विवाहित दम्पतियों को एक-दूसरे के साथ मैत्री भाव से व्यवहार करना चाहिए। किसी भी मामले में, पुरुष को अपने पति होने का घमंड नहीं होना चाहिए। पत्नी को भी इस सोच के साथ व्यवहार करना चाहिए कि वह अपने पति की दासी या रसोइया नहीं है। विवाहित दम्पति को बच्चे पैदा करने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। विवाह के कम से कम तीन साल बाद बच्चे पैदा हों तो अच्छा रहेगा। विवाहितों को अपनी कमाई के अनुसार खर्च करना चाहिए। उन्हें उधार नहीं लेना चाहिए। भले ही आय कम हो, उन्हें किसी भी तरह थोड़ी सी बचत करनी चाहिए। इसी को मैं जीवन का अनुशासन कहूंगा।
विवाहित लोगों को एक दूसरे के प्रति सरोकार रखने वाला होना चाहिए। भले ही वे दूसरों के लिए ज़्यादा कुछ न कर पाएं, लेकिन उन्हें दूसरों का अहित करने से बचना चाहिए। कम बच्चे होने से ईमानदारी और आराम से जीवन व्यतीत किया जा सकता है। विवाहित लोगों को अपने जीवन को दुनिया की वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल ढालने के लिए हर तरह से प्रयास करना चाहिए। भविष्य में दुनिया कैसी होगी, इसे भूलकर उन्हें वही करना चाहिए जो वर्तमान दुनिया में जीने के लिए आवश्यक है। ‘पति‘ और ‘पत्नी‘ जैसे शब्द अनुचित हैं। वे केवल एक दूसरे के साथी और सहयोगी हैं, गुलाम नहीं। दोनों का दर्ज़ा समान है।
जिस देश या समाज में प्रेम को स्वतंत्र रूप से फलने-फूलने का अवसर मिलता है, वही ज्ञान, स्नेह, संस्कृति और करुणा से समृद्ध होता है। जहां प्रेम बलपूर्वक किया जाता है, वहां केवल क्रूरता और दासता बढ़ती है। जीवन में एक-दूसरे की अपरिहार्यता को समझना एक उदात्त प्रेम की पहचान है।
नैतिक आचरण की सीख देने वाली कोई भी किताब या धर्मग्रंथ यह नहीं सिखाता कि एक बालवधू को वैवाहिक बंधनों में बंधकर तथा पारिवारिक जीवन में उलझकर, पति के संरक्षण की बेड़ियों में कैद रहना चाहिए, जबकि अपनी उम्र के अनुसार वह इसके लिए तैयार नहीं है। नागरिकों और पुलिस, दोनों को अवैध विवाह से सम्बन्धित लोगों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार होना चाहिए।
विवाह को केवल लैंगिक समानता तथा स्त्री-पुरुष के बीच समान व्यवहार के सिद्धांत पर अनुबंधित किया जाना चाहिए। अन्यथा, यही बेहतर होगा कि महिलाएं तथाकथित ‘पवित्र वैवाहिक- जीवन‘ से बाहर, एकल जीवन जियें। स्त्री पुरुष की गुलाम बनकर क्यों रहे? विवाह पर किया जाने वाला खर्च लोगों की 10 या 15 दिनों की औसत आय से अधिक नहीं होना चाहिए। एक और बदलाव यह लाया जा सकता है कि विवाहोत्सव को कम दिनों में मनाया जाए।
मैं ‘विवाह‘ या ‘शादी‘ जैसे शब्दों से सहमत नहीं हूं। मैं इसे केवल जीवन में साहचर्य के लिए एक अनुबंध मानता हूं। इस तरह के अनुबंध में, मात्र एक वचन, और यदि आवश्यकता हो तो अनुबंध के पंजीकरण के एक प्रमाण की ज़रूरत है। अन्य रस्मो-रिवाज़ों की कहां आवश्यकता है? इस लिहाज़ से मानसिक श्रम, समय, पैसे, उत्साह और ऊर्जा की बर्बादी क्यों?
समाज में कुछ लोगों की स्वीकृति पाने और अपनी प्रशंसा सुनने हेतु लोग दो या तीन दिनों के लिए विवाह में अतार्किक ढंग से अत्यधिक खर्च कर देते हैं, जिसके कारण वर-वधू या उनके परिवार लम्बे समय तक कर्ज़ में डूबे रहते हैं। खर्चीले विवाहों के कारण कुछ परिवार कंगाल हो जाते हैं। यदि पुरुष और महिला रजिस्ट्रार कार्यालय में हस्ताक्षर करके यह घोषणा कर देते हैं कि वे एक दूसरे के ‘जीवन-साथी बन गए हैं, तो यह पर्याप्त है। मात्र एक हस्ताक्षर के आधार पर किये गए ऐसे विवाह में अधिक गरिमा, लाभ और स्वतंत्रता होती है।
हमें विवाह के पारंपरिक रीति-रिवाज़ों का पालन करने की ज़रूरत नहीं है। समय और समाज के मिज़ाज़ तथा ज्ञान में हो रही वर्तमान वृद्धि के अनुसार ही रीति -रिवाज़ स्थापित किये जाने चाहिए। यदि हम सदा के लिए किसी विशेष काल के तौर-तरीकों का पालन करते रहें, तो स्पष्टतः हम ज्ञान के मामले में आगे नहीं बढ़े हैं ।
आत्माभिमान विवाह परंपरागत रूप से चलती आ रहीं प्रथाओं पर प्रश्न उठाने और उन्हें चुनौती देने के लिए शुरू किए गए हैं। विवाह से केवल वर-वधू का ही सरोकार नहीं होता। यह राष्ट्र की प्रगति के साथ जुड़ा होता है।
(यह लेख कलेक्टेड वर्क्स ऑफ पेरियार ई. वी. आर., संयोजन : डॉ. के. वीरामणि, प्रकाशक : दी पेरियार सेल्फ-रेसपेक्ट प्रोपगंडा इन्स्टीच्यूशन, पेरियार थाइडल, 50, ई. वी. के. संपथ सलाय, वेपरी, चेन्नई – 600007 के प्रथम संस्करण, 1981 में संकलित ‘’मैरिज’ का अनुवाद है)
(अंग्रेजी से अनुवाद : देविना, कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें