नई दिल्ली, 22 अगस्त, 2018 : महज पांच-सात साल पुरानी घटना को अगर इतिहास कहा जा सकता हो तो आप कह सकते हैं, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में इतिहास दोहराया गया है!
आज यूनिवर्सिटी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों का संगठन ‘यूनाइटेड ओबोसी फोरम’ बिखर गया। संगठन के चेहरे के रूप में प्रचारित छात्र-नेता मुलायम सिंह यादव और दिलीप यादव पर उनके साथियों ने जातिवाद के गंभीर आरोप लगाए हैं।
वर्ष 2009-2010 में भी इस यूनिवर्सिटी में ओबीसी विद्याथियों ने ‘ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम’ नामक संगठन की स्थापना की थी। उस संगठन ने पिछड़े व दलितों के अनेक मुद्दों पर संघर्ष किये औरजीत भी हासिल की। ‘महिषासुर दिवस’ का आयोजन शुरू करने का श्रेय भी उसी संगठन को है। लेकिन संगठन की उम्र मुश्किल से तीन-चार साल रही। संगठन के नेतृत्व पर ‘यादववाद’ के आरोप लगे और 2013-14 तक आते-आते संगठन ने दम तोड़ दिया।
उसके कुछ समय बाद कुछ पिछड़े व अति-पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों ने मिलकर उपरोक्त ‘यूनाइटेड ओबीसी फोरम’ नामक संगठन बनाया था।
‘ये पोलिटिकल पर्चा है, शादी का कार्ड नहीं’
ताजा मामला इसी परवर्ती संगठन का है, जिसने अपने छात्र-नेता मुलायम सिंह यादव को संगठन से निष्कासित कर दिया है। हालांकि यादव ने अपने बचाव में कहा है कि उनको इस कार्रवाई का पता संगठन से चलने के बजाय बाहरी लोगों से चला है। वे इस पूरे मामले में कोर कमेटी के अन्य सदस्यों के संपर्क में हैं। उन्होंने दावा किया कि कोर कमेटी में ज्यादातर वही सदस्य हैं जिनके नाम उन्होंने आगे किए हैं।
ग़ौरतलब है कि ओबीसी फोरम पिछले कुछ ही समय में सामाजिक, शैक्षणिक सरोकारों के एक प्रमुख मंच के रुप में उभरा था। जेएनयू में छात्र हितों के अलावा वह दलित-पिछड़े समाज के मुद्दों में काफी मुखर रहता था।
मुलायम सिंह यादव पर फोरम को जातीय दंभ और जातीय वर्चस्व की तरफ धकेलने का आरोप है, साथ ही उनके साथियों की ओर से कहा गया है कि महिलाओं, अतिपिछड़ों एवं पसमांदा के प्रति उनका व्यवहार ‘असंवेदनशील’ रहा है। उन पर सामाजिक न्याय के नाम पर फोरम का इस्तेमाल कर अपने निजी स्वार्थों के लिए करने का आरोप भी है।
संगठन के कोर कमेटी सदस्य विशंभर नाथ प्रजापति की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि एक ही जाति को बढाने की मुलायम की कोशिश फोरम के संविधान के खिलाफ हैं क्योंकि फोरम किसी जाति विशेष का संगठन नहीं है।
निष्कासन के 10 आधार
फोरम की विज्ञप्ति में कहा गया है कि ओबीसी के सभी समुदायों के प्रतिनिधित्व का उन्होंने (मुलायम ने) पुरजोर तरीके से विरोध किया जो एक स्वस्थ समाज के लिए खतरनाक हैं। मुलायम को संगठन से निकालने के लिए विज्ञप्ति में निम्नांकित 10 आधार बताये गए हैं।
1. पहला आरोप है कि अतिपिछड़े एवं पसमांदा वर्गों पर कई बार चर्चा होने पर भी मुलायम सिंह ने इस विषयों पर्चा लाने का विरोध किया, फोरम के अन्य सदस्यों पर सोशल मीडिया के पेज पर न लिखने का अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष दबाव बनाया।
2. दिलीप यादव व मुलायम सिंह यादव ने फोरम के नाम पर गलत तरीके से फंड इकट्ठा किया। उन्होंने कहाँ-कहाँ से फंड/वित्त इकट्ठा किया इसका कोई भी ब्योरा नहीं दिया और वित्तीय अनियमितताओं को जारी रखा जबकि इस मुद्दे पर एक मीटिंग भी बुलाई गयी थी।
