[‘औरत होने की सज़ा’ अरविंद जैन की चर्चित किताब है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें अरविंद जैन ने बचपन से लेकर मृत्यु तक भारतीय समाज में औरत की स्थिति का जायजा लिया है। भारतीय कानूनों और विभिन्न मुकदमों के हवाले से यह भी साबित किया है कि कैसे सामाजिक संरचना के साथ कानून भी पुरुषों के पक्ष में खड़ा है। निम्नांकित लेख उपरोक्त किताब में संकलित है। फारवर्ड प्रेस के पाठकों को हम हिंदी में क्लासिक का दर्जा प्राप्त इस किताब के अन्य लेख भी शीघ्र ही उपलब्ध कराएंगे – प्रबंध संपादक ]
होइहे सोई जो पुरुष रचि राखा
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अरविन्द जैन
मैं आदमी हूं यानी पुरुष, मर्द स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश -सब कुछ मैं हूं और मेरे लिए ही सब कुछ है या सब कुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और अय्याशी के लिए बनाया है। सारी दुनिया की धरती और (स्त्री) देह यानी उत्पादन और पुनरुत्पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत’ है और रहेगा। धरती पर कब्जे के लिए उत्तराधिकार कानून और देह पर स्वामित्व के लिए विवाह संस्था की स्थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है। सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं। धर्म, अर्थ, समाज, न्याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाए हैं और मैं ही समय-समय पर उन्हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूं। घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्पत्ति, साहित्य, कला, शिक्षा, सत्ता और न्याय-सब पर मेरे अधिकार हैं। सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूं और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है।
‘अर्धनारीश्वर’ का अर्थ आधी नारी और आधा पुरुष नहीं, बल्कि आधी नारी और आधा ईश्वर है। इसलिए तुम नारी और मैं (पुरुष) ईश्वर हूं। तुम्हारा ईश्वर-पति परमेश्वर मैं ही हूं। तुम औरत हो यानी मेरी पत्नी, वेश्या और दासी -जो कुछ भी हो, मेरी हो और मेरे सुख, आनंद, भोग और ऐश्वर्य के लिए सदा समर्पित रहना ही तुम्हारा परम धर्म और कर्तव्य है। मेरे हुक्म के अनुसार चलती रहोगी। सम्पूर्ण रूप से समर्पित होकर वफादारी के साथ मेरी सेवा करोगी, तो ‘सीता’, ‘सावित्री’ और ‘महारानी’ कहलाओगी सुख-सुविधाएं, कपड़े-गहने, धन-ऐश्वर्य, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाओगी। मगर मुझसे अलग मेरे विरुद्ध आंखें उठाने की कोशिश भी करोगी, तो कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दी जाओगी। कोई तुम्हारी मदद के लिए आगे नहीं आएगा। समाज, धर्म, कानून, मठाधीश, मंत्री, नेता और राजा सब मेरे हैं; बल्कि ये ही वे हथियार हैं, जिनसे मैं इस दुनिया में ही नहीं, दूसरी दुनिया में भी तुम्हें नहीं छोड़ूंगा। पहली और दूसरी दुनिया मै हूं। तुम महज तीसरी दुनिया हो। तुम्हारी न कोई दलील सुनेगा, न अपील। मेरे पैदा होने की खबर मात्र से बहन ‘सुनीता’, ‘अनीता’ और ‘अनामिका’, पंखे से लटककर आत्महत्या कर लेंगी। नहीं करेंगी, तो बहनों साफ-साफ सुन लो कि बहन होकर जायदाद में बराबर के अधिकार मांगोगी, तो पिताजी को बहकाकर जल्दी से कहीं शादी करवा दूंगा और वसीयत में सब कुछ अपने नाम लिखवाकर ताला बंद कर दूंगा। ससुराल जाओगी, तो चार दिन में अक्ल ठिकाने आ जाएगी। तीज, त्योहार, होली, दीवाली, राखी, भैया दूज, भात पर जो दें उसे सिर-माथे लगाओगी तो ठीक; नहीं तो आगे से वह भी बंद। संयुक्त हिंदू परिवार की सम्पत्ति में बंटवारा करवाने का तो तुम्हें कोई हक ही नहीं है; वो सब हम मर्दों का मामला है। पिताजी की सम्पत्ति में तुम्हें बराबर का हक है, लेकिन सिर्फ तब जब वह अपनी वसीयत लिखकर न मरे हों… बिना वसीयत लिखे मैं उन्हें मरने दूंगा? वसीयत मेरे नाम नहीं लिखेंगे, तो बुढ़ापे में क्या सड़क पर भीख मांगेंगे? ‘कागजी कानूनों’ का डर किसी और को दिखाना, मैं तो डरने वाला हूं नहीं। पिताश्री अचानक बिना वसीयत लिखे ही स्वर्ग सिधार भी गए, तो भी क्या है? अपना हक मांगोगी तो समझना ‘मर गए तुम्हारे भाई भी’ और समाज में ‘थू-थू’ अलग। उन्होंने चुपचाप वसीयत लिखकर तुम्हारे नाम एक कौड़ी भी की, तो यह मेरे साथ घोर अन्याय होगा और मैं अन्याय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक 30 साल मुकदमा लड़ूंगा; वसीयत को हरसंभव चुनौती दूंगा और तुम्हारे घर के बर्तन-भांडे तक बिकवा दूंगा। मैंने तो सौतेले भाइयों को ही बराबर बांटने का अधिकार नहीं लेने दिया, बहनें तो मुझसे लेंगी ही क्या? पर बूढ़े मां-बाप के भरण-पोषण की जितनी ज़िम्मेदारी मेरी है, उतनी ही तुम्हारी भी।
