मध्यप्रदेश एक आदिवासी बहुल राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 21.1 फीसदी (1.54 करोड़) आदिवासी हैं। अत: आदिवासियों को ही सत्ता की चाभी माना जाता रहा है।
आरंभिक समय में कांग्रेस के नेताओं ने आदिवासियों को आश्वस्त किया कि हमारे अलावा कोई भी तुम्हारा भला नहीं कर सकता, परिणाम स्वरूप सारा आदिवासी समुदाय और समुदाय की अगुआई करने वाले लोग कांग्रेस का वोट बैंक बन गये। अब कुछ होगा, अगली बार कुछ हो सकता है, इसी ऊहापोह में अनेक पंचवर्षीय योजनाओं का समय निकल गया। इसके अलावा संविधान में आदिवासियों के हित वाले प्रावधानों में लगातार संशोधन से आदिवासियों की जड़ें हिल गयी। इसी के प्रतिक्रिया स्वरूप आज से 15 साल पहले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का उदय हुआ। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उदय से भी कुछ परिवर्तन नहीं आया, सिर्फ आदिवासी वोट बैंक कांग्रेस के बजाय भाजपा के पाले में चला गया। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि आदिवासी वोट बैंक के कारण ही भाजपा पिछले 15 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज है।
लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस या भाजपा के लिए बहुत मुश्किल साबित होने वाले हैं, क्योंकि पिछले 70 सालों में आदिवासियों से हुई नाइंसाफी और इससे पनपे रोष को हवा दी है ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ (जयस) नामक आदिवासी संगठन ने।
जयस प्रदेश की आदिवासी बहुल 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुका है। जयस ने आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार– पांचवीं अनुसूची, 1996 में बने पेसा(प्रोविजन्स ऑफ पंचायत एक्सटेंशन टू शेडयूल्ड एरिया) कानून, वनाधिकार कानून एवं ग्राम सभा जैसे मुद्दों को भाजपा-कांग्रेस के सरकारों पर अनदेखा करने का आरोप लगाया है। वहीं आदिवासी इलाकों में व्याप्त बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था, अशिक्षा, खराब सड़कें और कुपोषण जैसे मुद्दों पर भी इन्हें घेरा है।
जयस दे रहा कांग्रेस-भाजपा को चुनौती
मध्य प्रदेश के 80 विधानसभा क्षेत्र हैं आदिवासी बहुल
गूंज रहा है ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का नारा
अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ के नारे प्रदेश के आदिवासी अंचलों में लगातार गूंज रहे हैं। आदिवासी युवाओं की लगातार बढ़ती राजनीतिक आकांक्षाएं कांग्रेस और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गयी हैं।
इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अुगआई में सरकार जनआशीर्वाद यात्रा पर है। प्रदेश में मुख्यमंत्री रथ पर सवार होकर जनता से आशीर्वाद मांग रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर ‘जयस’ ने भी हाल ही में प्रदेशभर में आदिवासी अधिकार महारैली का आयोजन किया। इस यात्रा का समापन धार जिले के कुक्षी नगर में हुआ। अलग-अलग अंचलों से गुजरी इस यात्रा का प्रभाव भी देखने को मिला। जयस की रैलियों में हजारों की तादात में आदिवासी शिरकत कर रहे हैं। जयस के ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ में झाबुआ, अलिराजपुर, धार, बड़वानी, रतलाम, खरगोन, डिंडौरी, रायसेन, मंडला, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, जबलपुर, खंडवा, देवास, बुरहानपुर, बैतूल, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी और होशंगाबाद जैसे जिलों में काफी जनसमर्थन देखने को मिला।
जयस का मानना है कि भाजपा-कांग्रेस जैसे मौजूदा दलों ने आदिवासी समुदाय को केवल प्रतिनिधित्व दिया, नेतृत्व नहीं दिया। जयस के संरक्षक हीरालाल अलावा का कहना है कि प्रदेश का नेतृत्व आदिवासियों के हाथ में आयेगा, तभी आदिवासियों के समस्याओं का समाधान हो सकता है। आदिवासी नेतृत्व के उद्देश्य से ही जयस चुनावी मैदान में उतरने की पूरी तैयारियां कर चुका है।
पिछले साल ही छात्र संघ के चुनावों के बाद आदिवासी युवाओं का यह संगठन चर्चा में आया था। जयस की धमक ने सरकार और विपक्ष दोनों के कान खड़े कर दिये हैं। इस बदलाव की सुगबुगाहट के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जयस के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और पहली बार राज्य में नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर 20 जिलों में छुट्टी की घोषणा की।
जयस के बढ़ते प्रभाव को देख सक्रिय हुई शिवराज सिंह चौहान सरकार
9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर छुट्टी की घोषणा
अपने अधिकारों को लेकर इस बार सजग हैं आदिवासी
