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एक बार फिर हुई मराठों के आरक्षण की घोषणा

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मराठों के लिए 16  प्रतिशत आरक्षण घोषणा की है। यह देखते हुए कि राज्य में विधानसभा चुनाव काफी दूर नहीं है, क्या महाराष्ट्र की यह सरकार भी ऐसा कोई वादा करने जा रही है जिसे वह भी अपने पूर्ववर्ती की तरह पूरा नहीं कर पाएगी? नागेश चौधरी की रिपोर्ट  :

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मराठों के लिए आरक्षण की घोषणा की है। यह आगामी 1 दिसंबर 2018  से लागू होगा। मराठों को यह आरक्षण सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में दिया जाएगा। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह की कोई घोषणा की गई है। इससे पहले वर्ष 2014  में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की (एनसीपी) तत्कालीन गठबंधन सरकार ने भी मराठों के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। साथ ही, मुसलमानों के लिए भी 5 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा उस समय की गई थी। परंतु, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठों को आरक्षण देने की इस घोषणा को लागू करने पर रोक लगा दिया। बाद में सत्ता में आने के तुरंत बाद फड़नवीस ने कहा था कि वह आरक्षण के इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाएंगे। लेकिन वे वह इस वादे को भूल गए ।

हाल ही में महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग ने एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें उसने कहा है कि मराठों को ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण दिया जा सकता है।  ऐसा वर्तमान ओबीसी कोटे से छेड़छाड़ किए बिना किया जा सकता है। उस स्थिति में, राज्य में इस कोटे का प्रतिशत सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीमा 50 से ऊपर चला जाएगा। इस बात की पूरी आशंका है कि हाईकोर्ट इस निर्णय के खिलाफ फैसला देगा। यहां तक कि  तमिलनाडु के 69 प्रतिशत आरक्षण कोटे को भी चुनौती दी गई है और यह आरक्षण देने का एक ऐसा फैसला है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रहा है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस

दिलचस्प बात यह है कि मंडल आंदोलन के समय मराठा लोग आरक्षण के खिलाफ थे। वे यह नहीं चाहते थे कि उन्हें पिछड़ा माना जाए। दूसरी ओर, मराठा-कुनबी समूह के कुनबियों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण दे दिया गया। परंतु अब मराठों में पिछले कुछ सालों से उनके पुराने फैसले पर दुबारा विचार करने का मंथन चल रहा है। अधिकांश मराठा अब कुनबियों के साथ अपने बिरादराना संबंधों की दुहाई दे रहे हैं और आरक्षण की मांग कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे मराठा युवकों ने अपने नेताओं को यह विश्वास दिला दिया है कि उन्हें आरक्षण की जरूरत है।  

यह भी पढ़ें : आरक्षण के लिए मराठा समुदाय अब शूद्र भी बनने को तैयार

कुनबियों की तरह, मराठा भी खेती-बारी करने वाली जाति है, जिसमें छोटे किसान और मज़दूर आते हैं। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पाया है कि  62.78 प्रतिशत मराठे लघु और सीमान्त किसान हैं।

महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग मराठों को आरक्षण देने के बारे में अपनी रिपोर्ट राज्य के मुख्य सचिव डी. के. जैन (बाएं से दूसरे) को  सौंपते हुए। (चित्र साभार : डीएनए)

जोतीराव फुले  ने लिखा था कि मराठा कोई जाति  नहीं है – वे वास्तव में कुनबी हैं।  लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत से पश्चिम महाराष्ट्र के कुनबियों ने खुद को मराठा कहना शुरू कर दिया।

 समाजशास्त्री इरावती कर्वे ने अपनी पुस्तक ‘महाराष्ट्र – ‘लैंड एंड इट्स पीपल’ (महाराष्ट्र स्टेट गवर्नमेंट गैज़ेटेर) में लिखा है कि  कुनबी और मराठा महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या का 50 फ़ीसदी हैं – कुनबियों की जनसंख्या 35 और मराठों की 15 प्रतिशत है।

इस साल के शुरू में आरक्षण की मांग करते हुए मराठों का प्रदर्शन

धांगर चाहते हैं अनुसूचित जनजाति का दर्जा

धांगर (गड़ेड़िया) जाति इस समय ओबीसी वर्ग में हैं, और वे अपने लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग कर रहे हैं। सत्ता में आने से पहले  वर्ष 2014 के आम चुनावों में भाजपा ने धांगरों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का वादा किया था। अभी तक इस वादे को पूरा नहीं किया जा सका है। मुस्लिम भी अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। जब पूर्व की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने इस समुदाय को 5  प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी, तो हाईकोर्ट ने इसे शिक्षा के क्षेत्र में लागू करने की अनुमति भी दे दी थी। परंतु वर्तमान सरकार ने इसे लागू नहीं किया।

(अनुवाद : अशोक झा, कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

नागेश चौधरी

नागेश चौधरी विगत तीस वर्षों से सामाजिक कार्यकर्ता का धर्म बखूबी निभा रहे हैं। वे मराठी पाक्षिक 'बहुजन संघर्ष’ के संस्थापक संपादक हैं। उन्होंने मराठी, अंग्रेजी व हिंदी में कई पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें 'जाति व्यवस्था व भारतीय क्रांति’ और 'व्हाय बहुजंस आर डिवाइडेड एंड ब्राह्मिंस स्टे यूनाइटेड एंड स्ट्रांग’ शामिल हैं 

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