[पेरियार ने आजीवन ब्राह्मणवाद का विरोध किया। वह मानते थे कि भारत के विकास में सबसे बड़ा बाधक कोई और नहीं बल्कि विभेद पैदा करने वाली यह व्यवस्था है। उन्होंने इसके समूल नाश करने का आह्वान किया। हिंदी भाषी राज्यों में अब भी लोग उनके उन विचारों और तर्कों से अपरिचित हैं जिनके आधार पर वे यह सिद्ध करते रहे कि हिन्दू धर्म से जुड़ी बातें मूलतः ब्राह्मण-वर्चस्व को कायम करती हैं। उनके प्रतिनिधि उद्धरणों का यह चयनित संकलन हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि लोग यह जान सकें कि पेरियार धर्म, राजनीति आदि के बारे में क्या सोचते थे, वह किस तरह का समाज बनाना चाहते थे, श्रमिकों के लिए उनके क्या विचार थे, सामाजिक व्यवस्था में सुधार कैसे हो और यह भी कि उनका बुद्धिवाद क्या था –प्रबंध संपादक ]
पेरियार ई. वी. आर.
राजनीति
- जो लोग प्रसिद्धि, पैसा, पद पसंद करते हैं, वे तपेदिक की घातक बीमारी की तरह हैं। वे समाज के हितों के विरोधी हैं।
- आज हमें देश के लोगों को ईमानदार और निःस्वार्थ बनाने वाली योजनाएं चाहिए। किसी से भी नफरत न करना और सभी से प्यार करना, यही आज की जरूरत है।
- जो लोगों को अज्ञान में रखकर राजनीति में प्रमुख स्थिति प्राप्त कर चुके हैं, उनका ज्ञान के साथ कोई संबंध नहीं माना जा सकता।
- हम जोर-शोर से स्वराज की बात कर रहे हैं। क्या स्वराज आप तमिलों के लिए है, या उत्तर भारतीयों के लिए है? क्या यह आपके लिए है या पूंजीवादियों के लिए है?क्या स्वराज आपके लिए है या कालाबाजारियों के लिए है? क्या यह मजदूरों के लिए है या उनका खून चूसने वालों के लिए है?
- स्वराज क्या है? हर एक को स्वराज में खाने, पहनने और रहने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। क्या हमारे समाज में आपको यह सब मिलता है? तब स्वराज कहाँ है?
- आइए विश्लेषण करें। कौन उच्च जाति के और कौन निम्न जाति के लोग हैं। जो काम नहीं करता है, और दूसरों के परिश्रम पर रहता है, वह उच्च जाति है। जो कड़ी मेहनत करके दूसरों को लाभ प्रदान करता है, और बोझ ढोने वाले जानवर के समान बिना आराम और खाए-पिए कड़ी मेहनत करता है, उसे निम्न जाति कहा जाता है।
- जो ईश्वर और धर्म में विश्वास रखता है, वह आजादी हासिल करने की कभी उम्मीद नहीं कर सकता।
- जब एक बार मनुष्य मर जाता है, तो उसका इस दुनिया या कहीं भी किसी के साथ कोई संबंध नहीं रह जाता है।
- धन और प्रचार ही धर्म को जिन्दा रखता है। ऐसी कोई दिव्य शक्ति नहीं है, जो धर्म की ज्योति को जलाए रखती है।
- धर्म का आधार अन्धविश्वास है। विज्ञान में धर्मों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए बुद्धिवाद धर्म से भिन्न है। सभी धर्मवादी कहते हैं कि किसी को भी धर्म पर संदेह या कुछ भी सवाल नहीं करना चाहिए। इसने मूर्खों को धर्म के नाम पर कुछ भी कहने की छूट दी है। धर्म और ईश्वर के नाम पर मूर्खता एक सनातन रीत है।