बीते 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में एक आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 42 जवान शहीद हो गए। इनमें कोई ब्राह्मण नहीं था। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने 15 फरवरी को ‘पुलवामा आतंकी हमला : शहादत में गैर-ब्राह्मणों के लिए सौ फीसदी आरक्षण!’ शीर्षक से तथ्यों को खंगालने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस खबर रिपोर्ट को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा हो गया है।
यह पहला अवसर नहीं है जब ‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए हम पर जातिवाद फैलाने और देशद्रोही होने के आरोप लगाए गए हैं। बहरहाल, हम पूर्व में भी ऐसी खबरें और सर्वेक्षण प्रकाशित करते रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में द्विज-अद्विज, दलित, आदिवासी, अशराफ और पसमांदा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय आदि की क्या स्थिति है। और आगे भी ऐसा ही करते रहने का दृढ़ इरादा रखते हैं। इस प्रकार के अध्ययन न सिर्फ समाजशास्त्रीय महत्व रखते हैं, बल्कि भारत से जातिवाद की सड़ांध को दूर करने के लिए आवश्यक हैं। जो लोग जातिवाद के घाव को दुनिया के सामने आने से रोकना चाहते हैं, वे निश्चित ही न सिर्फ इसके दर्द से अनभिज्ञ हैं, बल्कि जाने-अनजाने इस घाव को पैदा करने और बनाए रखने में भी शामिल हैं।
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फारवर्ड प्रेस पत्रिका के प्रिंट संस्करण के अप्रैल, 2012 के बहुजन साहित्य वार्षिकी में प्रकाशित रिपोर्ट ‘द्विजों में ही होती है साहित्यिक प्रतिभा?’ पर भी साहित्यिक गलियारे में सवाल उठाए गए थे। उस रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह साहित्य अकादमी व ज्ञानपीठ पुरस्कार पर ऊंची जातियों के लोगों का कब्जा रहा है।
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इसके अतिरिक्त पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन ने स्वयं बिहार के मीडिया के मीडिया की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करके बताया था कि बिहार के मीडिया संस्थानों में निर्णय लेने वाले मुख्य पदों पर न कोई ओबीसी है, न दलित, न आदिवासी, न स्त्री। (पढ़ें, उनके सर्वेक्षण ‘मीडिया में हिस्सेदारी’, शीर्षक पुस्तिका, प्रज्ञा शोध संस्थान, पटना, 2009)
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बहरहाल, हम एक बार फिर प्रकाशित कर रहे हैं एक और तथ्य परक रिपोर्ट, जिसके मुताबिक भारत में मिलने वाले सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ पर ऊंची जातियों के लोगों का और खासकर ब्राह्मण जाति के लोगों का कब्जा है। अब तक 48 लोगों को यह सम्मान मिला है। इनमें 41 द्विज हैं। प्रतिशत के हिसाब से यह 85.4 फीसदी है। इनमें भी ब्राह्मण जाति के लोगों की संख्या सबसे अधिक 31 (64.5 प्रतिशत) है। इस सम्मान में धार्मिक अल्पसंख्यक (सभी अशराफ, कोई पसमांदा नहीं) की हिस्सेदारी 12.5 प्रतिशत, दलितों की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत और ओबीसी की हिस्सेदारी सिर्फ 4 प्रतिशत है।
हाल ही में संपन्न गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2019) को पूर्ववर्ती राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को और आरएसएस के प्रचारक रहे नानाजी देशमुख व आसाम के लोक संगीतकार भूपेन हजारिका को 2019 का यह सम्मान दिया गया। सनद रहे कि ये तीनों भी ब्राह्मण हैं।
दूसरी जिस जाति के लोगों को यह सम्मान मिला है, वह कायस्थ जाति है। इस जाति के 4 लोगों को यह सम्मान मिला है। राजपूत भी इस सम्मान से वंचित रहे हैं। अन्य जाति-समुदायों की बात करें तो तीन मुसलमानों को यह सम्मान मिला है जो अशराफ यानी उच्च जाति के मुसलमान हैं। इनके अलावा सम्मान पाने वालों में एक पारसी जे. आर. डी. टाटा शामिल हैं। भारत रत्न का सम्मान पाने वालों में दो विदेशी नागरिक खान अब्दुल गफ्फार खान और दक्षिण अफ्रीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला हैं। एक अन्य मदर टेरेसा को यह सम्मान मिला जिनका जन्म यूरोपीय देश मैसेडोनिया के स्कॉपिया में हुआ था। हालांकि भारत रत्न का सम्मान उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में मिला। डॉ. भीमराव आंबेडकर यह सम्मान पाने वाले एकमात्र दलित हैं। वहीं ओबीसी की बात करें तो के. कामराज और सरदार पटेल भारत रत्न काे भारत रत्न का सम्मान मिला। 1990 में डॉ. आंबेडकर को यह सम्मान किस प्रकार की राजनीतिक मजबूरी और दबाव में देना पडा, यह हम सब जानते हैं।
