लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही सियासी गलियारे में हलचल तो तेज हो ही गई है, मतदाताओं के मन में भी हलचल पैदा करने की कोशिश की जा रही है। वह भी यह कहकर कि आपका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया है। यह मामला कहीं और की नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली का है। इसका एक दूसरा पहलू भी है, जो अपने आप में चौंकाने वाला है।
फारवर्ड प्रेस के संज्ञान में यह मामला तब आया, जब इसके प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन और अंग्रेजी-संपादक अनिल वर्गीज दोनों को दो अलग-अलग मोबाइल नंबरों से फोन किया गया। फोन करने वाली टेलीकॉलर स्टाफ ने उन्हें कहा कि “मैं आम आदमी पार्टी से बोल रही हूं। भाजपा के लोगों ने आपके नाम वोटर लिस्ट से कटवा दिए हैं। लेकिन आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। अरविंद केजरीवाल इसके खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं तथा पार्टी आपका नाम वोटर लिस्ट में फिर से जुड़वाने की हर संभव कोशिश कर रही है। जैसे ही आपका नाम जुड जाएगा, आपको हम लोग फिर से फोन करके सूचित करेंगे।”
श्री रंजन ने फोन करने वाली महिला से पूछा कि “आपको मेरा नाम काटे जाने की सूचना कैसे मिली?” तो उसने बताया कि “दिल्ली में 30 लाख मतदाताओं के नाम लिस्ट से काट दिए गए हैं। इससे संबंधित खबर आपने अखबारों में पढ़ी होगी। उन्हीं में से एक नाम आपका भी है।” प्रमोद रंजन ने उससे पूछा “क्या आपकी पार्टी ने उन तीस लाख लोगों की लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाली है, जहां मैं देख सकूं कि मेरा नाम हटाए गए लोगों की सूची में है या नहीं?” इस सवाल पर उसने कहा कि “नहीं सर, पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर सूची नहीं डाली है, लेकिन आप चुनाव आयोग के दफ्तर में जाकर चेक कर सकते हैं। आपका नाम पिछले दिनों काट दिया गया है। केजरीवाल जी आप लोगों का नाम जुड़वाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”
अनिल वर्गीज को अलग नंबर से फोन करने वाली किसी अन्य महिला ने भी कमोबेश यही बातें कहीं। उसने उन्हें यह भी कहा कि “भाजपा वालों ने आपके साथ-साथ थॉमस व इकबाल के नाम भी वोटर लिस्ट से काट दिए हैं।” साथ ही उसने यह भी पूछा कि “क्या ये दोनों लोग भी आपके साथ एक ही मकान में रहते हैं?” अनिल वर्गीज ने उसे बताया कि “थॉमस और मैं एक ही घर में रहते हैं। किसी इकबाल को मैं नहीं जानता।”
इन फोन कॉल्स के बाद हम यह सोचने को विवश हुए कि क्या फारवर्ड प्रेस के संपादकों के नाम किसी राजनीतिक विद्वेष के कारण काटे गए हैं? या फिर इसका कोई संप्रदाय आधारित दृष्टिकोण भी है? आखिर अनिल वर्गीज से थॉमस व इकबाल के बारे में अतिरिक्त सवाल क्यों पूछे गए? जाहिर है, इन नामों से इनके ईसाई और मुसलमान होने का पता चलता है।
फारवर्ड प्रेस ने इस संबंध में अपनी तहकीकात शुरू की। प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन ने चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर चेक किया कि उनका नाम मतदाता सूची में है या नहीं। उनका नाम मतदाता सूची में मौजूद था। इसी प्रकार फारवर्ड प्रेस के संपादक (अंग्रेजी) अनिल वर्गीज ने भी वेबसाइट पर जाकर मतदाता सूची में अपने नाम को खोजा। उनका नाम भी सूची में मौजूद पाया गया।
प्रमोद रंजन और अनिल वर्गीज दोनों दिल्ली के दो अलग-अलग इलाकों में रहते हैं। प्रमोद रंजन का आवास पूर्वी दिल्ली में है, जबकि अनिल वर्गीज का दक्षिणी दिल्ली में।
प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन को जिस नंबर (8829668218) से फोन किया गया था, उसे ‘ट्रू-कॉलर’ मोबाइल ऐप पर चेक किया गया, तो जानकारी मिली कि किसी ने यह नंबर ‘आम आदमी पार्टी पागल’ के नाम से सेव कर रखा है। जबकि जिस मोबाइल नंबर (8929228460) से अंग्रेजी-संपादक अनिल वर्गीज को फोन किया गया था, वह नंबर ‘ट्रू-कॉलर’ ऐप के अनुसार यह ‘आप’ का है। हालांकि, ट्रू-कॉलर से यह नहीं पता लगाया जा सकता कि कोई फोन नंबर वास्तव में किसके पहचान-पत्र या आधार नंबर पर रजिस्टर्ड है, या किसके द्वारा इसका उपयोग किया जा रहा है? ट्रू-कॉलर ऐप से सिर्फ इतनी बात पता चलती है कि किसी नंबर को फोन का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति ने अपने स्मार्ट फोन में किस नाम से सेव कर रखा है।
आखिर कौन करवा रहा है फर्जी कॉल?
