गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने संबंधी 124वें संविधान संशोधन विधेयक के संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने के एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई है। इस संबंध में दो याचिकाएं- स्वयंसेवी संगठन यूथ फॉर इक्वलिटी और कौशल कांत मिश्रा द्वारा दाखिल की गई हैं।
बताते चलें कि यूथ फॉर इक्वलिटी नाम का संगठन एससी, एसटी और ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का विरोध करता रहा है। इस संगठन ने सवर्णों के आरक्षण संबंधी सरकार के फैसले का विरोध करने की घोषणा बीते 9 जनवरी को ही कर दी थी।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि आर्थिक कारण आरक्षण का मौलिक आधार नहीं हो सकता है। संसद द्वारा पारित विधेयक संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है। साथ ही यह भी कहा गया है कि आर्थिक आधार केवल सामान्य वर्ग के लिए नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
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इससे पहले देश भर के कई बुद्धिजीवियों ने सरकार के फैसले के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मसलन प्राख्यात राजनीतिक विचारक व साहित्यकार प्रेमकुमार मणि ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में कहा था कि “सुप्रीम कोर्ट संविधान की मूल भावना पर अपना पक्ष रख चुका है। इसके बावजूद इस तरह की कोशिश की जा रही है। बता दें कि इंदिरा साहनी जजमेंट में साफ कहा गया था कि सरकार 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन नहीं दे सकती। ऐसे में यह मामला जूडिशल स्क्रूटनी के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आएगा, तो फिर स्क्रूटनी में ऐसे फैसले का टिकना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन दिया जाता है, तो जाहिर तौर पर संविधान के अनुच्छेद में दी गई व्यवस्था के विपरीत होगा।”
(कॉपी संपादन : प्रेम/सिद्धार्थ)
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