प्रेमिका बनकर, प्यार का नाटक करके मुझ पर अधिकार जमाना चाहोगी, तो मेरा कुछ भी बिगड़ने से रहा, बदनामी तुम्हारी ही होगी। लोम्बरोसो, टोमस, फ्रॉयड, किंग्सले, डेविस आटो पोलक, एडलर, जॉनसन और हाईट बनकर मैंने तुम्हारा मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया है। इसलिए तुम्हारी रग-रग से वाकिफ हूं। मैं तो तुम्हारी सुंदरता की तारीफ करके, शादी के सुनहरे सपने दिखाकर और चिकनी-चुपड़ी बातें बनाकर कुछ दिन तुम्हारे साथ मस्ती और फिर अचानक एक दिन तुम्हें किसी बेगाने शहर की अनजानी, अंधेरी बंद गली में छोड़कर भाग जाऊंगा। तुम्ही संभालकर रखना प्यार की यादें, मैं तो भूल जाऊंगा सारी कसमें, सारे वादे। पुलिस से बलात्कार की शिकायत करोगी, तो अदालत कहेगी- ‘कोई जवान लड़की शादी के वादे को सच मानकर संभोग की सहमति देती है और इस प्रकार की यौन-क्रीड़ाओं में तब तक लिप्त रहती है, जब तक गर्भवती न हो जाए, तो भारतीय दंड संहिता की धारा-90 कोई मदद नहीं कर सकती और लड़की की करतूतों को माफ करके लड़के को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। ‘लड़की-लड़के से प्यार करती थी, (प्यार में) गर्भवती हुई और गर्भपात भी करवाया। साफ है कि संभोग सहमति से ही हुआ होगा।’ वैसे ‘हर लड़की तीसरे गर्भपात के बाद धर्मशाला हो जाती है।’ लेकिन, फिर भी गर्भपात करवा लोगी तो बेहतर; नहीं तो बच्चा ‘अवैध’ और ‘नाजायज’ कहलाएगा।
मेरी सम्पत्ति में से तो उसे धेला तक मिलेगा नहीं और तुम्हारे पास देने के लिए होगा ही क्या? इतना शुक्र मानो कि अब स्कूल में बिना बाप का नाम बताए भी दाखिला तो मिल जाएगा। लेकिन, दूसरे लड़के पूछेंगे तो बेचारा क्या जवाब देगा? मैं (हम) “कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता (चाहते) जिससे औरतों या उनके हितों को नुकसान पहुंचे।” लेकिन अगर चाहूं, तो कर सकता हूं और तुम मेरा न कुछ बिगाड़ सकती हो, न “कानून बदल सकती हो।” तुम मेरी प्रेमिका नहीं बनोगी, तो मैं जब भी मौका लगेगा जबरदस्ती तुम्हारा मुंह काला कर दूंगा। तुम बलात्कार की शिकायत घर पर करोगी, तो घर वाले कहेंगे, यह परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल है। हफ्तों इस बात पर सोचेंगे कि मामले को अदालत में ले जाएं या नहीं। हफ्ते या महीने बाद रिपोर्ट करवाएंगे, तो अदालत पूछेगी इतने दिन की देरी क्यों? पढ़ने जाओगी तो डॉक्टर बनकर, सिफारिश के लिए जाओगी तो नेता और मंत्री बनकर, मदद के लिए जाओगी तो सेठ, साहूकार, जागीरदार ओर उद्योगपति बनकर, नायिका बनने के लिए जाओगी तो निर्माता और निर्देशक बनकर, पुण्य कमाने जाओगी तो पुजारी और मठाधीश बनकर, और अदालत में न्याय के लिए जाओगी तो वकील बनकर… मैं हमेशा तुम्हारा पीछा करता रहूंगा। तुम मेरे चंगुल से बच नहीं सकतीं। तुम जितनी बार बलात्कार की शिकायत करोगी, मैं उतनी ही बार कभी यह तर्क और कभी वह तर्क देकर साफ बच जाऊंगा। लेकिन, तुम्हारी और तुम्हारे घर वालों की खैर नहीं। अकेली तुम्हारी गवाही के आधार पर तो सज़ा होगी नहीं। ऐसे में चश्मदीद गवाह कोई होता ही नहीं, पुलिस क्या जाते ही तुम्हारी रिपोर्ट लिख लेगी? रिपोर्ट लिख भी ली, तो जांच में 10 घपले, डॉक्टरी मुआयना करवाएगी। नहीं करवाया तो डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं बुलवाएगी, डॉक्टर की रिपोर्ट संदेह से परे होने तक विश्वसनीय नहीं मानी जाएगी। कपड़ों पर वीर्य और खून के निशान मिलेंगे नहीं, पीठ और शरीर पर चोट के निशान नहीं मिले और डॉक्टर ने अगर कह दिया कि तुम संभोग की आदी हो, तो सारा मामला ही खत्म; बलात्कार सहमति से संभोग में बदल जाएगा और मैं बाइज्जत बरी या संदेह का लाभ उठाकर बाहर। वयस्क और विवाहित महिला के साथ बलात्कार करने पर चोट के निशान कैसे मिलेंगे? संभोग की आदी वो होती ही है, कोई भी तर्क चल जाएगा कि ‘किसी को आता देखकर शोर मचाया-अपनी इज्जत बचाने के लिए या अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए’ या ‘बदचलन, आवारा, रखैल, बदनाम, वेश्या या कॉलगर्ल है’ या संभोग सहमति से हुआ और इसमें पति की मिलीभगत थी। अगर तुमने 16 साल से कम उम्र होने का दावा किया, तो प्रमाणित भी तुम्हें ही करना होगा। स्कूल सर्टीफिकेट अदालत में पेश नहीं