एल्गार परिषद के कार्यक्रम को बहाना बनाकर और इसे भीमा कोरेगांव की हिंसा से जोड़कर बीते 28 अगस्त को लेखकों, वकीलों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार और बहुजन कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे पड़े और उनमें से पांच लोगों को गिरफ्तार किया। ये सभी छापेमारियां और गिरफ्तारियां महाराष्ट्र की पुणे पुलिस द्वारा 1 जनवरी 2018 को हुए भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के आरोप में की गयी थी। उक्त घटनाक्रम पर देश में काफी प्रतिक्रियाएं हुईं, प्रतिरोध दर्ज कराए गए। सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार किए गए पांच लोगों को 5 सितम्बर तक हाउस अरेस्ट रखने का आदेश दिया जिसे बढ़ाकर 12 सितंबर किया गया और अब इसे बढ़ाकर 17 सितंबर कर दिया गया है।
इसी बीच भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े तथ्यों की जांच के लिए बनाई गई 9 सदस्यों की फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। इस टीम का गठन 9 जनवरी 2018 को पुलिस प्रशासन के कहने पर विभिन्न दलित संगठनों के द्वारा किया गया था जिसका नेतृत्व पुणे के डिप्टी मेयर डॉ. सिद्धार्थ घेंडे ने की। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट पुलिस को 20 जनवरी 2018 को ही सौंप दी थी, लेकिन पुलिस ने जांच के क्रम में इस रिपोर्ट पर कोई संज्ञान नहीं लिया था।
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भीमा-कोरेगांव हिंसा में सामने आयी भिडे और एकबोटे की संलिप्तता
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आग लगाने को था केरोसिन टैंकर का इंतजाम
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पुणे के डिप्टी मेयर के नेतृत्व में टीम ने पुलिस पर लगाया मूकदर्शक रहने का आरोप
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ”यह हिंसा सुनियोजित थी, जिन्हें रोकने के लिए पुलिस ने कुछ नहीं किया और मूकदर्शक बनी रही।” रिपोर्ट ने हिंसा को साजिश बताया है और कहा है कि हिंदूवादी नेता मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े ने करीब 15 साल से ऐसा माहौल बना रखा है, जिनसे हिंसा की स्थिति पैदा हुई। जिससे यह स्पष्ट होता है कि बहुजनों को जान-बुझकर निशाना बनाया जा रहा है और परेशान किया जा रहा है। टीम की रिपोर्ट में कहा गया है कि ”एकबोटे ने धर्मवीर संभाजी महाराज स्मृति समिति की स्थापना वधु बुद्रक और गोविंद गायकवाड़ से जुड़े इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने के लिए की थी। महार जाति के गायकवाड़ ने शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज का अंतिम संस्कार किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है- ”संभाजी महाराज की समाधि के पास गोविंद गायकवाड़ के बारे में बताने वाले बोर्ड को हटाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के.बी. हेडगेवार का फोटो लगाया गया था, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। यह मराठों और दलित समुदाय बीच खाई बनाने के लिए किया गया था। अगर पुलिस ने कोई कदम उठाया होता तो हिंसा को रोका जा सकता था।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि भीमा-कोरेगांव के पास सनासवाड़ी के लोगों को हिंसा के बारे में पहले से जानकारी थी। इसका प्रमाण यह है कि इलाके की दुकानें और होटल बंद रखे गए थे।” रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि ”कोरेगांव में केरोसिन से भरे टैंकर लाए गए थे और लाठी-तलवारें पहले से रखी गई थीं। रिपोर्ट में पुलिस के मूकदर्शक बने रहने का दावा करते हुए एक डिप्टी एसपी, एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक अन्य पुलिस अधिकारी का नाम लिया गया है और कहा गया है कि हिंसा के बारे में जानकारी दिए जाने के बाद भी पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया।”
रिपोर्ट के मुताबिक दंगाई यहां तक कहते रहे- ‘चिंता मत करो, पुलिस हमारे साथ है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि ”सादी वर्दी में मौजूद पुलिस भगवा झंडों के साथ भीमा-कोरेगांव जाती भीड़ को रोकने की जगह उनके साथ चल रही थी। धेंडे ने दावा किया है कि इस बात का सबूत दे दिया गया है कि दंगे सुनियोजित थे और उनका एल्गार परिषद से कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि पहले आरोप लगाया गया है।” रिपोर्ट में बताया गया है कि इतिहास से पता चलता है कि “भीमा कोरेगांव और आसपास के इलाकों में दलितों और मराठाें के बीच दुश्मनी नहीं थी लेकिन भिड़े और एकबोटे ने इतिहास की पटकथा को बदलकर इन समुदायों को आपस में लड़ाने की कोशिश की और हिंसा की पृष्ठभूमि भी इन्हीं लोगों ने तैयार की।
(कॉपी संपादन- सिद्धार्थ/ एफपी डेस्क)
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