आज भारत में जो भी भेदभाव और सामाजिक अन्याय हम देख रहे हैं, उसकी जड़ें हिन्दू धर्म में हैं। पेरियार और आंबेडकर दोनों की यह दृढ़ मान्यता थी कि सभी सामाजिक निष्ठुरताओं और निर्दयताओं के लिए हिन्दू धर्म ज़िम्मेदार है। हिन्दू धर्म के उन्मूलन को पेरियार अपना परम कर्त्तव्य मानते थे। आंबेडकर ने कहा था, “मैं हिन्दू के रूप में जन्मा हूँ परन्तु मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं”। वर्ष 1956 में आंबेडकर ने अपने एक लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को अंगीकार कर लिया था।
परंतु मेरी मान्यता है कि ईसाई या बौद्ध धर्म अथवा इस्लाम को अपनाकर हम हिन्दू धर्म के उन्मूलन का अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते। हमारे सभी त्यौहारों, रस्मो-रिवाजों और अनुष्ठानों का स्रोत हिन्दू धर्म है। हमारे पारिवारिक रिश्तों, जातियों, उत्सवों और संस्कारों पर हिन्दू धर्म हावी है। इसलिए पेरियार का विचार था कि हम एक वैज्ञानिक वैकल्पिक संस्कृति अपनाएं, जो हिन्दू संस्कृति का स्थान ले। यह लंबी प्रक्रिया होगी और इस दौरान हम अनुपयोगी और अप्रासंगिक चीजों को त्याग सकते हैं। पेरियारवादी होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि मैं पेरियार के विचारों को अमल में लाऊँ और उन्होंने जिस वैकल्पिक संस्कृति का प्रस्ताव किया था उसका समाज में प्रचार-प्रसार करूं।