3. फोरम के संविधान निर्माण में उन्होंने ओबीसी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को कोई महत्व नहीं दिया और इसके उलट फोरम की महिला सदस्य के लिए कई बार असंवेदनशील भाषा का भी इस्तेमाल करते रहे हैं जैसे कि सदस्य महिला के सुझाव पर यह बोलना की ‘ये पोलिटिकल परचा हैं शादी का कार्ड नहीं।‘
4. विज्ञप्ति में कहा गया है कि यूजीसी गजट के आंदोलन में फोरम के सदस्यों अभिषेक सौरभ, विश्वम्भर नाथ प्रजापति, कनकलता यादव, जुबैर आलम ने भी भूमिका निभाई लेकिन पर्चे में उनके नाम को जानबूझकर मुलायम सिंह द्वारा हटा दिया गया। यहाँ तक कि उस पर्चे को फोरम के नाम से प्रकाशित न करके अपने नाम पर न्यूज़ पोर्टल में प्रकाशित किया, जो कि अनैतिक था। अन्य सदस्यों के विरोध और पर्चे में तब्दीली के सुझाव के बावजूद उनके सुझाव को दरकिनार कर दिया, और बिना संशोधन के परचा यूनाइटेड ओबीसी फोरम के पेज पर लगा दिया।
5. अति पिछड़ा और पसमांदा मुद्दे पर दिसंबर 2017 और अप्रैल 2018 में मीटिंग बुलाई गयी थी। पहली मीटिंग को मुलायम सिंह ने बेकार का मुद्दा बता के मीटिंग को ही ख़ारिज करने कोशिश की। दूसरी मीटिंग में भी वे इस बात पर अड़े रहे की फोरम के लिए अति पिछड़ा और पसमांदा का मुद्दा नहीं हैं और अति पिछड़ा और पसमांदा मुस्लिम जो की ओबीसी के ही हिस्सा हैं,को दबाने की कोशिश की।
6. फोरम की संविधान प्रारूप समिति में किसी भी ओबीसी महिला, पसमांदा मुस्लिम और अति-पिछड़ा को सदस्य नहीं बनाया गया। संविधान समिति की कोर कमिटी को बिना सूचित किये और बिना मीटिंग बुलाये ही चुपके-चुपके अनैतिक तरीके से अन्य सदस्यों से दस्तखत लिया गया और कुछ सदस्यों के दस्तखत जबरदस्ती बैक डेट में करवाये।
7. फोरम की ईमेल आईडी, यूट्यूब, पासवर्ड, फेसबुक पर फोरम के अकाउंट और पेज का एडमिन अकेले ही मुलायम सिंह बने रहे बाकी सदस्यों से कभी भी पासवर्ड और अन्य जानकारियाँ शेयर नहीं की गईं। कोर कमेटी के सदस्यों ने जब सोशल मीडिया के आईडी और पासवर्ड माँगा तो उस पर मुलायम सिंह ने चुप्पी साध ली, जो वर्चस्ववादी सोच है।
8. ओबीसी भातृत्व को बढ़ावा न देकर हर जगह एक जाति विशेष के नेताओं को स्थापित करने की कोशिश की, जबकि ओबीसी महिला, पसमांदा और अतिपिछड़े पर ध्यान देने की जरुरत थी।
9. ओबीसी से संबंधित रिपोर्टों को पढ़े बिना ही ओबीसी को गुमराह करने की कोशिश की, जिससे लोग फोरम से जुड़ने की बजाय दूर हुए।
10. मुलायम सिंह यादव ने जबरदस्ती दिलीप यादव को फोरम का कोर कमिटी का सदस्य बनाने की दोबारा कोशिश की। जबकि दिलीप यादव पिछले साल फोरम छोड़ चुके थे।
यूनाइटेड ओबीसी फोरम ने की विज्ञप्ति में कहा गया है कि भविष्य में मुलायम द्वारा दिया गया कोई भी बयान और गतिविधि को फोरम का आधिकारिक बयान या गतिविधि नहीं मानी जानी चाहिए। फोरम हमेशा जाति-उन्मूलन, लोकतान्त्रिक मूल्यों, सामाजिक और लैंगिक समानता, बहुजनों की जीवन के सभी क्षेत्रों में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
दूसरी ओर, मुलायम सिंह ने संगठन की इस कार्रवाई को एकतरफ़ा कहा है। उन्होंने कहा जिन लोगों को वह संगठन में लाए वही उनके ‘भस्मासुर’ बन गए हैं।
बहरहाल, समाज में उपेक्षितों, शोषितों, दलितों और पिछड़ों के लिए सम्मान का जीवन देने के लिए जो संगठन जातिवाद के जहर से निकालने की प्रमुख आश्वस्ति देते हों वही अगर जातिवादी वर्चस्व से घिर जाएं तो राजनैतिक चेतना के सारे हथियार बेमानी हो जाते हैं। ये सवाल इसलिए भी कि हाल दिनों में दलित पिछड़ों की प्रमुख सियासी पार्टियों से इतर भी उनके सामाजिक और शैक्षणिक संगठन बड़े बिखराव की ओर बढ़ गए हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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