किया, तो फायदा मुझे ही मिलेगा, डॉक्टरी रिपोर्ट उम्र का सही अंदाजा नहीं लगा सकती; इसलिए मानी नहीं जाएगी। एक्स-रे रिपोर्ट या ओसिफिकेशन टेस्ट महज एक राय होगी, प्रमाण नहीं; मेडिकल टेस्ट ज्यादा प्रामाणिक नहीं माने जाएंगे, क्योंकि ‘ऐसे में तीन साल तक की गलती हो सकती है। उम्र के बारे में जन्म प्रमाण-पत्र ही सबसे बढ़िया प्रमाण है, लेकिन दुर्भाग्य (सौभाग्य) से इस देश में आमतौर पर यह दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता, और उम्र प्रमाणित करना जरूरी है, जो तुम कर नहीं पाओगी। ऐसे में बलात्कार, उम्र प्रमाणित करने के चक्कर में समाप्त। कितनी ही बलात्कार की झूठी शिकायतों का मैंने सामना किया है। हर बार मेरा बचाव मानवाधिकारों का ‘मुखौटा’ लगाए कोई-न-कोई प्रतिबद्ध वकील करता ही रहा है। ‘कोई भी प्रतिष्ठित सम्माननीय महिला दूसरे व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाएगी, क्योंकि ऐसा करके वह अपनी इज्जत ही बलिदान करेगी -वही जो उसे सबसे प्रिय है।’ प्रतिष्ठित और सम्माननीय महिला की परिभाषा में रखैल, वेश्या और कॉलगर्ल शामिल नहीं हैं और वे गरीब व अनपढ़ युवतियां भी नहीं, जो बिना किसी ‘मानवीय गरिमा’ या किसी भी ‘गरिमा’ के निर्धनता रेखा से नीचे जी रही हैं। यह बहुत ही कम संभावना है कि कोई आत्मस्वाभिमानी औरत न्याय की अदालत में आगे आकर, अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में, अपने सम्मान के विरुद्ध शर्मनाक बयान देगी, जब तक कि यह पूर्ण रूप से सत्य न हो या (पूर्ण रूप से झूठ), इज्जतदार औरतें तो बलात्कार सच में हो जाने पर भी किसी को नहीं ‘बतातीं’, शर्म के मारे डूबकर मर जाती हैं। तुम्हारी तरह कोर्ट-कचहरी करती नहीं घूमतीं। ज़्यादा तीन-पांच करोगी और ‘हिरोइन’ बनोगी तो मैं तुम्हारे साथ अकेले नहीं, बल्कि अपने पूरे गैंग सहित सारे गांव के सामने, बीच सड़क पर बलात्कार करूंगा, तुम्हारे अंग-अंग के ‘क्लोज-अप’ लेते हुए ‘इंसाफ का तराजू’, ‘मेरा शिकार’ और ‘जख्मी औरत’ बनवाऊंगा, सिनेमा हॉलों पर तुम्हारी असलियत देखने के लिए भीड़ लग जाएगी, मैं लाखों कमाऊंगा और तुम्हें सारे समाज के सामने नंगा करके अपमानित और जलील करूंगा। रही-सही कसर वीडियो पर ‘ब्लू फिल्म’ बनवाकर पूरी कर दूंगा। नोट-के-नोट और तुम्हारी ऐसी-कम-तैसी। मैं मूंछों पर ताव देकर घूमूंगा ठाठ से और तुम किसी को मुंह दिखाने के काबिल भी न रहोगी। साबुन और शराब, माचिस और सिगरेट, निरोध और नारियल तेल, तौलिये और साड़ियां ही नहीं, स्कूटर और कार तक के विज्ञापनों में तुम्हारी नग्न और अर्धनग्न तस्वीरें छपवाऊंगा, फिल्मों के तुम्हारे बड़े-बड़े उत्तेजक पोस्टर सारे शहर में लगवाऊंगा, अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों में तुम्हारी अश्लील-से-अश्लील हरकतों का भंडाफोड़ करूंगा, हजारों पत्रिकाएं धड़ल्ले से बेचूंगा और लाखों के वारे-न्यारे। ‘सत्यम्-शिवम् सुन्दरम्’, ‘बॉबी’, ‘राम तेरी गंगा मैली’ बनाकर मेरी मदद करने वाले को बड़े-से-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित करूंगा, बहुत देखे हैं मैंने, दफा-292 और अश्लीलता के खिलाफ बने कानून। अदालत कह चुकी है, ‘फूहड़ बात अश्लील नहीं होती’, और न ही ‘औरतों के नग्न फोटो छापना अश्लीलता है।’ न्यूड पेंटिंग्स तो वैसे भी महान कला मानी जाती है, खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की दीवारों तक पर तो मैंने तुम्हारे साथ संभोग करते हुए मूर्तियां बना दीं- इससे ज्यादा और क्या करूं?
तुम्हारे बारे में अश्लीलता से लिखा हुआ मेरा हर शब्द पढ़ा जाता है और ‘धर्म ग्रंथों’ में लिखी कोई भी बता अश्लील नहीं होती- बाहर जब-सब ‘भेड़िये’ और अपने घर वाले तक ‘बेगाने’ लगने लगें, तो अब तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो? मेरे साथ शादी करनी है तो पांच-दस लाख दहेज, कार, कूलर, टी.वी., वी.सी.