इसलिए,अब बारी थी यह पता करने की कि आखिर ये कॉल्स क्या वाकई आम आदमी पार्टी के द्वारा करवाई जा रही हैं? जांच के लिए फारवर्ड प्रेस प्रतिनिधि ने दोनों नंबरों पर फोन किया। प्रयास बेकार गया और दोनों नंबरों पर संपर्क न हो सका। फोन या तो काट दिए गए या फिर उठाए ही नहीं गए।
यहां से कोई सुराग नहीं मिलने पर हमने पूर्वी दिल्ली में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विधान सभा क्षेत्र-57 पटपड़गंज के मतदाता केंद्र का रुख किया। वहां मौजूद कर्मी ने हमारा सवाल सुनते ही कहा कि आए दिन लोग यहां इसी जानकारी के लिए आते हैं कि कहीं उनका नाम काट तो नहीं दिया गया है। लेकिन जो लोग फोन से मिली जानकारी (कथित तौर पर आम आदमी पार्टी के द्वारा किए गए फोन) के आधार पर आए, उन सभी के नाम मतदाता सूची में हैं।
यह पूछने पर कि औसतन कितने लोग आते हैं, यहां यह पता करने के लिए? मतदाता केंद्र के कर्मी ने बताया कि “सप्ताह भर पहले 15-20 लोग रोजाना आते थे। अब भी रोजाना 8-10 लोग आ ही जाते हैं। हम उनका नाम चेक कर बताते हैं।”
कर्मी ने कुछ लोगों के नाम काटे जाने की बात भी कही। लेकिन इस संबंध में उसने बताया कि हम लोग जिनका नाम काटते हैं, उन्हें पहले नोटिस भेजते हैं।
उसने विस्तार से बताया कि “हर थाना क्षेत्र में एक बूथ लेवल ऑफिसर होता है। उनकी जिम्मेदारी नियमित तौर पर सर्वेक्षण करने की होती है। सर्वेक्षण के दौरान यदि कोई व्यक्ति/परिवार मतदाता सूची में दर्ज पते पर उपस्थित नहीं पाया जाता है, तो आसपास के पड़ोसियों से पूछताछ के बाद कि अमुक व्यक्ति अब इस पते पर नहीं रहता है, हम लोग एक नोटिस भेजते हैं। उसके बाद लंबी अवधि तक नोटिस का जवाब मिलने का इंतजार किया जाता है। जब उत्तर नहीं मिलता, तभी आयोग किसी का नाम सूची से यह सोचकर हटाता है कि संबंधित व्यक्ति किसी नई जगह पर शिफ्ट हो गया होगा”
जब मतदान केंद्र का कर्मी हमें यह बातें बता रहा था, तब हमारे जेहन में यह सवाल था कि यदि चुनाव आयोग द्वारा अकारण किसी का नाम नहीं काटा जाता, तब ऐसी अफवाहें कैसे फैलाई जाती हैं? बिना पूछे ही मतदान सहायता केंद्र के कर्मी ने हमें इसका जवाब भी दिया। उसने बताया कि “चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, वह किसी भी व्यक्ति का नाम न तो कटवा सकती है और न ही जुड़वा सकती है।”
आम आदमी पार्टी की स्वीकारोक्ति
इसके बाद हमने यह जानने की कोशिश की कि आम आदमी पार्टी के लोग क्या कहते हैं? क्या वे इससे वाकिफ हैं कि उनके नाम का उपयोग करके दिल्ली के नागरिकों को ऐसे फोन किए जा रहे हैं? फारवर्ड प्रेस ने आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता व दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से बात की। उन्होंने बताया कि “मेरी जानकारी में भी 25-30 लाख वोटरों के नाम काटे जाने की बात है और जहां तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर नाम होने की बात है, तो याद रहे कि प्रसिद्ध बेडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा के साथ आखिर क्या हुआ था? वह जब वोट डालने गईं, तो पोलिंग बूथ पर बताया गया कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है, जबकि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उनका नाम दर्ज था। आम आदमी पार्टी दिल्ली के वोटरों को इसी तरह की परेशानी से बचाने के लिए पहले से कोशिश कर रही है।”
यानी, उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया कि फारवर्ड प्रेस के संपादकों को जो फोन किए गए थे, वे आम आदमी पार्टी के द्वारा ही किए गए। जांच को और संपुष्ट करने के इरादे से फारवर्ड प्रेस के प्रतिनिधि ने दिल्ली के मंडावली स्थित आम आदमी पार्टी के कैंप कार्यालय में जाकर आधा घंटा बिताया। इस दौरान ऑन द रिकॉर्ड जो जानकारियां मिलीं, वे कम चौंकाने वाली नहीं थीं। आम आदमी पार्टी के कई सक्रिय कार्यकर्ताओं ने भी इस तरह के फोन खुद के पास आने की बात बताई और साथ ही अनौपचारिक चर्चा में सवाल भी किया कि पता नहीं इस तरह की स्ट्रेटजी से किसे कितना फायदा मिल पाता है?
पहले भी चलता रहा है आरोप-प्रत्यारोप का दौर
हमने यह जानने की भी कोशिश की कि क्या किसी अखबार ने पहले इससे संबंधित खबर प्रकाशित की है, जिसका दावा टेली-कॉलर ने प्रमोद रंजन से फोन पर किया था। इस संबंध में जांच करने पर हमने पाया कि इस प्रकार की खबर सबसे पहले ‘आज तक-इंडिया टुडे डॉट कॉम’ पर प्रकाशित हुई थी। 3 दिसंबर, 2018 को प्रकाशित इस खबर में ‘आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता आतिशी से ‘आज तक’ से विशेष बातचीत’ का हवाला दिया गया था। उस कथित ‘विशेष बातचीत” में आतिशी ने दावा किया था कि ‘30 लाख कटे हुए नाम की जानकारी हमें चुनाव आयोग की वेबसाइट से मिली है। इस लिस्ट में खासतौर पर पूर्वांचल, मुस्लिम और अग्रवाल समाज के सदस्यों के नाम मतदाता सूची से नदारद है।” उनका कहना था कि “खासतौर पर भाजपा का विरोध कर रहे वर्ग के सदस्यों के नाम मतदाता सूची से काटे गए हैं।” बाद में इस तरह की खबरें एनडीटीवी, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि ने भी प्रकाशित कीं। इसके कुछ समय बाद आम आदमी पार्टी इस मामले को आधिकारिक तौर पर भी उठाने लगी तथा यह मामला दिल्ली विधानसभा में भी गूंजा। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से इसे फर्जी आरोप बताया गया। लेकिन मामला राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से आगे नहीं बढ़ सका, तथा किसी सक्षम एजेंसी से न तो आम आदमी पार्टी के दावों की जांच करवाई गई, न ही भाजपा के प्रत्यारोपों को गंभीरता से लिया गया। विवाद गहराने के बाद 18 जनवरी को चुनाव आयोग ने एक प्रेस बयान जारी कर बताया कि 01 जून 2018 से लेकर 30 जून 2018 के बीच बूथ लेवल ऑफिसर्स द्वारा दिल्ली के घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया गया, ताकि 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले नए मतदाताओं तथा इस दौरान अलग जगहों पर चले जाने वाले मतदाताओं के अलावा मृत लोगों के बारे में जानकारी एकत्रित की जा सके।
