आजादी के बाद का सामाजिक न्याय का इतिहास : पी.एस. कृष्णन की जुबानी, भाग – 1
(भारत सरकार के नौकरशाहों में जिन चंद लोगों ने अपने को वंचित समाज के हितों के लिए समर्पित कर दिया, उसमें पी.एस. कृष्णन भी शामिल हैं। वे एक तरह से आजादी के बाद के सामाजिक न्याय के जीते-जागते दस्तावेज हैं। सेवानिवृति के बाद उन्होंने सामाजिक न्याय संबंधी अपने अनुभवों को डॉ. वासंती देवी के साथ साझा किया। वासंती देवी मनोनमानियम सुन्दरनर विश्वविद्यालय तमिलनाडु की कुलपति रही हैं। संवाद की इस प्रक्रिया में एक विस्तृत किताब सामने आई, जो वस्तुत : आजादी के बाद के सामाजिक न्याय का इतिहास है। फॉरवर्ड प्रेस की इस किताब का हिंदी अनुवाद प्रकाशित करने की योजना है। हम किताब प्रकाशित करने से पहले इसके कुछ हिस्सों को सिलसिलेवार वेब पाठकों को उपलब्ध करा रहे हैं – संपादक)
कुछ लोग जन्मजात जुनूनी होते हैं, कुछ लोग इसे जीवन के शुरूआती दिनों में हासिल करते हैं और उसके बाद यह जुनून उनका भावावेग बन जाता है और यह उनके पूरे जीवन को संचालित करता है। मकसद और मकसद लिए संघर्ष करने वाला योद्धा अक्सर इस तरह एकरूप हो जाते हैं, उन्हें अलग करना नामुमकिन होता है। मकसद की सफलताएं और असफलताएं दोनों योद्धा के जीवन के मील के पत्थर बन जाते हैं। यह किताब सामाजिक न्याय के योद्धा का एक अभिवादन और मकसद की तसदीक दोनों करती है।
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