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‘जाति का विनाश’ डॉ. आंबेडकर का सर्वाधिक चर्चित ऐतिहासिक व्याख्यान है, जो उनके द्वारा लाहौर के जातपात तोडक मंडल के 1936 के अधिवेशन के लिए अध्यक्षीय भाषण के रूप में लिखा गया था, पर विचारों से असहमति के कारण अधिवेशन ही निरस्त हो गया था। यह व्याख्यान आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि जाति का प्रश्न हिन्दू समाज का सबसे ज्वलंत प्रश्न आज भी है। डॉ. आंबेडकर पहले भारतीय समाजशास्त्री थे, जिन्होंने हिन्दू समाज में जाति के उद्भव और विकास का वैज्ञानिक अध्ययन किया था। इस विषय पर उन्होंने पहला शोध कार्य 1916 में किया था, जो ‘कास्ट इन इंडिया’ नाम से चर्चित है। उन्होंने अकाट्य प्रमाणों से यह साबित किया है कि बालिका-विवाह, आजीवन वैधव्य और विधवा को जिन्दा जलाकर मारने की सतीप्रथा का चलन एक स्वतंत्र वर्ग को बंद वर्ग में बदलने के तन्त्र थे। इसी तंत्र ने जाति-व्यवस्था का विकास किया। वे ‘जाति का विनाश’ में वर्णव्यवस्था की कटु आलोचना करते हुए उसे दुनिया की सबसे वाहियात व्यवस्था बताते हैं। उनके अनुसार जाति ही भारत को एक राष्ट्र बनाने के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोध है। इसलिए वे कहते हैं, अगर भारत को एक राष्ट्र बनाना है, तो जाति को समाप्त करना होगा, और इसके लिए जाति की शिक्षा देने वाले धर्मशास्त्रों को डायनामाईट से उड़ाना होगा। यशस्वी पत्रकार राजकिशोर जी ने इन दोनों कृतियों का बहुत बढ़िया अनुवाद किया है, और दोनों को एक ही जिल्द में देकर, जो डॉ. आंबेडकर की भी भावना थी, इसे पाठकों और शोधार्थियों के लिए एक बेहद उपयोगी संस्करण बना दिया है। इसमें उन स्थलों, विद्वानों, ऐतिहासिक घटनाओं, उद्धरणों और धर्मग्रंथों के बारे में, जिनका सन्दर्भ डाॅ. आंबेडकर ने अपने व्याख्यान में दिया है, फुटनोट में उनका विवरण भी स्पष्ट कर दिया गया है। – कंवल भारती, दलित लेखक, फारवर्ड प्रेस, 5 जुलाई 2015
इस पुस्तक में प्रकाशित बाबा साहेब के दो व्याख्यानों ‘जाति का विनाश’ (1936) और ‘भारत में जातियाँ’ (1916) में भारतीय समाज में जाति–व्यवस्था की एक व्यवस्थित तस्वीर पेश की गयी है। जाति की उत्पत्ति, विस्तार एवं जाति के विनाश सम्बन्धी तरीके पर बाबा साहेब ने प्रमाण सहित तार्किक ढंग से प्रकाश डाला है। ‘जाति का विनाश’ व्याख्यान पढ़कर महात्मा गांधी ने कहा था ‘‘कोई भी सुधारक इस व्याख्यान की उपेक्षा नहीं कर सकता। जो रूढ़िवादी हैं वे इसे पढ़कर लाभान्वित होंगे। – अलख निरंजन, फारवर्ड प्रेस, 2 अगस्त 2018
78 वर्ष पूर्व लिखी गई, यह किताब भारतीय समाज की मुक्ति की एक ऐसी सशक्त प्रस्तावना प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि जाति के जहर ने कैसे भारतीय समाज को इतना घिनौना बना दिया है और इसका विनाश क्यों जरूरी है? यह जानने के लिए डॉ. आंबेडकर की किताब ‘जाति का विनाश’ अत्यन्त जरूरी है और जाति व्यवस्था के समूल नाश के कार्यभार की दृष्टि यह तब तक उपयोगी बने रहने वाली है जब तक यह कार्यभार अंतिम तौर पर संपन्न नहीं हो जाता। – डॉ. सिद्धार्थ, फारवर्ड प्रेस, 6 अप्रैल 2018
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