हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र लाहौल स्पीति में अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन समाप्त हो गया। बीते दिनों भारी बर्फबारी की वजह से अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण चर्चित यह क्षेत्र शेष दुनिया से कट गया था। स्थानीय निवासियों के अलावा हजारों की संख्या में सैलानी फंसे पड़े थे। राज्य सरकार के मुताबिक छह दिनों के रेस्क्यू आपरेशन के दौरान 4580 लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
मुख्यमंत्री ने किया पहल
इससे पहले पूरे इलाके में हालत यह हो गयी थी कि आवागमन के सारे रास्ते बाधित हाे चुके थे। दूरसंचार व अन्य अधिसंरचनाएं भी ध्वस्त हो चुकी थीं। स्थिति की भयावहता को देखते हुए स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सेना से हेलिकॉप्टर की मांग की थी। सेना और स्थानीय प्रशासन के द्वारा युद्ध स्तर पर चलाये गये रेस्क्यू आपरेशन के बाद केलंग-सूरजताल, केलंग-उदयपुर और केलंग ग्राफू, ग्राफू-छतडू, काजा-बातल, उदयपुर-छलिंग मार्ग बहाल कर दिए गए हैं। इससे इलाके में फंसे लोगों की जान में जान आयी और अब जनजीवन सामान्य होने लगा है।
स्थानीय विधायक सह कृषि, आईटी एवं जनजातीय विकास मंत्री डा. रामलाल मारकंडा ने कहा कि राज्य सरकार की सक्रियता के कारण इलाके में व्यापक रेस्क्यू आपरेशन चलाया गया और समय रहते लोगों की जानें बचायी जा सकी। उन्होंने यह भी कहा कि इलाके में टूटे पुल व सड़कों आदि की मरम्मती करायी जा रही है।
सैलानियों ने सुनायी तबाही के मंजर की दास्तान
भारी बर्फबारी के कारण पूरे इलाके में हुई बर्बादी और भयावह मंजर के बारे में एक सैलानी सृष्टि ने विस्तार से जानकारी दी। उन्हें रेस्क्यू के बाद पटसेउ आर्मी कैंप में रखा गया था। वे गुजरात के सूरत की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि वे सूरजताल से मनाली की ओर जा रहे थे। लेह से हायर की हमारी गाड़ी आगे बढ़ रही थी और आसमान से बर्फ के फाहे गिर रहे थे। जैसे-जैसे हमारा वाहन आगे बढ़ रहा था कि बर्फबारी भी और तेज हो रही थी। सूरजताल से आगे निकलकर बारालाचा से तीन किलोमीटर दूर हमारी गाड़ी के पहिए थम गए। यहां दूर-दूर तक न तो कोई बस्ती थी न कोई रहने के लिए सूखी छत थी। एक गाड़ी के भीतर हम पांच लोग थे। तीन दिन बाद हालांकि मौसम थम गया। लेकिन हमारे चारों तरफ सफेद आफत खड़ी थी। पांच दिनों तक हम उसी गाड़ी के भीतर ही रहे। हम यही समझ रहे थे कि अब शायद ही यहां से सुरिक्षित निकल सकेंगे। पांचवें दिन रेस्क्यू दल का एक सदस्य राकेश कुमार हमारे लिए फरिश्ता बनकर आया। जहां हमारी गाड़ी थी उस क्षेत्र में ऐसे 80 के करीब लोग थे। जिन्हें राकेश कुमार ने बर्फीले खतरनाक रास्ते से पटसेउ स्थित आर्मी कैंप तक पहुंचाया।
लाहौल स्पीति के छोटा दड़ा से रेस्क्यू किए गए बंगलुरु की सुष्मिता और गुजरात के बडौदरा की दीक्षा ने बताया कि वे मनाली से चंद्रताल के लिए जा रहे थे। वे दो ट्रेवल एजेंसी की गाड़ियों में जा रहे थे कि अचानक उनकी गाड़ी बर्फ में स्किड हो गई और मजबूरन हमें छोटा दड़ा की ओर आना पड़ा। छोटा दड़ा में एक रेस्ट हाउस था और सभी ने यहीं शरण लेनी उचित समझा। दीक्षा कहती है शुक्र है बचकर आ गए अन्यथा बर्फ के बीच हमारा यह जिंदगी का आखिरी सफर होता।
सेना के जवानों ने जान पर खेलकर बचायी जिंदगियां
इस रेस्क्यू में भारतीय वायु सेना के जवानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर 5 से 6 फुट तक बर्फ की मोटी परत पर हेलिकॉप्टर की लैंडिंग कर पर्यटकों को रेस्क्यू किया जा रहा है जो बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य था। भारतीय वायु सेना के एमआई-17 वी पांच हेलिकॉप्टरों ने खाद्य सामग्री के साथ सुबह करीब नौ बजे भुंतर हवाई अड्डे से कुंजुम दर्रे के अत्यंत दुर्गम क्षेत्र की ओर उड़ान भरी। आंखों को चुंधिया देने वाली सफेद गगनचुंबी पहाड़ियों के बीच से हेलिकॉप्टर ले जाकर रेस्क्यू आॅपरेशन को अंजाम देना आसान नहीं दिख रहा था, लेकिन वायु सेना के जांबाजों ने खतरों से खेलना कर यहां लैंडिंग करवाई और पर्यटकों को बर्फ की कैद से खींच लाए। एमआई-17 वी 5 हेलिकॉप्टर की इस महत्वपूर्ण उड़ान में स्क्वाड्रन लीडर विपुल गोयल की टीम में को-पायलट के रूप में मनोनीत धीमान, फ्लाइंग आॅफिसर अरुण सिंह, सार्जेंट संतोष और सार्जेंट वीपी पांडे शामिल हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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