आर., फर्नीचर, कपड़ा गहना देना पड़ेगा और साथ में पांच लीटर मिट्टी का तेल, एक स्टोव और माचिस और उम्र-भर मेरे हुक्म की गुलामी। बदले में तुम्हें सात साल ठीक-ठाक रखने का ‘कानूनी गारंटी कार्ड’ तो मिलेगा लेकिन, समय पर तुम्हें यह ‘कार्ड’ बोगस, नकली और अर्थहीन ही लगेगा। मां-बाप के पास यह सब दहेज में देने को नहीं है, तो कानपुर की ‘अलका, गुड्डी और मनू’ की तरह पंखे से लटककर आत्महत्या करो। जीना चाहती हो तो मेरी मांग तो पूरी करनी ही पड़ेगी। झूठे बहकावों में मैं आने वाला नहीं हूं। पूरा दहेज नहीं लाओगी, तो मैं नहीं कह सकता कि तुम्हारी जिंदगी कितने दिन की है? मुझे तो मजबूरन मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगानी पड़ेगी- मां-बाप का इकलौता बेटा हूं, नहीं मानूंगा तो वो मुझे जायदाद से बेदखल कर देंगे। मैं क्या कर सकता हूं? मुझे तो दुखी होकर दुनिया से यही कहना पड़ेगा कि स्टोव पर दूध गर्म कर रही थी- साड़ी में आग लग गई। तुम्हारे घर वाले शोर मचाएंगे तो उन्हें मैं ‘अच्छी तरह’ समझा दूंगा और महीने-भर में ही तुम्हारी छोटी बहन यानी साली की डोली मेरे घर होगी। नहीं मानेंगे, तो ये रहा पुलिस स्टेशन और वो रही कोर्ट-कचहरी। पुलिस, गवाह और डॉक्टरी रिपोर्ट कैसे ठीक-ठाक करवाई जाती है- मैं सब जानता हूं। उसी दिन जमानत ओर अगले दिन बाइज्जत रिहा हो जाऊंगा। ज़्यादा होगा, तो सात साल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अपीलों में बीत जाएंगे। इस बीच दूसरी शादी करूंगा, फिर दहेज से घर भर जाएगा और मजे से रहूंगा। तुम्हारी ‘सहेलियों’ और सिरफिरे अखबारों के चक्कर में अगर मुझे उम्र-कैद की सज़ा हो भी गई, तो क्या मुझे फाइलें गायब करवानी नहीं आतीं? कितनी ‘सुधाओं’ की फाइलें मेरे कब्जे में हैं- तुम क्या जानो? आज तक एक भी केस में फांसी हुई है किसी को? तुम मेरी पत्नी हो इसलिए मुझे तुम्हारे साथ हर समय, किसी भी तरह संभोग का कानूनी अधिकार है। तुम्हारी मर्जी, सहमति, इच्छा और मन का कोई अर्थ नहीं, बीमारी, माहवारी या गर्भ-कोई बहाना नहीं चलेगा। चंकि 15 साल से बड़ी हो तुम इसलिए तुम्हारी मर्जी के विरुद्ध जबरदस्ती भी करूंगा, तो कोई मुकदमा तो मुझ पर चलने से रहा। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का इतना ही खयाल था, तो शादी करने से पहले सोचा होता। शादी के बाद अब व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सारे मौलिक अधिकार मेरे पास गिरवी हैं। चीखने-चिल्लाने या शोर मचाने से कोई फायदा नहीं, सीधे-सीधे चलो मेरे साथ… मुझसे ब्याह किया है, तो पत्नी होने का धर्म निभाओ। आओ मेरे सम्पत्ति के वारिसों को जन्म दो, पुत्र जन्मोगी तो भाग्यशाली और लक्ष्मी कहलाओगी, छत पर चढ़कर ननद थाली बजाएंगी और सारे शहर में लड्डू बांटे जाएंगे। पर याद रखना, बेटियां जन्मीं तो कुलक्षणी और अभागी मानी जाओगी। क्योंकि, “छोरियां होने की खुशी सिर्फ वेश्याओं के यहां मनायी जाती है।” मैं तो पैदा होते ही गला घोंट दूंगा, गड्ढे में दबा दूंगा या गंगा में प्रवाहित कर दूंगा। वैसे अब तो बच्चे होने से पहले ही ‘एमनियोसैंटोसिस’ टेस्ट करवा लो। लड़की है तो गर्भपात, सारे झंझटों से ही मुक्ति। बेटा या बेटी कुछ भी नहीं हुआ तो बांझ होने के जुर्म में तानों के तीरों से जख्मी होकर मरना या किसी कुएं-बावड़ी… मेरे लिए वारिस जनने वाली और बहुत मिल जाएंगी। अपना बेटा नहीं हुआ, तो कोई बात नहीं। मैं अपने किसी भाई का बेटा गोद ले लूंगा; लेकिन मेरे जीते जी तुम किसी के बच्चे को गोद नहीं ले सकतीं। गोद लेने के कानून में मैंने ऐसा कोई प्रावधान बनाया ही नहीं है। तुम गोद तभी ले सकती हो, जब मुझसे तलाक ले लो या मैं पागल या संन्यासी हो जाऊं। वो मैं होने से रहा। मैं चाहूंगा तो गोद लूंगा, नहीं चाहूंगा तो नहीं लूंगा- तुम्हारी तो सिर्फ सहमति ही चाहिए न। मैं अगर गोद न लेना चाहूं, तो तुम मेरा क्या कर लोगी? जमीन, जायदाद वसीयत करके दान कर दूंगा, तुम फिरना हाथ में कटोरा लिए और मैं देखता हूं कि कौन करता है तुम्हारी बुढ़ापे में देखभाल और मरने पर अंतिम दाह-संस्कार, कौन बहाता है तुम्हारे फूल गंगा में और कौन मनाता है हर साल तुम्हारा ‘श्राद्ध’? अगर बेटी पैदा भी हो गई तो न उसे अच्छा खाने को दूंगा और न अच्छा पहनने को।
अच्छा खाने-पहनने का हक सिर्फ मेरे बेटों को हासिल है। बेटी घर के बर्तन मांजेगी, कपड़े धोएगी, झाडू-पोंछा करेगी, तो खाने को मिल भी जाएगा; नहीं तो मरेगी भूखी -मेरा क्या लेगी? बेटों का तो काम ही है पतंग उड़ाना, क्रिकेट खेलना, खाना, सोना, पढ़ना और ऐश करना। होश संभालने से पहले छोटी उम्र में ही बेटी की शादी कर दूंगा। नहीं तो बड़ी होकर न जाने कहां नाक कटवा देगी। क्या बिगाड़ लेगा बाल-विवाह अधिनियम मेरा? तंग करेगी तो किसी मंदिर में देवदासी, आचार्य या सुंदरी के चरणों में समर्पित करके ‘साध्वी’ बनवा दूंगा। छोड़ना चाहेगी तो शहर क्या देश-भर में बदनाम करूंगा। पढ़ने-लिखने दूंगा नहीं-स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के सपने देखना ही बेकार है। पत्नी हो, तो पत्नी बनकर रहो- जैसे मैं चाहूं, जहां-चाहूं ‘पत्नी का पहला फर्ज है अपने पति की आज्ञा के सामने आज्ञाकारी ढंग से अपने-आप को समर्पित कर देना और उसकी छत के नीचे उसकी सुरक्षा में रहना।’ तुम्हें बिना उचित कारण बताये अलग से घर बसाने का तब तक अधिकार नहीं है, जब तक मैं यह न कह दूं कि मैं तुम्हें नहीं रख सकता (या रखना चाहता)। फिर भी अगर तुम नहीं मानोगी, तो मुझे विवश होकर कोर्ट से मेरे साथ रहने की डिग्री लानी पड़ेगी। तलाक जल्दी से लेने नहीं दूंगा- जब तक तलाक नहीं मिलेगा, तब तक दूसरी शादी कानूनी जुर्म और जब तक तलाक मिलेगा; तब तक बूढ़ी हो जाओगी। कौन बनाएगा तुम्हें अपनी पटरानी? वैसे भी मर्द ब्याह अनछुई, कुंवारी कन्याओं से ही करना पसंद करता है- तलाकशुदा, विधवा है और पहले भोगी हुई महिलाओं के साथ तो बस कुछ रोज की रंगरेलियां ही ठीक हैं। तुम तलाक ले भी लोगी, तो मेरा क्या बिगाड़ लोगी? पांच साल से बड़े बेटे और बेटियां साथ ले जाने नहीं दूंगा। तुम सिर्फ अपने अवैध बच्चों को ही अपने पास रख सकती हो। बेटे बेटियों के नाम पर या उनके लिए जरूरी सारे काम करने की जिम्मेदारी और अधिकार सिर्फ मेरा, उनके बारे में सारे निर्णय मेरे तुम सिर्फ उन्हें पैदा करो, पालो और भूल जाओ। बेटे-बेटियों ने तुम्हारी तरफदारी की तो सारी जायदाद से बेदखदल कर दूंगा नालायकों को। मैं सिर्फ लायक बेटों का बाप बन सकता हूं। नालायकों के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं। मैं किसी भी अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा, वेश्या के साथ रंगरेलियाँ मनाऊं, मेरी मर्जी। मुझे कानूनन अधिकार है, लेकिन तुम सिवा मेरे किसी भी अन्य पुरुष के साथ संबंध करो, यह नहीं हो सकता। करोगी, तो उसको तो दफा-497 में बंद करवा ही दूंगा और तुमसे ले लूंगा तलाक। सारे शहर में लोग ‘बदचलन’ और ‘कलंकनी’ कहकर पत्थर मारेंगे, सो अलग। क्योंकि, “दुनिया की सारी खूबसूरत बहू-बेटियां सिर्फ मेरे लिए हैं। लेकिन, अपनी बहू-बेटी पर अगर किसी ने नजर डाली तो उसकी आंखें फोड़ दी जाएंगी” समझीं कुछ? हां! मैं चाहूं तो अन्य पुरुष मेरी मिली-भगत से तुम्हारे साथ संबंध बना सकता है। जब तक मेरा फायदा होता रहेगा, तब तक मैं आंखें बंद किए रखूंगा। तुम न चाहो तो भी मेरे अधिकारों पर कोई अंकुश नहीं। चुपचाप रहोगी तो ठीक, शिकायत करोगी, तो व्यभिचार की शिकायत करने का तुम्हें अधिकार ही नहीं है। वैसे भी ‘व्यभिचार’ का अभियोग लग ही नहीं सकता। मेरे खिलाफ तुम कुछ नहीं कर सकतीं। दफा-497 में मेरे विरुद्ध कोई फौजदारी मुकदमा नहीं चला सकतीं। ज्यादा-से-ज्यादा तुम (हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-13 (ए) के तहत) शादी के बाद पत्नी के अलावा किसी महिला के साथ स्वेच्छा से यौन-संबंधों के आधार पर मुझसे तलाक ले सकती हो। ले लो तलाक; तलाक अभिशाप या दंड तुम्हारे लिए ही होगा, मेरे लिए तलाक तुमसे पिंड छुड़ाने (छूटने) का ही दूसरा नाम है। भरण-पोषण के लिए खर्चा मांगोगी तो वर्षों कोर्ट-कचहरी के बाद ज्यादा-ज्यादा 500 रुपए महीना देना पड़ेगा, तो दे दूंगा। वैसे तुम्हें रखने में तो इससे अधिक ही खर्च होता है। मेरे साथ संबंध रखनेवाली किसी कुंवारी, तलाकशुदा या विधवा को गर्भ ठहर गया, तो बेधड़क गर्भपात करवा दूंगा। अगर उसने बच्चा जनने का फैसला लिया और नौकरीपेशा हुई तो नियमानुसार बाकायदा प्रसवावकाश भी दिलवा दूंगा। मेरी अवैध संतान तुम्हारी वैध संतान कहलाएगी। जो कुछ भी जायज, वैध और कानूनी है, वही मेरा है और सब नाजायज, अवैध और गैर-कानूनी तुम्हारा। व्यभिचार कानून की संवैधानिक वैधता को भी तुमने चुनौती देकर देख लिया। तुम और तुम्हारे हिमायती वकीलों ने क्या बिगाड़ लिया मेरा? मैं जानता था कि शादी करने, घर बसाने और बच्चे होने के बाद बहुत जल्दी ही मैं तुमसे ऊब जाऊंगा, थक जाऊँगा। इसीलिए मैंने समाज में वेश्याएं, कॉलगर्ल और रखैल बना ली हैं। पैसे लुटाए, मौज-मस्ती की और दूध के धुले घर वापस। जब चाहा, जहां चाहा, एक-से-एक खूबसूरत औरत को बुलाया, दाम चुकाया, भोगा और सब भूल-भालकर लौट आए। समाज में पूरा सम्मान भी बना रहा और मौज-मस्ती में भी कोई कमी नहीं। वेश्यावृत्ति के लिए 18 साल से बड़ी लड़कियों को बहलाना, फुसलाना, नशीली दवाएं, साड़ियां, जेवर, फाइव स्टार होटलों में लंच, डिनर, कॉकटेल और नोटों की झलक दिखाकर फंसाना, रिझाना, प्रभावित करना और अपने बस में कर लेना मैं खूब जानता हूं। कॉलगर्ल या कैबरे डांसर पकड़ी गई, तो अपनी मर्जी से आई और अपनी इच्छा से धंधा करती है- मेरा क्या? 