h n

मुद्रा लोन योजना : महिलाओं, दलित, आदिवासी और ओबीसी पर ठीकरा फोड़ने की तैयारी

वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत एनपीए की राशि में 92 फीसदी की वृद्धि हुई है। साथ ही यह भी कहा है कि इस योजना के तहत 74 फीसदी लोन महिलाओं और 36 प्रतिशत लोन दलित, आदिवासी व ओबीसी उद्यमियों को वितरित किए गए हैं

केंद्र सरकार द्वारा 2015 में शुरू की गयी मुद्रा लोन योजना विफलता के कगार पर है। इस आशय के संकेत वित्त मंत्रालय ने चल रहे संसद सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। मंत्रालय ने फिलहाल ठीकरा फोड़ने के लिए जिनका सिर तलाशा है उनमें महिलाएं, दलित, आदिवासी और ओबीसी हैं। मंत्रालय का मानना है कि वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत नन परफार्मिंग एकाउंट्स (एनपीए) में 92 फीसदी की वृद्धि हुई है।

मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में 3,790.35 करोड़ रुपए एनपीए के खाते में चले गए। यानी इतने रुपए वसूल नहीं किए जा सके। जबकि वर्ष 2017-18 में यह राशि बढ़कर 7,277.31 करोड़ रुपए हो गई।

साथ ही यह भी कहा गया है कि 2015 में शुरू इस योजना के तहत अबतक 5 लाख 72 हजार करोड़ रुपए बांटे गए हैं। इस राशि का  74 प्रतिशत महिलाओं को और शेष 36 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों तथा ओबीसी के लोगों को वितरित किए गए हैं।

वर्ष 2015 में मुद्रा लोन योजना की शुरूआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

बताते चलें कि केंद्र सरकार ने इस योजना की शुरूआत इस मकसद के साथ किया था कि इसके जरिए लघु एवं सूक्ष्म स्तरीय उद्यमियों को दस लाख रुपए तक आर्थिक सहायता दी जाएगी। हालांकि इसे लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को चेतावनी दी थी कि योजना के मसौदे में लोन के रिकवरी को लेकर कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। इससे योजना की सफलता संदिग्ध है।

बहरहाल, अधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को स्थगित करने की बात नहीं कही गयी है। संभवत: ऐसा इसलिए कि लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना के तहत ‘59 मिनट में लोन’ की घोषणा की है। दूसरी ओर वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट ने इस योजना की दूसरी तस्वीर सामने रखी है।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...