दिल्ली मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रणदीप सिंह ने 18 जनवरी 2019 को प्रेस नोट जारी कर स्पष्ट किया कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद 7.78 प्रतिशत वोट जोड़े गए हैं और पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में केवल 0.87 प्रतिशत वोट कम हुए हैं। ये ऐसे लोग हैं, जो या तो मर गए हैं या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं।
इस जानकारी के साथ ही उन्होंने आम आदमी पार्टी द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को बेबुनियाद ठहराया और कहा कि यह पूरी तरह गलत और अकल्पनीय है कि वोटर्स के नाम जाति और धर्म के आधार पर जोड़े और काटे जा रहे हैं।
इस पड़ताल में हमने पाया कि इस तरह के फोन कमोबेश पूरे दिल्ली में किए जा रहे हैं और इसके माध्यम से चुपचाप लोगों के मन में सांप्रदायिक अलगाव तथा चुनाव आयोग के प्रति अनास्था बढ़ाई जा रही है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। इसके पीछे चाहे जो भी राजनीतिक दल हों, लेकिन इतना स्पष्ट है कि इस तरह की चीजों को विभिन्न कॉल सेंटरों के माध्यम से अंजाम दिया जाता है। इन कॉल सेंटरों में काम की तलाश में भटक रहे सैकड़ों की संख्या में शिक्षित बेरोजगार युवकों को अच्छे वेतन का प्रलोभन देकर काम पर रखा जाता है तथा टेली-कॉलिंग के माध्यम से अनेक अवैध गतिविधियां संचालित की जाती हैं।
भाजपा का दावा, जल्दी ही खुल जाएगा राज!
चूंकि, फोन पर बताया गया था कि वोटर लिस्ट से नाम भाजपा के इशारे पर काटा गया है, तो हमने दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी से भी बात की। उन्होंने आम आदमी पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि “झूठ के सहारे लंबी राजनीतिक पारी नहीं खेली जा सकती है। दिल्ली की जनता ने भरोसा किया, लेकिन उनका भरोसा टूट चुका है और इसका टूटना लाजिमी ही था। क्योंकि झूठ की बुनियाद पर ही ये सत्ता तक पहुंचे थे। वोटर लिस्ट से नाम कटवाने का आरोप भाजपा पर ये लगाते रहे हैं।” उन्होंने सवाल भी पूछा कि “अब आप ही बताएं आपके यहां के ही दो सीनियर पत्रकारों के पास इस तरह के फोन आने का क्या मतलब निकलता है? आप मीडिया वाले ही स्वयं मतलब निकालें कि आम आदमी पार्टी आखिर क्यों इस तरह के मनगढ़ंत आरोप लगाती है।”
तिवारी ने कहा कि “इस संबंध में भाजपा का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली चुनाव कार्यालय जाकर अपनी आपत्ति व्यक्त कर चुका है और साथ ही भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा व भाजपा विधायक मनजिन्दर सिंह सिरसा पंजाबी बाग थाने में मुकदमा भी दर्ज करवा चुके हैं। इसके अलावा इस सिलसिले में पटियाला हाऊस कोर्ट में हमारी पार्टी की तरफ से राजीव बब्बर ने केस भी किया है, जिसमें चुनाव आयोग को भी पार्टी बनाया गया है। जल्द ही इस मामले का पटाक्षेप हो जाएगा, बस थोड़ा और इंतजार कर लें।”बहरहाल, फारवर्ड प्रेस टीम की जांच का भी अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। हम भी इस मामले की तह में जाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी)
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