18 साल से कम उम्र की अनाथ लड़कियों को भगा लाना कोई ‘अपहरण’ का अपराध तो है नहीं। एक बार मेरे अड्डे पर पहुंच गई, तो बाहर निकलने के सब दरवाजे बंद। कानून की सब बारीकियां और ‘लूप-होल’ मैं अच्छी तरह समझता हूं। मुझसे स्वतंत्र होने के लिए तुम खुद वेश्या बनोगी? किसने कह दिया कि ‘वेश्या स्वतंत्र नारी है?’ मैंने अब वेश्याओं को भी ‘नियंत्रित’ रखने के लिए लंबे-चौड़े कानून बना दिए हैं। अकेली औरत को रोजी-रोटी, भरण-पोषण के लिए वेश्यावृत्ति करने की खुली छूट है। लेकिन, दो या दो से अधिक वेश्याओं द्वारा संगठित होकर देह-व्यापार करना अपराध। संगठित होंगी, तो यूनियन बनाएंगी, अधिकारों की बातें करेंगी, जुलूस निकालेंगी, सरकार की नाक में दम करेंगी। इनके साथ रहने और इनकी आमदनी पर पलने वालों के खिलाफ भी कानून बनाना पड़ा -ये अकेली ही रहें तो ठीक रहेगा। अकेली औरत का जब चाहो, जैसे चाहो उपयोग कर सकते हो। न कोई सुनने वाला, न मदद करने वाला। शहर में अलग-अलग जगह पर रहेंगी, तो एक जगह ‘गंदगी का ढेर’ भी नजर नहीं आएगा और समाज का काम भी ‘बिना रुकावट’ चलता रहेगा। कोठे का मालिक बनकर मैं करोड़ों कमाऊंगा ओर ग्राहक बनकर रोज तुम्हें भोगूंगा। पुलिस का छापा पड़ेगा, तो पकड़ी तुम जाओगी। (ग्राहक को कानून हाथ तक नहीं लगा सकता) पुलिस तुमसे पैसे भी लेगी और रात-भर हिरासत में तुम्हारी बोटी-बोटी नोच डालेगी। पुलिस पर बलात्कार का आरोप लगाओगी तो ‘वेश्या’ प्रमाणित होते ही बलात्कार सहमति से संभोग में बदल जाएगा और पुलिस अफसर बाइज्जत रिहा। कौन सुनेगा तुम्हारी फरियाद? सब ‘उन स्त्रियों को (तो) घृणा की दृष्टि से देखते हैं, जो थोड़ी देर के लिए वेश्याएं बनती हैं। पर, उन स्त्रियों का (ही) आदर और मान करते हैं, जो उम्र-भर वेश्यावृत्ति करती हैं।’ तुम जिससे कहोगी उसके खिलाफ हड़ताल करवा दूंगा। राजलक्ष्मी का दरवाजा खटखटाओगी तो उसके विरुद्ध रिश्वत खाने का आरोप लगाऊंगा और सीबीआई जांच, साहब पर छेड़छाड़ का आरोप लगाओगी, तो साहब को पुरस्कार से सम्मानित करवाऊंगा। लेखिकाएं और महिला बुद्धिजीवी देती रहें राष्ट्रपति को ज्ञापन। मेरी दुनिया में जैसे मैं चाहूंगा तुम्हें वैसे ही रहना पड़ेगा। मुझसे अलग तुम्हारी कोई पहचान नहीं। मेरे कारनामों पर सोचोगी और मुझे रोकोगी तो पागल घोषित करवा दूंगा। सारी उम्र पागलखाने में बंद पड़ी रहना। पागलखाने नहीं भिजवा पाया, तो घर में ही ऐसी स्थितियां बना छोड़ूंगा कि तुम्हें खुद ही अपनी जिंदगी व्यर्थ लगने लगेगी। आत्महत्या करोगी, तो दुनिया से कह दूंगा- ‘पागलपन की बीमारी से तंग आकर खुदकुशी कर ली।’ नहीं करोगी आत्महत्या तो मुझे हत्या करनी या करवानी पड़ेगी। पकड़ा गया, तो थोड़ा-सा झूठ बोलना पड़ेगा कि तुम्हारा किसी गैर मर्द से नाजायज संबंध था, मैंने तुम दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो ‘अचानक और भयंकर उत्तेजना’ में तुम्हारी हत्या कर दी, प्रेमी भाग गया। असल में तो मर्डर के एक्सपर्ट वकील मुझे बचा ही लेंगे। नहीं भी बचा पाए, तो फांसी तो लगने से रही; 10 साल कैद की सज़ा हो जाएगी। वो भी राष्ट्रपति या गवर्नर से माफ करवा लूंगा। तुम मेरे साथ जीओगी तो मेरे साथ ही मरना भी पड़ेगा। मेरे मरने पर मेरे साथ सती होना पड़ेगा। नहीं होगी तो घर-बार छोड़ वृंदावन विधवा आश्रम जाना होगा। सती बनोगी तो तुम्हारी याद में आलीशान मंदिर बनेंगे। हर साल मेला लगेगा, लोग पूजने आएंगे और तुम्हारी भी स्वर्ग में एक सीट पक्की। पति की लाश के साथ पत्नी को जिंदा जलाना या दफनाना कानूनन अपराध है। तो कोई बात नहीं, जिंदा नहीं (मारकर जलाएंगे या दफनाएंगे। अरथी के साथ गंगा में तो बहा ही सकते हैं? सती होने का धर्म भी पूरा हो जाएगा और कानून को भी आंच नहीं आएगी। सती बनाने के मुजरिमों की वकालत करने वाले वकील की तीन पीढ़ियां देश में राज करेंगी और मुकदमा लड़ने वालों के घर हमेशा ‘लक्ष्मी’ वास करेगी। ज्यादा चूं-चपड़ की या तुम्हारे हिमायतियों ने ‘मनुष्यता’ वगैरह की बकवास की तो खूंखार, शास्त्रीय दांतों वाले सम्पादक छुड़वाकर बोटी-बोटी चिथवा दूंगा।
संदर्भ :
- 10 मार्च, 1989 : चंडीगढ़ में भाई होने की खबर सुनकर तीन बहनों ने आत्महत्या कर ली।
- संयुक्त हिंदू परिवार में मिताक्षरा स्कूल में सिर्फ पुत्र ही संपत्ति बंटवा सकते हैं।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा-8.
