बहुजन उद्यमिता
ग्लोबलाइजेशन ने बहुजनों के लिए अवसरों के नए दरवाजे खोले हैं। एक उदाहरण अजित कुमार अमित हैं। इनका जन्म बिहार के गया जिले के नक्सल प्रभावित टेकारी कस्बे के ओबीसी-वैश्य परिवार में हुआ। इन दिनों अमित सिंगापुर में एक आईटी कंपनी चला रहे हैं। इनकी कंपनी एजीलिटिक्स गूगल की पार्टनर कंपनी है। अमित की सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने नौकरी छोड़कर उद्यम करने का साहस किया है। जबकि अभी भी दलित-बहुजन युवा उद्यम के बजाय नौकरी को प्राथमिकता देते हैं।
टेकारी में अमित के पिता कन्हाई लाल की कपडों की एक दुकान थी। वहीं उनका संयुक्त परिवार रहता है। अमित के घर में बिजनेस का माहौल रहा लेकिन उन्हें आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ा। वजह रही संयुक्त परिवार में होने वाले विवाद। यह विवाद इस स्तर तक बढ़ा कि अमित की पढ़ाई बाधित हुई। मैट्रिक पास करने से पहले कुछ साल तक पटना में एक हॉस्टल में भी रहे। परंतु पारिवारिक कारणों से उन्हें गया वापस जाना पड़ा और वहीं से मैट्रिक की परीक्षा 1995 में 70 फीसदी अंकों से पास की।
उन दिनों बिहार बोर्ड द्वारा संचालित परीक्षा में 70 फीसदी अंक हासिल करना चर्चा का विषय होता था। अमित आगे पटना जाकर पढ़ना चाहते थे। परंतु परिजनों ने राह में कई रोड़े अटकाये। इस बीच पिताजी के कहने पर दुकान पर अमित बैठने लगे। समय बीतने के साथ बिजनेस में मन लगने लगा तो टेकारी में ही साड़ी की दुकान अलग से खोल ली।
एक उद्यमी के रूप में अमित को सफलता तब मिली जब उनकी उम्र महज 17-18 साल रही होगी। उन दिनों उन्होंने मार्केटिंग के उपायों को आजमाया और महज दो-ढाई साल के अंदर ही बिजनेस जम गया। लेकिन यह उनके संघर्ष का अंत नहीं, बल्कि एक शुरूआत थी। उन दिनों फिर एक बार पारिवारिक तनाव के कारण उन्हें अपनी जमी-जमायी दुकान छोड़नी पड़ी।
अमित बताते हैं कि बाद में उनके पिताजी के एक मित्र के बेटे नंद किशोर यादव उन्हें पटना लेकर आए। उन दिनों पटना भी उनके लिए एक बड़ा शहर हुआ करता था। इतना बड़ा कि पटना में रहने और पढ़ने का वे ख्वाब देखा करते थे। पटना में कंप्यूटर सीखने की इच्छा हुई। वहीं से इग्नू से बैचलर इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (बीसीए) किया। फिर दिल्ली चला आए। अमित के मुताबिक, दिल्ली आने की वजह आगे की पढ़ाई करनी थी। लेकिन अपने परिजनों से आहत अमित ने रोजी-रोटी के लिए एक बैंक में डाटा इंट्री ऑपरेटर की नौकरी की। लेकिन मन नहीं रमा। मन में तो असंख्य सपने थे जिन्हें पूरा करने अमित दिल्ली आए थे।
वहां चार महीने तक यह नौकरी करने के बाद एक दिन बिड़ला सॉफ्ट के लिए उनका चयन हो गया और उन्हें अगले ही दिन हैदराबाद जाकर ज्वायन करने को कहा गया। तब कंपनी के द्वारा उन्हें जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट दिया गया। इसके साथ ही उनका वेतन 4 हजार रुपए से बढ़कर 22 हजार रुपए हो गया। यह टेकारी से निकले अमित की पहली उड़ान थी।
