h n

हिमाचल में युवा दलित नेता की निर्मम हत्या, कटघरे में जयराम सरकार

बीते 7 सितंबर 2018 को हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में युवा दलित नेता व अधिवक्ता केदार सिंह जिंदान की निर्मम हत्या कर दी गयी। हालांकि पुलिस ने तीन अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया है और मृतक के आश्रितों को बीस लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा भी कर दी है, इसके बावजूद सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। राजेश शर्मा की रिपोर्ट

शिमला। दलित वर्ग से संबंध रखने वाले केदार सिंह जिंदान एक जिंदादिल आवाज थे। कुछ लोगों को केदार जिंदान का आवाज उठाना पसंद नहीं आ रहा था। केदार के मस्तिष्क में बहुजन के हित के लिए कई सवाल उमड़ते थे। जिन लोगों को केदार की सक्रियता रास नहीं आ रही थी, उन्हें केदार जिंदान के दिमाग में कुलबुलाने वाले सवाल असहज कर रहे थे। नतीजा भयावह निकला। दबंग लोगों ने केदार के सिर को ही कुचल डाला। घटना बीते 7 सितंबर 2018 की है। सिरमौर जिले के बकरास में पहले तो अपराधियों ने उन्हें पीट-पीटकर अधमरा कर दिया और बाद में उनके उपर गाड़ी चढ़ा दी ताकि इसे सड़क दुर्घटना साबित किया जा सके। पुलिस ने इस मामले में तीन अारोपियों को गिरफ्तार कर लिया है।

बेशक वे केदार के सिर को कुचलने और उसे मौत के घाट उतारने में कामयाब हो गए, लेकिन केदार ने जो सवाल उठाए हैं, वे हिमाचल को झकझोरते रहेंगे। केदार जिंदान की नृशंस हत्या ने पूरे हिमाचल को हिला दिया। इस दुखद दुर्घटना के बाद से हिमाचल में एक नई बहस जोर पकड़ गई है। बहस यह कि हिमाचल में दलित वर्ग का कोई व्यक्ति यदि आवाज उठाएगा, तो क्या उस आवाज को यूं ही बेरहमी से खामोश कर दिया जाएगा?

केदार जिंदान की हत्या के बाद से जिस तरह दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले स्वर मुखर हुए हैं, उससे एक संकेत तो साफ है कि अब हिमाचल में दलित समाज जागृति के दौर में प्रवेश कर गया है। माकपा नेता और हिमाचल विधानसभा में एकमात्र वामपंथी विधायक राकेश सिंघा के नेतृत्व में लोगों ने जिस तरह केदार जिंदान के शव को आधी रात को शिमला के रिज मैदान पर रखकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, उसका परिणाम यह निकला कि जयराम सरकार के मंत्री को रात को शिमला के रिज मैदान आकर पीडि़त परिवार को 20 लाख रुपए मुआवजा सहित अन्य मांगों को मंजूर करना पड़ा।

शिमला में संवाददाता सम्मेलन करते दलित युवा नेता केदार सिंह जिंदान की तस्वीर व इनसेट में पुलिस को बरामद उनका शव और वह वाहन जिससे उनका सिर कुचल दिया गया

आरोपियों ने कबूला अपना जुर्म

केदार जिंदान एक वकील भी थे और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के मेंबर भी। लिहाजा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने उनकी हत्या पर दुख जताते हुए एक दिन के लिए अदालत की कार्यवाही में भाग नहीं लिया। बार एसोसिएशन ने ऐलान किया कि वो जिंदान हत्याकांड की जांच पर सतर्क निगाह रखेगी और यदि कुछ अनुचित होता है तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जाएगी। वहीं, केदार जिंदान की धर्मपत्नी हेमलता जिंदान सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं। हिमाचल पुलिस ने तीन आरोपियों को पकड़ा है और उन्होंने जुर्म कबूल कर लिया है। मुख्य आरोपी पंचायत उपप्रधान जयप्रकाश है। उसके अलावा गोपाल व कर्म सिंह को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर रिमांड हासिल किया गया है। आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल किया है। उनका कहना है कि केदार जिंदान झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दिया करते थे। तंग आकर उन्होंने उसे मारा है। आरोपियों ने यह भी कहा कि जिंदान की हत्या सुुनियोजित नहीं थी, गुस्से में आकर उसे मौत के घाट उतारा है।

