h n

बहुजन साहित्य : एक नई सांस्कृतिक-साहित्यिक दृष्टि की प्रस्तावना

बहुजन साहित्य और संस्कृति की अवधारणा ने पिछले कुछ वर्षों में आकार लेना शुरू किया है। इस अवधारणा को समझने के लिए इन तीन किताबों का अध्ययन आवश्यक है। सिद्धार्थ का विश्लेषण :

भारतीय समाज, संस्कृति, साहित्य, मिथक और इतिहास के पुनर्पाठ और प्रतिपाठ का उपक्रम हजारों वर्षों से चला आ रहा है। वैदिक-अवैदिक, आर्य-अनार्य और अन्य विभिन्न पाठों, पुनर्पाठों और प्रतिपाठों की लंबी प्रक्रिया रही है। औपनिवेशिक कालावधि में यह प्रक्रिया बहुत तीव्र हो गई। राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के दौरान विविध विचार सारणियों और हितों के आधार पर नए सिरे से भारतीय समाज, इतिहास और भविष्य को लेकर तीखे विमर्श शुरू हो गए। इन विमर्शों का प्रयोजन यथार्थ की समझ कायम करने से ज्यादा विभिन्न वर्गाें, समुदायों और संप्रदायों के हितों की रक्षा करना और उन हितों के इर्द-गिर्द लामबंदी करना था। इन दृष्टियों को आमतौर पर औपनिवेशिक, राष्ट्रवादी, उदारवादी, वामपंथी और वर्ण-जाति/ब्राह्मणवाद विरोधी (दलित दृष्टि) दृष्टियों के रूप में जाना जाता है। इसके साथ ही खुले और छद्म रूप में हिदू राष्ट्र की स्थापना के नाम पर ब्राह्मणवाद/मनुवाद की पुनर्स्थापना की भी पुरजोर कोशिश हो रही थी। सतह पर दिखने वाली इन विचार-सारणियों के वास्तविक अन्तर्य भी वह नहीं थे, जो उनकी संज्ञाओं से परिलक्षित होते हैं। आज यह जग-जाहिर सत्य है कि न केवल राष्ट्रवादी, उदारवादी (गांधीवादी), वामपंथी दृष्टि भी अपने भीतर गहरे स्तर पर अपने नाभिकीय तत्वों के रूप में ब्राह्मणवाद और जातिवादी पितृसत्ता को समाहित किए हुए थी।

पूरा आर्टिकल यहां पढें बहुजन साहित्य : एक नई सांस्कृतिक-साहित्यिक दृष्टि की प्रस्तावना

 

 

 

लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

संबंधित आलेख

नदलेस की परिचर्चा में आंबेडकरवादी गजलों की पहचान
आंबेडकरवादी गजलों की पहचान व उनके मानक तय करने के लिए एक साल तक चलनेवाले नदलेस के इस विशेष आयोजन का आगाज तेजपाल सिंह...
ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं में मानवीय चेतना के स्वर
ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदू संस्कृति के मुखौटों में छिपे हिंसक, अनैतिक और भेदभाव आधारित क्रूर जाति-व्यवस्था को बेनकाब करते हैं। वे उत्पीड़न और वेदना से...
दलित आलोचना की कसौटी पर प्रेमचंद का साहित्य (संदर्भ : डॉ. धर्मवीर, अंतिम भाग)
प्रेमचंद ने जहां एक ओर ‘कफ़न’ कहानी में चमार जाति के घीसू और माधव को कफनखोर के तौर पर पेश किया, वहीं दूसरी ओर...
अली सरदार जाफ़री के ‘कबीर’
अली सरदार जाफरी के कबीर भी कबीर न रहकर हजारी प्रसाद द्विवेदी के कबीर के माफिक ‘अक्खड़-फक्कड़’, सिर से पांव तक मस्तमौला और ‘बन...
बहुजन कवि हीरालाल की ग़ुमनाम मौत पर कुछ सवाल और कुछ जवाब
इलाहाबाद के बहुजन कवि हीरालाल का निधन 22 जनवरी, 2024 को हुआ, लेकिन इसकी सूचना लोगों को सितंबर में मिली और 29 सितंबर को...