नाम | परिचय | जाति/समूह |
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1. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1954) | प्रथम उप राष्ट्रपति | ब्राह्मण (द्विज) |
2. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1954) | प्रथम भारतीय गर्वनर जनरल | ब्राह्मण (द्विज) |
3. डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरमण (1954) | भौतिकी वैज्ञानिक | ब्राह्मण (द्विज) |
4. डॉ. भगवान दास (1955) | स्वतंत्रता सेनानी व शिक्षाविद् | ब्राह्मण (द्विज) |
5. डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (1955) | अभियंता | ब्राह्मण (द्विज) |
6. जवाहर लाल नेहरू (1955) | प्रथम प्रधानमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
7. गोविंद बल्लभ पंत (1957) | उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
8. डॉ. धोंडो केशव कर्वे (1958) | समाज सुधारक | ब्राह्मण (द्विज) |
9. डॉ. बिधानचंद्र राय (1961) | पश्चिम बंगाल के प्रथम मुख्यमंत्री | कायस्थ (द्विज) |
10. पुरुषोत्तम दास टंडन (1961) | हिंदी को राजभाषा का सम्मान दिलाने का श्रेय | भूमिहार (द्विज) |
11. डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1962) | प्रथम राष्ट्रपति | कायस्थ (द्विज) |
12. डॉ. जाकिर हुसैन (1963) | तीसरे राष्ट्रपति | मुसलमान (उच्च अशराफ) |
13. डॉ. पांडुरंग वामन काणे (1963) | संस्कृत के विद्वान | ब्राह्मण (द्विज) |
14. लाल बहादुर शास्त्री (1966) | दूसरे प्रधानमंत्री | कायस्थ (द्विज) |
15. इंदिरा गांधी (1971) | प्रथम महिला प्रधानमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
16. वी.वी. गिरि (1975) | चौथे राष्ट्रपति | ब्राह्मण (द्विज/ओबीसी)[1] |
17. के. कामराज (1976) | तामिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री | नाडर (ओबीसी) |
18. मदर टेरेसा[2] (1980) | समाज सेविका | ईसाई (उच्च/अशराफ) |
19. आचार्य विनोबा भावे (1983) | भूदान आंदोलन के प्रणेता | ब्राह्मण (द्विज) |
20. खान अब्दुल गफ्फार खान[3] (1987) | सामाजिक कार्यकर्ता | अशराफ (द्विज मुसलमान) |
21. एम.जी. रामचंद्रन (1988) | तामिलनाडु के मुख्यमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
22. डॉ. भीमराव आंबेडकर (1990) | संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष | महार/अनुसूचित जाति (अद्विज) |
23. नेल्सन मंडेला (1990) | दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति | विदेशी |
24. राजीव गांधी (1991) | प्रधानमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
25. सरदार वल्लभ भाई पटेल[4] (1991) | भारत के प्रथम गृहमंत्री | पटेल (अद्विज) |
26. मोरारजी देसाई (1991) | भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
27. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (1992) | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व स्वतंत्रता सेनानी | अशराफ (द्विज मुसलमान) |
28. जे.आर.डी. टाटा (1992) | टाटा समूह के संस्थापक उद्योगपति | पारसी (उच्च/अशराफ) |
29. सत्यजीत रे (1992) | फिल्म निर्देशक | ब्राह्मण (द्विज) |
30. अब्दुल कलाम (1997) | भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति व वैज्ञानिक | मुसलमान (उच्च/अशराफ) |
31. गुलजारी लाल नंदा (1997 | पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री | खत्री (अद्विज) |
32. अरुणा आसफ अली (1997) | स्वतंत्रता सेनानी | ब्राह्मण (द्विज) |
33. एम एस सुब्बुलक्ष्मी (1998) | संगीतकार | ब्राह्मण (द्विज) |
34. सी सुब्रामनीयम (1998) | भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
35. जयप्रकाश नारायण (1998 | संपूर्ण क्रांति आंदोलन के सूत्रधार | कायस्थ (अद्विज) |
36. पंडित रविशंकर (1999) | संगीतकार | ब्राह्मण (द्विज) |
37. अमर्त्य सेन (1999) | नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री | ब्राह्मण (द्विज) |