फिलहाल, पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी का गठन किया है। आइए, आगे की पंक्तियों में जानते हैं कि कैसे हिमाचल में एक दलित नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट केदार जिंदान की आवाज को बेरहमी से खामोश किया गया।

हत्या को सड़क दुर्घटना साबित करने की कोशिश

केदार सिंह जिंदान हिमाचल के सिरमौर जिला में काफी सक्रिय थे। सितंबर की सात तारीख को वे बकरास इलाके में मौजूद थे। वहीं, उनकी आरोपियों से बहस हुई। बाद में जिंदान की गाड़ी से कुचलकर मरने की सूचना आई। पहले तो यह संदेह हुआ कि जिंदान की मौत दुर्घटना में हुई है, लेकिन जिस तरीके से जिंदान को कुचला गया था वो सीधे-सीधे मर्डर का मामला प्रतीत हो रहा था। और हुआ भी वही, केदार जिंदान को दबंगों ने गाड़ी से कुचलकर मार डाला। बताया जा रहा है कि गाड़ी चढ़ाने से पहले जिंदान को लाठियों से भी पीटा गया। केदार जिंदान को इस कदर बेरहमी से कुचला गया था कि उनके पार्थिव देह देखने की हिम्मत नहीं होती थी। हिमाचल में ऐसे बेरहम कत्ल की शायद ये अपनी ही तरह की वारदात हो।

जिंदान की हत्या की खबर मिलते ही पूरे सिरमौर जिला में लोग स्तब्ध रह गए। पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा हो गया था। शव को पोस्टमार्टम के लिए राज्य के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान आईजीएमसी अस्पताल शिमला लाया गया। वहां मौके पर दलित संगठनों के लोग और माकपा नेता राकेश सिंघा सहित सैंकड़ों की भीड़ इकट्ठा हो गई। राकेश सिंघा ने आंदोलन का नेतृत्व संभाला और पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाई। पोस्टमार्टम होने के बाद आंदोलनकारी शव को लेकर आधी रात को शिमला के रिज मैदान पर पहुंचे। जोरदार बारिश के बावजूद रात भर लोग न्याय की मांग के लिए डटे रहे। बाद में तय हुआ कि शव के साथ सारे लोग मुख्यमंत्री के सरकारी आवास की तरफ बढ़ें। इस दौरान शिमला के डीसी अमित कश्यप भी वहां पहुंच चुके थे। बाद में शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज मौके पर आए और पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने का भरोसा दिया। साथ ही जिंदान के परिवार को 20 लाख रुपए मुआवजा, बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार के स्तर पर वहन करने के अलावा अन्य मांगों को लेकर हामी भरी। इसके बाद ही आंदोनलकारी शांत हुए और बाद में केदार के शव को उनके पैतृक स्थान पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया।

माकपा विधायक राकेश सिंघा

माकपा नेता और विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि जिंदान को इस तरह से कुचलना दबंगों की तरफ से ये संकेत था कि कोई आवाज उठेगी तो कुचल दी जाएगी। आरटीआई कार्यकर्ता और अंबेदकरवादी रवि कुमार ने कहा कि कहीं भी दलितों पर अत्याचार होगा तो प्रदेश भर में आवाज उठाई जाएगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व नादौन से विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वो केदार जिंदान को सुरक्षा देने में विफल रही। केदार ने अपनी सुरक्षा के प्रति खतरा जताया था।