हालांकि मध्यप्रदेश का जो राजनीतिक परिदृश्य है उसमें भाजपा और कांग्रेस के अलावा अन्य पार्टियों का खास प्रभाव नहीं दिखता है। लेकिन इनमें बड़े दलों का खेल बिगाड़ने का माद्दा जरूर है। यही कारण है कि इन दलों और समाज के विभिन्न वर्गों की राजनीतिक आकांक्षाओं को नई ऊंचाई देने वाले नेताओं की सक्रियता इस बार के विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बना सकती है।
मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग एक अरसे से चल रही है। आदिवासी बहुलता के बावजूद महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर आदिवासियों की अनदेखी से आदिवासी समुदाय में काफी रोष है।
हाल ही में धार जिले के कुक्षी तहसील के मंडी प्रांगण में आयोजित ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ के समापन कार्यक्रम में देशभर के अलग-अलग इलाकों से लोग पहुंचे। इस कार्यक्रम में आये लोगों में एक अलग-सा उत्साह नजर आ रहा था। एक नयी लहर से भरे हुए अलग-अलग इलाकों के हजारों लोग ‘आदिवासी सरकार’ बनाने के सपने को लेकर वहां पहुंचे। इस कार्यक्रम में सबसे अधिक जोश युवाओं में दिखा। अलग-अलग जगहों से आई जयस की टीमें पूरे कार्यक्रम में राजनीति को बदलने की हुंकारें भर रही थीं।
कुक्षी टीम की तरफ से व्यवस्था देख रहे 20 साल के एक नौजवान से यह पूछने पर कि उनके लिए इस रैली का क्या महत्व है, बीएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे इस युवा ने बताया कि “उसके लिए सबसे बड़ा मुद्दा ‘पांचवी अनुसूची’ का है। जंगल और जमीन के संसाधनों पर आदिवसियों का ही अधिकार होना चाहिए।” जयस इस बार कितना प्रभावी रहेगा, वह आश्वस्त होकर बताते हैं, “अबकी बार आदिवासी सरकार ही बनेगी।” पास के जिले खरगोन से आये बीए अंतिम वर्ष के नौजवान ने बताया कि “वे आदिवासी अधिकारों को लेकर इस रैली मे आये हैं”। जयस की सरकार बनने को लेकर आश्वस्त इस युवा का मानना है कि “आदिवासियों को अब भी उनके बहुत से बुनियादी अधिकार मिलना बाकी है।” इस बार क्षेत्र की राजनीति को बदलने का भरोसा लिए वे बताते हैं कि “अब आदिवासी युवा अपने अधिकारों को लेकर और सचेत और संगठित हो रहे हैं।” कई गांवों से पंचायत प्रतिनिधि भी अपने साथ लोगों को लेकर आए थे। कई जनप्रतिनिधियों ने कार्यक्रम में शिरकत की।
लेकिन जयस के लिए सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। क्षेत्र में जयस की चर्चा तो है लेकिन आम आदमी को जयस की राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को लेकर असमंजस भी है। मनावर तहसील के पास के गांव धनोरा के निवासी हुकुम का मानना है कि जयस को अभी भी जनाधार बढ़ाना होगा। आशंका जताते हुए वे कहते हैं कि कहीं आगे चलकर जयस अगर कांग्रेस या भाजपा से गठजोड़ करता है तो फिर हम ठगा हुआ महसूस करेंगे।
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मनावर शहर में ही 21 साल से पान की दुकान चलाने वाले एक शख्स ने बताया कि जनता के मूड का कुछ भी पता नहीं है कि वह किस ओर झुकेगी। वे क्षेत्र में जयस को बहुत अधिक प्रभावी नहीं मानते। हां पास ही में सीमेंट फैक्ट्री से लेकर जनपद पंचायत उमरबन तक के इलाके में वे जयस के प्रभाव की बात स्वीकारते हैं।
मनावर के पास ही के गांव गोलपुरा में कुछ नौजवानों से रैली में न जाने की बात पर बताया कि उन्हें कुक्षी में आदिवासी अधिकारों पर किसी आयोजन की जानकारी नहीं थी।
धरमपुरी विधानसभा के निवासी कालूसिंह का भी मानना है कि जयस का क्षेत्र में बहुत अधिक आधार नहीं है। वे इस बार बदलाव की बात जरूर करते हैं लेकिन जयस का चुनावों में बहुत अधिक प्रभाव रहेगा, इस बात पर वे असहमति जताते हुए कहते हैं कि आदिवासियों के लिए मौजूदा सरकार ने कुछ भी नहीं किया। कालीवाबड़ी के पास के गांव के निवासी मोहन सिंह कहते हैं कि इस बार क्षेत्र में बदलाव की लहर तो है।
बहरहाल जो भी हो इस बार का चुनाव मध्यप्रदेश की राजनीति में जयस के लिए अपनी राजनैतिक जड़ें जमाने का सुनहरा अवसर तो है। इसकी रैलियों में पहुंच रहे बड़ी संख्या में आदिवासी और नौजवान, अपनी जेब से खर्च कर रैली में भाग लेने पहुंच रहे हैं। जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा, आदिवासियों के साथ ही अनुसूचित जातियों और अन्य वर्गों का समर्थन बताते हुए कहते हैं कि लोग इस बार बदलाव चाहते हैं और अबकी बार वे आदिवासी सरकार बनाएंगे। जयस की अधिकार यात्रा के समापन पर अन्य राज्यों के लोग भी पहुंचे। राजनैतिक दलों के लिए जयस जैसे संगठनों का उभरना एक चेतावनी तो है कि अब आदिवासी अपने अधिकारों और राजनीति को लेकर नए ढंग से लामबंद हो रहे हैं।
(कॉपी-संपादन : राजन/एफपी डेस्क)
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