्रदर्शन करता आया है। समाज के ज्वलंत मसलों पर लोगों को जगाने के लिए संजौली स्थित श्मशान घाट में भी रवि कुमार कई दफा उपवास कर चुका है।
रवि कुमार कहते हैं कि जिस दिन समाज का उच्च वर्ग अपने नाम के साथ शान से ठाकुर, शर्मा आदि लिखना छोड़ देगा, वह भी अपने नाम के साथ दलित नहीं लिखेगा। रवि का कहना है कि संविधान ने दलित वर्ग को शान से सिर उठाकर जीने का मौका दिया है। दलित वर्ग के जो लोग आरक्षण का लाभ उठाकर संपन्न हो गए हैं, उन्हें अब गरीबी की जीवन बिताने को मजबूर दलितों के उत्थान के लिए काम करना चाहिए। रवि ओम प्रकाश वाल्मिकी सहित अन्य कई दलित वर्ग से जुड़े लेखकों से प्रभावित है। समय निकाल कर वो दलित मुद्दों से जुड़ा साहित्य पढ़ता है। उसका सपना यही है कि सदियों से अत्याचार झेलने को मजबूर दलितों को सम्मान से सिर उठाकर चलने का अवसर मिले। समाज के वंचित तबके को बेहतर सुविधाएं मिलें।
(कॉपी एडिटर : नवल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :