एससी-एसटी आयोग के जैसे सशक्त हुआ ओबीसी आयोग
लंबे समय से यह मांग उठती रही कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अनुसूचित जाति अायोग और अनुसूचित जनजाति आयोग के जैसे ही संवैधानिक अधिकार मिले। यह केवल जातियों को ओबीसी की सूची में शामिल करने के लिए जिम्मेदार न हो। इसे भी वह अधिकार मिलें जिसके जरिए देश में ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण में अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई कर सके। यह अधिकार इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि देश के कई हिस्सों में आरक्षण के सवाल जस के तस पड़े हैं। बैकलॉग की बढ़ती समस्या पर भी पहले आयोग विचार नहीं कर पाता था।
इस दिशा में केंद्र सरकार ने 2017 में अहम पहल किया। सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भंग कर दिया और साथ ही घाेषणा कर दी कि अब नये आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलेगा। लेकिन साथ ही सरकार ने ओबीसी के उपवर्गीकरण के लिए जस्टिस रोहिणी कमीशन का गठन भी कर दिया। केंद्र सरकार के मुताबिक ओबीसी आरक्षण का लाभ उन्हें अधिक मिलना चाहिए जो ओबीसी में शामिल तो हैं लेकिन विकास के मामले में सबसे निचले पायदान पर हैं। हालांकि इसे ओबीसी में फूट डालने की रणनीति करार दिया गया।
खैर, जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट की अनुशंसाओं का इंतजार किये बगैर सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाबत 123वें संशोधन विधेयक को प्रस्तुत कर दिया और इसे संसद को दोनों सदनों में पारित कर दिया गया। बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 14 अगस्त, 2018 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिसूचित कर दिया और इसकी अधिसूचना गजट ऑफ इंडिया के माध्यम से सार्वजनिक कर दिया गया। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 की जगह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 2018 प्रभावी हो गया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल गया है और इसे अनुसूचित जाति आयोग को प्रदत शक्तियों के समकक्ष शक्तियां प्रदान कर दी गयी हैं।
राज्यों पर नहीं चलेगा कोई जोर
नये कानून के अनुसार आयोग परामर्शी कार्यों के अलावा पिछड़े वर्गों की सामाजिक व आर्थिक प्रगति में भागीदारी की पहल करेगा। पिछड़ी जातियों को राज्यों की सूचियों में शामिल करने के काम में राष्ट्रीय आयोग की कोई भूमिका नहीं होगी। यह काम राज्य सरकारें करेंगी। केवल उन्हीं मामलों में राष्ट्रीय आयोग की भूमिका होगी, जिनमें राज्य द्वारा किसी जाति को केन्द्रीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की जाएगी। राज्यों की सिफारिश पर भारत के महापंजीयक की रिपोर्ट ली जाएगी और उसकी स्वीकृति के बाद आयोग की स्वीकृत ली जाएगी।
कैसा होगा आयोग का स्वरूप?
आयोग में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होंगे। इसमें कम से कम दो सदस्य होंगे। सदस्यों में एक महिला का होना अनिवार्य होगा। अधिकतम सदस्यों की संख्या का जिक्र अधिसूचना में नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि सरकार दो से अधिक सदस्य भी नियुक्त कर सकती है। अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष ही अध्यक्ष की जिम्मेवारियों का निर्वाह करेंगे। यदि उपाध्यक्ष का पद रिक्त होगा तो किसी सदस्य को राष्ट्रपति उपाध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंप सकते हैं।
केवल पिछड़े वर्ग के ही बन सकेंगे अध्यक्ष व अन्य सदस्य
23 अगस्त,2018 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की जारी अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य के पद पर उन्हीं लोगों को नियुक्त किया जाएगा, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों से आते हों। जिनका पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने के साथ सामाजिक सेवा का व्यापक अनुभव रहा हो।
तीन वर्षों का होगा कार्यकाल, केवल दो बार मिलेगा मौका
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तारीख से तीन वर्ष का होगा। एक सदस्य को सिर्फ दो बार ही आयोग में नियुक्त किया जा सकता है। आयोग के किसी भी पद पर एक व्यक्ति को तीसरी नियुक्ति का प्रावधान नहीं है। सदस्यों द्वारा त्याग पत्र देने या हटाने की प्रक्रिया भी नियमावली में बतायी गयी है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपना त्यागपत्र दे सकते हैं। आयोग के अध्यक्ष को कदाचार के आरोप में हटाया जा सकता है, यदि सर्वोच्च न्यायालय कदाचार के आरोपों को सही पाते हुए राष्ट्रपति को रिपोर्ट करे। इस आधार पर आयोग के अध्यक्ष को राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है। आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के हटाने के अन्य कारण भी बताये गये हैं, जिनमें दिवालिया घोषित होने, पदावधि में लाभ के पद पर रहने, सजा होने और मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम होने को आधार बताया गया है। लेकिन इसके साथ यह भी कहा है कि ऐसे आरोपों में संबंधित व्यक्ति को पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए।
भारत सरकार के सचिव के तर्ज पर वेतन व भत्ता
आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों का वेतन व भत्ता भारत सरकार के सचिव के बराबर निर्धारित किया गया है। हालांकि आयोग के अध्यक्ष को किरायामुक्त आवास देने का प्रावधान है, जबकि अन्य सदस्यों को यह देय नहीं है। अधिसूचना के अनुसार, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य के पद पर नियुक्त व्यक्ति पूर्व की सेवा के आधार पर पेंशन पा रहे हों तो उनके वेतन का निर्धारण पेंशन राशि काटकर की जाएगी। इसके साथ ही अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य दौरे की अवधि में सचिव स्तर के लिए तय यात्रा व दैनिक भत्ता का हकदार होंगे।
सवाल बरकरार
बहरहाल, संसद में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग पर हो रही चर्चा के दौरान ही थावरचंद गहलोत ने स्पष्ट कर दिया था कि नरेंद्र मोदी वाली केंद्र सरकार पिछड़े वर्गों को हक दिलाने और अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाएगी, ताकि वह पिछड़ों के कल्याण को लेकर अधिक सार्थक व व्यावहारिक सुझाव दे सके और उन वर्गों के विकास में अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर सके। संविधान संशोधन के माध्यम से राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल गया है। लेकिन सवाल इससे आगे का है। जिन लोगों को इसके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य के पद पर बैठाया जाएगा, क्या वे दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर पिछड़े वर्गों के मु्द्दों पर मुखरता से बोल पायेंगे। यदि इस पद बैठे लोग सामाजिक और शैक्षणिक सरोकारों को लेकर ईमानदार नहीं हुए तो संवैधानिक दर्जा भी निरर्थक ही साबित होगा।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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