केंद्र सरकार द्वारा 2015 में शुरू की गयी मुद्रा लोन योजना विफलता के कगार पर है। इस आशय के संकेत वित्त मंत्रालय ने चल रहे संसद सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। मंत्रालय ने फिलहाल ठीकरा फोड़ने के लिए जिनका सिर तलाशा है उनमें महिलाएं, दलित, आदिवासी और ओबीसी हैं। मंत्रालय का मानना है कि वर्ष 2017-18 में मुद्रा योजना के तहत नन परफार्मिंग एकाउंट्स (एनपीए) में 92 फीसदी की वृद्धि हुई है।
मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में 3,790.35 करोड़ रुपए एनपीए के खाते में चले गए। यानी इतने रुपए वसूल नहीं किए जा सके। जबकि वर्ष 2017-18 में यह राशि बढ़कर 7,277.31 करोड़ रुपए हो गई।
साथ ही यह भी कहा गया है कि 2015 में शुरू इस योजना के तहत अबतक 5 लाख 72 हजार करोड़ रुपए बांटे गए हैं। इस राशि का 74 प्रतिशत महिलाओं को और शेष 36 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों तथा ओबीसी के लोगों को वितरित किए गए हैं।
बताते चलें कि केंद्र सरकार ने इस योजना की शुरूआत इस मकसद के साथ किया था कि इसके जरिए लघु एवं सूक्ष्म स्तरीय उद्यमियों को दस लाख रुपए तक आर्थिक सहायता दी जाएगी। हालांकि इसे लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को चेतावनी दी थी कि योजना के मसौदे में लोन के रिकवरी को लेकर कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। इससे योजना की सफलता संदिग्ध है।
बहरहाल, अधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को स्थगित करने की बात नहीं कही गयी है। संभवत: ऐसा इसलिए कि लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना के तहत ‘59 मिनट में लोन’ की घोषणा की है। दूसरी ओर वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट ने इस योजना की दूसरी तस्वीर सामने रखी है।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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