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व्यभिचार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट : स्त्री जाए तो जाए कहां?

व्यभिचार को अपराध ठहराने या न ठहराने के सारे कानून पहले से ही पुरूषों के पक्ष में खड़े हैं। धारा 497 हटाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लिंग समानता और स्त्री मुक्ति के नारे की आड़ में, मर्दों को व्यभिचार, एय्याशी, शोषण और देह व्यापार की असीमित छूट ही देगा। बता रहे हैं अधिवक्ता अरविन्द जैन :

बहन के नाम पाती

  • अरविन्द जैन

बहन के नाम पाती

प्रिय बहन !

तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर परेशान हूं कि तुम्हें क्या सलाह दूं? सारे कानून पढ़ने, सोचने समझने और विचारने के बाद मैं तो सिर्फ इतना ही समझ पाया हूं कि तुम ‘व्यभिचार’ के आधार पर अपने पति को कोई सजा नहीं दिला सकती क्योंकि तुम्हारे पति जो कर रहे हैं वह कानून की नजर में ‘व्यभिचार’ नहीं है और अगर हो भी तो सजा दिलवाने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है। अपने पति के विरुद्ध तुम सिर्फ तलाक के लिए मुकदमा दायर कर सकती हो और वह भी बिना किसी ठोस सबूत और गवाहों के मिलना तो मुश्किल ही है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : व्यभिचार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट : स्त्री जाए तो जाए कहां?

 

 

 

 

 

लेखक के बारे में

अरविंद जैन

अरविंद जैन (जन्म- 7 दिसंबर 1953) सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। भारतीय समाज और कानून में स्त्री की स्थिति संबंधित लेखन के लिए जाने-जाते हैं। ‘औरत होने की सज़ा’, ‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’, ‘न्यायक्षेत्रे अन्यायक्षेत्रे’, ‘यौन हिंसा और न्याय की भाषा’ तथा ‘औरत : अस्तित्व और अस्मिता’ शीर्षक से महिलाओं की कानूनी स्थिति पर विचारपरक पुस्तकें। ‘लापता लड़की’ कहानी-संग्रह। बाल-अपराध न्याय अधिनियम के लिए भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्य। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 1999-2000 के लिए 'साहित्यकार सम्मान’; कथेतर साहित्य के लिए वर्ष 2001 का राष्ट्रीय शमशेर सम्मान

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