- विमैन लॉज ऑन पेपर : भगवती टाइम्स ऑफ इंडिया, 3 अप्रैल, 1988 “अधिकांश संपत्ति वसीयत द्वारा बेटों को दे दी जाती है और बहनें कानूनी अन्याय खामोश रहकर सहन करती हैं।”
- ऑल इंडिया रिपोर्टर 1987 सुप्रीम कोर्ट 1616, “हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (ए) में पुत्री की परिभाषा में सौतेले पुत्र व पुत्री शामिल नहीं हैं।”
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-125 (1) (डी) के अंतर्गत मां-बाप के भरण-पोषण की जिम्मेदारी बेटे पर है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि ‘बेटियों को इस दायित्व से अलग नहीं किया जाना चाहिए।’
- जयंती राम पंडा, 1984 क्रिमिनल लॉ जरनल 1535 (कलकत्ता)।
- मोयनुल मियां, 1984 क्रि. ज. (एन.ओ.सी. 28 गोहाटी)।
- ‘संसद से सड़क तक’ धूमिल।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा-3 (जे) के अनुसार, ‘संबंधी’ का अर्थ वैध रक्त संबंधवाला ही है लेकिन ‘अवैध बच्चे’ अपनी मां के वैध संबंधी माने जाएंगे।
- वेश्याओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कारण बताओं नोटिस जारी किया था। याचिका का मुख्य मुद्दा यह था कि स्कूल में वेश्याओं के बच्चों को दाखिला इस कारण नहीं दिया जाता कि उनके बाप का नाम पता नहीं है। इस नोटिस के बाद दिल्ली प्रशासन ने सब स्कूलों को निर्देश दिए कि दाखिले के लिए बाप का नाम जरूरी नहीं।
- ‘रेप लॉ अनसिम्पेथेटिक टू विकटिम’ उषा राय, टाइम्स ऑफ इंडिया, 8 मार्च, 1989 : रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का सुमन रेप केस पर महिला संगठनों को दिया आश्वासन।
- सुप्रिया हत्याकांड की सुनवाई कें दौरान सुप्रीम कोर्ट में भूतपूर्व कानून मंत्री श्री अशोक सेन की टिप्पणी। टाइम्स ऑफ इंडिया, 10 मार्च, 1989.
- हरपाल सिंह 1981, सुप्रीम कोर्ट केसेस (क्रिमिनल) 208.
- 17 क्रिमिनल लॉ जरनल 150, 81, पंजाब लॉ रिपोर्टर, 194.
- ए.आई.आर. 1857 उड़ीसा 78 और 63 पंजाव लॉ रिपोर्टर 546.
- फ्लैटरी केस 1877 (2) क्यू. बी. डी. 410.
- यदुराम 1972 क्रि. लॉ. ज. (1464) जम्मू-कश्मीर।
- तीस हजारी कोर्ट में वकील इंद्रसिंह शर्मा द्वारा 19 वर्षीय महिला मुवक्किल के साथ बलात्कार का आरोप (टाइम्स ऑफ इडिंया, 20 मार्च, 1988) इससे पूर्व गुड़गांव (हरियाणा) के प्रसिद्ध वकील राव हरनारायण पर अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार व हत्या का मुकदमा चला था। 1957 पंजाब लॉ रिपोर्टर 519 में जमानत पर न्यायधीश श्री टेकचंद का निर्णय और ए.आई.आर. 1958 पंजाब 273 में अदालत अवमानना पर निर्णय महत्त्वपूर्ण हैं। उल्लेखनीय है कि जिस पत्रकार ने इस हत्याकांड का भंडाफोड किया था उसे अदालत अवमानना कानून के तहत जुर्माना भरना पड़ा था। देखें लेख बलात्कार : पीड़ा की हार अरविंद जैन, चौथी दुनिया, 27 मार्च से 2 अप्रैल 1988.
- 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार, मेडिकल परीक्षण नहीं करवाया, डॉक्टर को गवाही के लिए नहीं बुलाया, अभियुक्त रिहा। 1978 चांद लॉ रिपोर्टर (क्रि.) दिल्ली-91.
- 80 पंजाब लॉ रिपोर्टर 232.
- 1977 क्रि. लॉ. ज. 185 (जम्मू-कश्मीर)।
- 82 पंजाब लॉ रिपोर्टर 220.
- 1980 चांद लॉ रिपोर्टर 108 (पंजाब व हरियाणा) ए.आई.आर. 1977 सुप्रीम कोर्ट 1307, ए.आई.आर. 1979, सुप्रीम कोर्ट 185.
- ए.आई.आर. 1927 लाहौर 858, ए.आई.आर 1942 मद्रास 285.
- भारतीय साक्षी अधिनियम की धारा-155(4) में प्रावधान है कि अगर पुरुष पर बलात्कार का अभियोग हो, तो गवाह की विश्वसनीयता समाप्त करने के लिए यह प्रमाणित करना आवश्यक है कि पीड़ित अनैतिक चरित्र की हैं।
- प्रताप मिश्रा बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1977 सुप्रीम कोर्ट 1307 में गर्भवती प्रोमिला कुमारी रावत के साथ तीन व्यक्तियों ने बलात्कार किया, 4-5 दिन बाद गर्भपात हुआ, चोट के निशान न मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था कि सम्भोग सहमति से हुआ हैं और इसमें पति की मिलीभगत है।
- ए.आई.आर. 1939, इलाहाबाद 708.
- 1979 राजस्थान क्रिमिनल केसेस 357.
- कुदरत बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1939, इलाहाबाद 708.