दलितों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ लड़ते थे केदार

केदार जिंदान दलित वर्ग से संबंध रखते थे। वे वकील थे और आरटीआई कार्यकर्ता भी। केदार जिंदान ने इसी साल यानी वर्ष 2018 में शिमला में एक प्रेस वार्ता की। उसमें जिंदान ने खुलासा किया था कि बकरास पंचायत के उपप्रधान फर्जी तरीके से बीपीएल में शामिल होकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। उनके परिवार में छह सदस्य सरकारी नौकरी ले चुके हैं, लेकिन फिर भी बीपीएल के तहत मिलने वाली सुविधाएं डकारने के लिए सूची में बने हुए हैं। केदार जिंदान शिलाई विधानसभा क्षेत्र में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते थे। शोषितों के हक में केदार जिंदान अग्रिम मोर्चे पर खड़े हो जाते थे। दरअसल, जिंदान के भीतर विद्रोही तेवर उस समय से आए थे, जब करीब डेढ़ दशक पहले उनके पिता की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इलाके के लोग बताते हैं कि जिंदान के पिता को खेतों में ही कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया था। उसके बाद से ही केदार जिंदान के मन में अन्याय व शोषण के खिलाफ विद्रोही तेवर जोर पकड़ गए थे।

बेटियों के साथ केदार सिंह जिंदान

राजधानी शिमला के उपनगर संजौली में सब्जी विक्रेता सामाजिक कार्यकर्ता और आंबेडकरवादी रवि कुमार ने बताया कि जिंदान ने अन्याय व शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी। करीब आठ साल पहले केदार से उनका संबंध तब बना जब जिंदान ने उसने संपर्क किया था और कहा था कि वे शिमला में मीडिया के समक्ष कुछ मुद्दे उठाना चाहते हैं। रवि कुमार ने प्रेस क्लब शिमला में जिंदान के साथ मिलकर प्रेस वार्ता की। जिंदान ने मीडिया में बताया था कि जिन भूमिहीन लोगों को सरकार की तरफ से जमीन मिली है, उनसे जमीनें वापिस लेने का प्रयास हो रहा है। उसके बाद तो अन्याय व शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का सिलसिला चल निकला।

जिंदान ने फेसबुक पर खुद को विद्रोही लिखते रहे। उन्होंने सिरमौर के शिलाई विधानसभा क्षेत्र में अंतर्जातीय विवाह की मुहिम भी शुरू की। उच्च वर्ग के लोगों को जिंदान की ये मुहिम पसंद नहीं आई थी। धीरे-धीरे जिंदान के दुश्मन बढऩे लगे थे। कुछ लोगों ने आरोप लगाने शुरू कर दिए कि जिंदान ब्लैकमेल करते हैं, लेकिन किसी ने सबूत नहीं दिए और न ही कोई शिकायत की। जिन आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया है, वे भी कह रहे हैं कि जिंदान से तंग आकर उन्होंने उसे मार डाला।

हत्या से हिमाचल में हलचल

इस घटना ने हिमाचल में किस कदर हलचल मचाई है, उसका सबूत है इलाके में गर्मागर्म बहस और प्रदर्शनों का सिलसिला। उच्च वर्ग के लोगों ने भी रैली निकाली और कहा कि ये हादसा है और सडक़ दुर्घटना में मौत हुई है। सोशल मीडिया पर भी बहुत से लोग इसे हादसा साबित करने में जुट गए थे। शिलाई में सर्व समाज सभा का गठन भी हुआ, जिसके अधिवेशन में वक्ताओं ने कहा कि सद्भाव का वातावरण बिगड़ने नहीं दिया जाएगा। हिमाचल में दलित वर्ग से संबंधित संगठन अपने स्तर पर मुहिम चला रहे हैं। माकपा विधायक राकेश सिंघा व अन्य वामपंथी संगठनों ने भी इस मामले में खूब सक्रियता दिखाई है। ये सही है कि यदि दलित वर्ग के साथ मिलकर वामपंथी संगठन तीखा विरोध न करते तो पुलिस व राज्य सरकार भी इस तरह का दबाव न पड़ता। फिलहाल, जिंदान की पत्नी हेमलता दोषियों को सख्त सजा की मांग कर रही हैं। दोनों बेटियां दहशत में हैं। मासूम बेटियों का मन यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि उनके पिता अब इस संसार में नहीं हैं।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

राजेश शर्मा

लेखक एक प्रमुख मीडिया संस्थान में डिजिटल विभाग में कार्यरत पत्रकार हैं।

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...