फिर हैदराबाद में करीब दो वर्षों तक काम करने के बाद उनका चयन सिटी बैंक, सिंगापुर के लिए हो गया। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उड़ान साबित हुई। सिंगापुर में उन्होंने कई कंपनियों के लिए काम किया। लेकिन ‘जिसके मन में उद्यम बसे, चाकरी कहां से होय’ कहावत को चरितार्थ करते हुए अमित ने एजीलिटिक्स नामक आईटी कंपनी खोल दी।
पूछने पर अमित कहते हैं कि मैंने सोचा “यदि मैं अपना बिजनेस शुरू करने के बजाय नौकरी ही करता रहूं तो मुझे क्या हासिल होगा। अधिक से अधिक यही होगा कि एक कर्मचारी के रूप में मेरे पास हर महीने एक निश्चित रकम आती रहेगी। लेकिन एक उद्यमी के पास असीमित अवसर होते हैं। यही सोचकर मैंने अपनी कंपनी शुरू की।”
हालांकि नौकरी छोड़ कंपनी खोलने का फैसला इतना आसान नहीं था। अचानक से उनकी आय में गिरावट हुई। बैंक का कर्ज बढ़ने लगा। इसकी वजह यह भी रही कि उन्होंने जिस क्षेत्र में काम करने की शुरूआत की, उस क्षेत्र में पहले से ही बड़ी कंपनियां लगी थीं। लेकिन ‘बिग डाटा एनालिटिक्स’ के विशेषज्ञ के रूप में अमित ने अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। इस सफलता को हासिल करने में उन्हें करीब साढ़े तीन साल का समय लगा। हालांकि प्रतिद्वंद्विता के मोर्चों पर अभी भी उनकी कंपनी का संघर्ष जारी है।
आज अमित की कंपनी गूगल के साथ पार्टनर है। वे गूगल के द्वारा डाटा प्रबंधन संबंधी दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में विश्व स्तर की कपंनियों के कर्मियों को प्रशिक्षण देते हैं। इसके अलावा वे पृथक रूप से भी अपने उपभोक्ता कंपनियों को डाटा प्रबंधन की अद्यतन तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण देते हैं।
अमित के मुताबिक, उन्होंने अभी शुरूआत की है। कंपनी का विस्तार करने के क्रम में उन्होंने मध्य-पूर्व देशों के अलावा भारत में भी कारोबार बढ़ाया है। इस तरह एक छोटी सी कंपनी अब विश्वस्तरीय कंपनी बनने की राह पर है।
पूछने पर अमित कहते हैं कि आईटी के क्षेत्र में आने के बाद तो जातिगत भेदभाव कभी महसूस नहीं हुआ। वे कहते हैं कि “जिन दिनों मैं पटना से गया वापस पढ़ने गया था तब मेरा दाखिला टेकारी राज इंटर कॉलेज में हुआ था। उन दिनों कुछ सवर्ण छात्र जातिसूचक टिप्पणी जरूर करते थे कि बनिया का बेटा हो तो जाकर दुकान चलाओ। लेकिन आईटी के क्षेत्र में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैं आपको बताऊं कि सिंगापुर में जाति और धर्म तो छोड़ दें, राष्ट्रीयता भी कोई मायने नहीं रखती है। मतलब यह कि यदि आपमें योग्यता है तो आपको कोई रोक नहीं सकता है। फिर चाहे आप भारत के हों, दक्षिण अफ्रीका के हों या फिर बांग्लादेश या पाकिस्तान के।”
बहरहाल, अमित कहते हैं कि दलित-बहुजन युवाओं को लक्ष्य सामने रखकर मेहनत करना चाहिए। आज जमाना बदला है। आईटी के क्षेत्र में संभावनाएं हैं। जातिगत समस्याएं केवल तबतक हावी होती हैं जब आप स्वयं आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और आर्थिक रूप से कमजोर लेागों के बीच रहते हैं। जैसे ही आप एक बार सफल हो जाते हैं, किसी को आपकी जाति से फर्क नहीं पड़ता।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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