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अदालत में उलझेगा सवर्णों का आरक्षण : प्रेमकुमार मणि

यह संविधान सम्मत नहीं है। इसमें काफी अंतर्विरोध है और संविधान की मूल भावना को नष्ट करने की कोशिश है। प्रथम दृष्टया ही इसमें गड़बड़ी दिख रही है। मसलन पहले आयोग बनना चाहिए और उसकी रिपोर्ट आने के बाद इस तरह का फैसला लेना चाहिए। केंद्र सरकार का यह फैसला अदालत में नहीं टिकेगा

ओबीसी को मिले कम से कम 45 प्रतिशत आरक्षण

बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य व मूर्धन्य साहित्यकार प्रेमकुमार मणि का मानना है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात कहकर भाजपा अपने ही जाल में फंस गई है। उनका यह भी कहना है कि जब 13-15 फीसदी आबादी के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान हो सकता है, तो 54 फीसदी आबादी वाले ओबीसी को कम-से-कम 45 फीसदी आरक्षण मिला चाहिए। प्रस्तुत है उनसे खास बातचीत का संपादित अंश :


कुमार समीर : केंद्र सरकार ने गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ देने का फैसला किया है। आप क्या कहेंगे?

प्रेमकुमार मणि : यह संविधान सम्मत नहीं है। इसमें काफी अंतर्विरोध है और संविधान की मूल भावना को नष्ट करने की कोशिश है। प्रथम दृष्टया ही इसमें गड़बड़ी दिख रही है। मसलन पहले आयोग बनना चाहिए और उसकी रिपोर्ट आने के बाद इस तरह का फैसला लेना चाहिए। इसके साथ ही यह भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि महज 13-15 फीसदी आबादी वाले सवर्ण के लिए दस फीसदी आरक्षण तो उस हिसाब से 54 फीसदी आबादी वाले ओबीसी के लिए आबादी के हिसाब से कम-से-कम 45 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें इस तरह की कई गड़बड़ियां हैं, जिनके आधार पर हमारा मानना है कि इसका अदालती कार्यवाही में उलझना तय है।

प्रेमकुमार मणि

कु.स. : इसके पीछे ठोस आधार क्या है?

प्रे.म. : सुप्रीम कोर्ट संविधान की मूल भावना पर अपना पक्ष रख चुकी है। इसके बावजूद इस तरह की कोशिश की जा रही है। बता दें कि इंदिरा साहनी जजमेंट में साफ कहा गया था कि सरकार 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन नहीं दे सकती सरकार। ऐसे में यह मामला जूडिशल स्क्रूटनी के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आएगा, तो फिर स्क्रूटनी में ऐसे फैसले को टिकना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन दिया जाता है, तो जाहिर तौर पर संविधान के अनुच्छेद में दी गई व्यवस्था के विपरीत होगा। लेकिन, इसके बावजूद राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपने-अपने तरह से तर्क-कुतर्क देकर गैर-संवैधानिक कोशिशें की जा रही हैं।

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कु.स. : फिर इस पूरी कवायद का क्या मतलब निकाला जाए?

प्रे.म.: ऐसा कोई संवैधानिक संशोधन नहीं टिक पाएगा, जो बेसिक स्ट्रक्चर से छेड़छाड़ करता हो। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट केशवानंद भारती के केस में पहले ही व्यवस्था दे चुका है कि बेसिक स्ट्रक्चर के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। ऐसे में सरकार ने जो फैसला लिया है और बिल अगर पास भी हो जाता है, तो भी उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी और मौजूदा कानूनी व्यवस्था में उसका टिकना मुश्किल है और इस तरह यह सिर्फ चुनावी जुमला साबित होकर रह जाएगा। इससे पहले इसी तरह की कोशिश नरसिम्हा राव सरकार ने भी की थी; जिसे खारिज कर दिया गया था।

कु.स. : फिर सरकार की इसके पीछे क्या सोच हो सकती है?
प्रे.म. : मोदी सरकार का यह दांव सवर्णों की ओर से आम चुनाव में नोटा को वोट देने के अभियान को समाप्त करने को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी कानून में बदलाव को आर्डिनेंस से निरस्त करने के बाद से ही पूरे देश में सवर्ण मोदी सरकार और भाजपा से नाराज चल रहे थे। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मिली हार के पीछे एक कारण सवर्णों की नाराजगी को भी माना गया। अब सरकार और भाजपा को उम्मीद है कि यह नाराजगी आम चुनाव तक दूर हो जाएगी।

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कु.स. : क्या सवर्णों की इससे नाराजगी दूर हो जाएगी?

प्रे.म.: ये तो वक्त ही बताएगा कि सरकार के इस कवायद से सवर्ण कितना खुश हो पाते हैं। बता दें कि पूरे देश में लगभग 13 फीसदी सवर्ण हैं और वे लगभग 50 लोकसभा सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा सरकार आरक्षण के इस दांव से देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे आरक्षण आंदोलन को भी काउंटर करना चाह रही है। इस आरक्षण के दायरे में मराठा सहित तमाम समुदाय के गरीब लोग आ सकेंगे। अभी तो तेल और तेल की धार देखने की जरूरत है।

कु.स. : यदि सरकार संशोधन विधेयक लाती है, तो आपका रुख क्या होगा?

प्रे.म.: देखिए, गरीब सवर्णों के हम खिलाफ नहीं हैं। लेकिन, आबादी के हिसाब से आरक्षण की अपनी जायज मांग उठाने का नैतिक, संवैधानिक अधिकार की बात तो उठाई ही जाएगी। 50 फीसदी की सीमा अगर टूटती है, तो आबादी के हिसाब से ओबीसी के प्रतिशत को भी बढ़ाया जाना चाहिए।

कु.स. : बिहार में नीतीश कुमार ने सवर्ण आयोग का गठन किया। उनके पहले लालू प्रसाद और कर्पूरी ठाकुर ने भी गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की बात कही थी। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

प्रे.म.:  इस सवाल का एक लाइन में जवाब यह है कि हम गरीब सवर्ण के आरक्षण का विरोध कहां कर रहे हैं? हम तो आबादी के हिसाब से आरक्षण पर विचार करने की बात कर रहे हैं।

कु.स. : आपकी नजर में भाजपा के इस कवायद से उसे आगामी चुनाव में कितना फायदा मिलेगा?

प्रे.म.: राजनीतिक रूप से यह ऐसा कदम है, जिसमें वह (भाजपा) खुद जाल में फंस गई है। अब तो उसकी स्थिति यह हो गई है कि वह न तो इसे उगल सकती है और न ही निगल सकती है।

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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