38. गोपीनाथ बोरदोलोई (1999) | आसाम के प्रथम मुख्यमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
39. लता मंगेश्कर (2001) | पार्श्व गायिका | ब्राह्मण (द्विज) |
40. उस्ताद बिस्मिल्ला खां (2001) | शहनाई वादक | मुसलमान (उच्च अशराफ) |
41. पंडित भीमसेन जोशी (2008) | संगीतकार | ब्राह्मण (द्विज) |
42. चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव (2014) | रसायन वैज्ञानिक | ब्राह्मण (द्विज) |
43. सचिन तेंदुलकर (2014) | क्रिकेटर | ब्राह्मण (द्विज) |
44. अटल बिहारी वाजपेयी (2015) | भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री | ब्राह्मण (द्विज) |
45. पंडित मदन मोहन मालवीय (2015) | बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक | ब्राह्मण (द्विज) |
46. प्रणब मुखर्जी (2019) | भारत के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति | ब्राह्मण (द्विज) |
47. भूपेन हजारिका (2019) | आसाम के लोक संगीतकार | ब्राह्मण (द्विज) |
48. नानाजी देशमुख (2019) | राष्ट्रीय सेवक संघ के प्रचारक | ब्राह्मण (द्विज) |
क्या पेरियार, जेएनपी मेहता,चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, कांशीराम, मेजर ध्यानचंद, जयपाल सिंह मुंडा, रामस्वरूप वर्मा, कर्पूरी ठाकुर आदि दर्जनों नाम क्या इस सूची में होने लायक नहीं हैं? ये सभी सामाजिक रूप से वंचित तबकों से ताल्लुक रखते हैं।
क्या उपरोक्त सूची से यह मालूम नहीं चलता कि देश की सामाजिक रूप से वंचित आबादी के दर्जनों नायकों को उस सम्मान से सयास वंचित रखा गया है, जिसके वे हकदार थे? इन सूचियों पर सवाल उठाना देशप्रेम है या देशद्रोह?
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)
संदर्भ :
[1] उत्तर प्रदेश में गोस्वामी जाति ओबीसी में शामिल है। परंतु, सामाजिक स्थिति के अनुरूप इन्हें सवर्ण माना जाता है। इस जाति के लाेग स्वयं को गोस्वामी तुलसीदास का वंशज मानते हैं।
[2] 26 अगस्त 1910 को यूरोपीय देश मैसेडोनिया के स्कॉपिया में जन्मीं मदर टेरेसा ने कलकत्ता में बच्चों एवं कुष्ठ रोग के रोगियों के लिए कार्य किया। भारत रत्न का सम्मान उन्हें बतौर भारतीय नागरिक दिया गया।
[3] खान अब्दुल गफ्फार खान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। वे भारत रत्न का सम्मान पाने वाले प्रथम गैर भारतीय थे।
[4] गुजरात में पटेल समाज सामान्य वर्ग में शामिल है।
पारिभाषिक शब्दावली :
द्विज, वे जातियां हैं, जिन्हें हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार यज्ञोपवित संस्कार का अधिकार हासिल है जबकि अशराफ से आशय उच्चवर्णीय भारतीय मुसलमानों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों से है। मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी आदि धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, लेकिन ब्राह्मणवाद के प्रभाव के कारण उनमें भी जाति प्रथा के अनेक अवगुण व्याप्त हो गए हैं। इन समुदायों के पीछे छूट गए, सामाजिक रूप से शोषित लोगों को ‘पसमांदा’ कहा गया है।
इसी प्रकार, हिंदूओं की कायस्थ जाति उच्च मानी जाती है, तथा सामान्य वर्ग में है। लेकिन हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार वे शूद्र/अद्विज हैं। गुजरात के पटेल भी शूद्र हैं, लेकिन संविधान-प्रदत्त आरक्षण के लिए बनाए गए में नियमों में वे ‘सामान्य’ वर्ग में शामिल हैं। खत्री मूलत: एक व्यवसायी जाति है, जो न द्विज है, न शूद्र। उन्हें ‘उच्च वैश्य’ की श्रेणी में भी रखा जा सकता है। लेकिन, सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन के लिए ऐसी जातियों को (जो न शूद्र हैं, न ही द्विज या जो शूद्र और आज ‘सामान्य श्रेणी’ में शामिल हैं) ‘अद्विज’ की श्रेणी में रखना अधिक सुसंगत हैं, क्योंकि ‘वैश्य’ श्रेणी पर अनेक किसान व कारीगर जातियों का दावा भी उसे अध्ययन की दृष्टि से समस्याग्रस्त बना देता है। इसी प्रकार ‘सामान्य’, सवर्ण या द्विज का पर्याय नहीं है। सामान्य श्रेणी में अनेकानेक शूद्र जातियां भी हैं। कुछ लोगों के लिए यह जानना भी रोचक होगा अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) की सूची में अनेक ब्राह्मण व क्षत्रिय जातियां भी हैं, निम्न वैश्यों की तो प्राय: सभी जातियां इसी सूची में हैं। मसलन, उपरोक्त पूर्व राष्ट्रपति वी.वी गिरि ‘गोस्वामी बााह्मण’ हैं, जो ओबीसी में शामिल है।