बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) पर एक बार फिर परीक्षा परिणामों में गड़बड़ी का आरोप लगा है। इससे पहले 64वीं प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा के परिणाम को लेकर आयोग की व्यापक फजीहत हुई थी। इस बार असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी के रिजल्ट में भी गड़बड़ी करने का आरोप अभ्यर्थियों ने लगाया है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि आयोग ने रिजल्ट जारी करने में आरक्षण नियमों की अनदेखी की है। आयोग ने भर्ती में 50 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण दे दिया है।
गौर तलब है कि असिस्टेंट प्रोफेसर हिन्दी के कुल 250 पदों के लिए आयोग ने गत वर्ष मई-जून में इंटरव्यू लिया था। विज्ञापन के अनुसार 250 पदों में से 126 पद अनारक्षित कोटि (सामान्य वर्ग) के लिए तथा पिछड़ा वर्ग के लिए 31, अति पिछड़ा वर्ग के लिए 42, पिछड़ा वर्ग महिला के लिए 6 ,अनुसूचित जाति के लिए 43 एवं अनुसूचित जनजाति के लिए 2 पद आरक्षित थे।
अभ्यर्थियों का आरोप है कि आयोग ने परिणाम जारी करने में नियमों का पालन नहीं किया जिससे अन्य पिछड़े वर्ग के कई उम्मीदवार चयनित होने से वंचित रह गए। अभ्यर्थियों का कहना है कि अनारक्षित कोटि की खुली प्रतियोगिता वाली सीटें ( 50 प्रतिशत) विभिन्न समुदायों के शीर्ष 126 अभ्यर्थियों की मेधा सूची से भरी जानी थी, किन्तु आयोग ने आरक्षण नियमों को दरकिनार कर अनारक्षित कोटि की सभी सीटें सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से भर दी। अनारक्षित कोटि में स्थान बनाने वाले (शीर्ष क्रम से 126 तक) अन्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को उनके रिजर्व कैटेगरी में समायोजित कर दिया, जबकि राज्य सरकार द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए जारी परिनियम के अध्याय-4 में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि – “अगर आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के लिए चुना जाता है, तो उसकी नियुक्ति अनारक्षित कोटे में होगी।’’
साथ ही अभ्यर्थियों का कहना है कि बीपीएससी द्वारा जारी मेधा क्रम में 9, 69, 73, 106, 110, 112 तथा 114 पर अंकित अभ्यर्थी का चयन अनारक्षित कोटे में होना चाहिए था, परन्तु आयोग ने इन्हें पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग के कोटे में डाल दिया है। इससे अन्य पिछड़ा वर्ग के कई पात्र अभ्यर्थी चयनित होने से वंचित रह गए हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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