h n

बनारस में याद किए गए गोंडी भाषा के विशेषज्ञ डॉ. मोती रावण कंगाली

डॉ. मोती राम कंगाली का जन्म 2 फरवरी 1949 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में हुआ था। गहन स्वाध्याय से सांस्कृतिक जड़ों की पहचान सुनिश्चित करने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मोतीरावण कंगाली कर लिया और 1980 के बाद से अपना लेखन व सामाजिक कार्य इसी नाम से किया

गोंडी भाषा विश्व की सबसे प्राचीन लिपि एवं भाषा है, जिसे सर्वप्रथम आदिवासी महानायक डाॅ. मोती रावण कंगाली (2 फरवरी 1949 – 30 अक्टूबर 2015) ने पढ़ा था। उन्होंने यह साबित किया कि विश्व की सभी भाषाओं की जननी गोंड भाषा है। ये बातें बीते 2 फरवरी 2019 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में डॉ. मोती रावण कंगाली के जन्म दिवस के मौके पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में समाज कल्याण विभाग के अधीक्षक अनिल कुमार चौरसिया ने कही।

जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान के तत्वावधान में आदिवासी गोटूल पाठाशाला बेलवरीया में आयोजित इस कार्यक्रम में “गोंडी भाषा के विकास में आदिवासियों की भूमिका’’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया भी किया गया। इस मौके पर डॉ. मोती रावण कंगाली की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

बताते चलें कि डॉ. मोती राम कंगाली का जन्म 2 फरवरी 1949 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में हुआ था। गहन स्वाध्याय से सांस्कृतिक जड़ों की पहचान सुनिश्चित करने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मोती रावण कंगाली कर लिया और 1980 के बाद से अपना लेखन व सामाजिक कार्य इसी नाम से किया। उन्होंने गोंडी भाषा और लिपि के विकास में अहम भूमिका निभायी। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी तिरूमाय चंद्रलेखा कंगाली गोंडी भाषा के विकास को लेकर निरंतर सक्रिय हैं।

डॉ. मोतीरावण कंगाली (2 फरवरी 1949 – 30 अक्टूबर 2015)

अपने उद्घाटन संबोधन में अनिल कुमार चौरसिया ने गोंडी भाषा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि गोंडी भाषा, लिपि द्वारा ही हडप्पा एवं मोहनजोदड़ो काल की लिपियों को पढ़ना सम्भव है। इसके विकास के लिए मोती रावण कंगाली ने जो योगदान दिया है, उससे आने वाली पीढ़ियां लंबे समय तक लाभान्वित होती रहेंगी। उन्होंने कहा कि गोटूल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे गोंडी भाषा का अध्ययन कर रहे हैं। यह बहुत खुशी की बात है ऐसा कर वे प्राचीन संस्कृति को अंनत काल तक बचाए रख सकते हैं।

डॉ. मोतीरावण कंगाली के जन्म दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान युवा को बहुजन कैलेंडर देकर सम्मानित करते मुख्य अतिथि

अपने संबोधन में जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान के सचिव बृजभान मारावी ने कहा कि भाषा ही हमारे विकास की सबसे बड़ी उपलब्धि है। डाॅ. मोती रावण कंगाली ने अपनी भाषा का अध्ययन कर आने वाली पीढ़ी को उनके विकास के लिये सार्थक बनाया। मारावी ने कहा कि आदिवासी समाज के युवा उच्च शिक्षा की क्षेत्र में गहन अध्ययन कर आगे आयेंगे तो अपनी परम्परा, संस्कृति को अनंत काल तक बचाये रख सकते है। शिक्षा के माध्यम से परिवार, समाज व देश की विकास में भागीदार बन सकते है।

वहीं राहुल गोंड ने भी गोंडी भाषा के विकास एवं संरक्षण पर जोर दिया। कार्यक्रम में गोटूल की शिक्षिका बेबी शाह गोंड, राजमनी शाह गोंड, पवन गोंड, विनोद, गोंड, शिवांगी, श्रेया, लक्ष्मी प्रदिप, सोनम पटेल पायल पटेल, शिवा, कृष्णा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विनोद शाह गोंड ने किया।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...