- 1977 (2) राजस्थान क्रिमिनल केसेस 206.
- ए.आई.आर. 1958, सुप्रीम कोर्ट 143.
- रफीक बनाम राज्य, 1980 (4), सुप्रीम कोर्ट केसेस 262.
- ए.आई.आर. 1923, लाहौर 297.
- 19 क्रिमिनल लॉ जरनल 155.
- राजकपूर बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1980 सुप्रीम कोर्ट 258.
- वही, 615.
- समरेश बोस बनाम अमल मित्रा 1985 (4) सुप्रीम कोर्ट के केस 289.
- फरजाना बी बनाम सेंसर बोर्ड 1983 इलाहाबाद लॉ जरनल 1133.
- भारतीय दंड सहिंता की धारा-292 के अपवाद।
- भारतीय दंड सहिंता की धारा-304 (बी) और भारतीय साक्षी अधिनियम की धारा-113 (बी)
- ‘बड़ी बेटी के हत्यारे को छोटी बेटी ब्याह दी’ जनसत्ता, 26 जून, 1988 पृ.-3
- चौथी दुनिया, 17-23 जनवरी, 1988। संडे आब्जर्वर, 27 मार्च, 1988, ‘गंगा’ जनवरी 1989 और सुप्रीम कोर्ट केसेस 1985 (4) पृ. 476 और ‘ब्राइडस ऑर नाट फॉर बर्निंग रंजना कुमारी, रेडियंट पब्लिशर्ज, 1989.
- वीरभान सिंह बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1983 सुप्रीम कोर्ट 1002, कैलाश कौर बनाम राज्य, ए.आई.आर. 1987,सुप्रीम कोर्ट, लक्ष्मी देवी बनाम राज्य ए.आई.आर.1988 सु. को. 1785, व अन्य। पढ़े : ‘विमैन, लॉ एंड सोशल चेंज इन इंडिया’, इंदू प्रकाश सिंह, रेडियंट पंब्लिशर्स 1989.
- भारतीय दंड सहिंता की धारा-375 में यह अपवाद कि पत्नी अगर 15 वर्ष से कम उम्र की नहीं है, तो उसके साथ सम्भोग बलात्कार नही माना जाएगा। हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-5 के अनुसार दुल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की उम्र 18 वर्ष होना अनिवार्य हैं।
- हिंदू गोद व भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा-8.
- वही, धारा-6.
- ‘रोके नहीं रुकते बाल-विवाह’, अशोक शर्मा, रविवारीय जनसत्ता, 17 अप्रैल, 1988, पृ.-4.
- ‘जैन धर्म और बालदीक्षा’, इंद्रदेव, नई सदी, मई, 1988, पृ.-4, ‘धर्म गुरुओं की हैवानियत का दूसरा नाम हैं बालदीक्षा’, चौथी दुनिया, 1-7 जनवरी, 1989,पृ.-7, ‘कम उम्र बच्चियों को जबरन बनाया जाता है साध्वी’, दैनिक विश्वामित्र, 10 मई, 1987.
- ‘द रनअवे नत’, इंडिया टूडे, 31 जनवरी 1987, पृ.-89
- ‘शोकिंग डेथ’ संडे मेल, 18-24 अक्तूबर, 1987.
- ए. आई. आर. 1966 मध्य प्रदेश 212.
- भारतीय विवाह अधिनियम की धारा-9, ए.आई.आर. 1983, आंध्र प्रदेश 356 के अनुसार यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के विरुद्ध हैं, लेकिन अपील में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को रद्द कर दिया। ए.आई.आर. 1984, सुप्रीम कोर्ट 1562.
- हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा-6.
- हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा-8.
- भारतीय दंड संहिता की धारा-497 के अनुसार, व्यभिचार किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी के साथ बिना उसके पति की सहमति या मिलीभगत के यौन-संबंध स्थापित करना हैं। देखें-लेख अरविंद जैन, चौथी दुनिया, 28 फरवरी-5 मार्च, 1988.
- ‘आदमी की निगाह में औरत’, राजेन्द्र यादव साप्ताहिक हिंदुस्तान, 1989, पृ.-23.
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-125.
- सैमित्र विष्णु बनाम भारत सरकार, ऑल इंडिया रिपोर्टर, 1985, सुप्रीम कोर्ट 1618.
- भारतीय दंड संहिता की धारा-361.
- ‘आदमी की निगाह में औरत’, राजेन्द्र यादव, साप्ताहिक हिंदुस्तान, 12 मार्च, 1989.
- इम्मौरल ट्रैफिक (प्रवर्शन) एक्ट-1956.
- रतनमाला केस ऑल इंडिया रिपोर्टर 1962 मद्रास-31.
- वेश्यावृत्ति निरोधक कनून 1956 की धारा-2 (एफ)।
- देखें ‘कानून भी वेश्या को ही सताता हैं’ अरविंद जैन, मधुर कथाएं जून, 1988 पृ.-77.
- मथुरा केस, सुमन बलात्कार केस 1989 (1) स्केल, 199 और परड़िया बलात्कार कांड, हिंदुस्तान टाइम्स, 31 मार्च, 1988.
- ‘क्रूजर सोनाटा’, लेव तोल्सतोय।
- भारतीय दंड संहिता की धारा-300 का अपवाद (1) इसके अंतर्गत बहुत से ऐसे हत्या के मुकदमें हैं, जिनमें अवैध यौन-संबंधों के आधार पर हत्यारों की सज़ा कम हुई हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-72 के अंतर्गत राष्ट्रपति और गवर्नर द्वारा काफी मामलों से सज़ा माफ की गई हैं।
- सती निरोधक कानून की धारा।
- ए.आई.आर. 1914 इलाहाबाद 249 एक सती का मुकदमा जिसमें मुजरिमों की पैरवी पं. मोतीलाल नेहरू न की थी। (देखें, ‘हंस’ नवंबर, 1987, पृ.-86)[लेखक की अनुमति से पुनर्प्रकाशित]
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/सिद्धार्थ/एफपी डेस्क)
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