राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद की पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। यहां तक कि विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे सियासी समीकरणों में निर्णायक बदलाव हुए हैं।
ताजा प्रसंग उन पर केंद्रित किताब ‘गोपालगंज टू रायसीना’ से जुड़ा है। गोपालगंज लालू प्रसाद के गृह जिले का नाम है जहां के फुलवरिया गांव में उनका जन्म हुआ। एक तरह से यह किताब उनके राजनीतिक सफर की दास्तान है जिसे कलमबंद पटना में अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार रहे नलिन वर्मा ने किया है।
लोकसभा चुनाव के मौके पर यह किताब हिंदी और अंग्रेजी दोनों में एक साथ लायी गयी है और इसका वही असर हो रहा है जिसकी अपेक्षा चारा घोटालाा मामले में जेल में बंद लालू प्रसाद ने की होगी।
इस किताब ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। जदयू और भाजपा के नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया है। वे लालू प्रसाद पर जेल के अंदर रहकर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं।
पूरी किताब 1974 से लेकर 2019 तक बिहार में हुए राजनीतिक घटनाओं पर आधारित है, जिसमें प्रत्यक्ष रूप से लालू प्रसाद शामिल रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे सवाल भी हैं जो मौजूदा समय में चुनावी गणित को प्रभावित कर सकती हैं। इनमें से एक प्रसंग जिस पर सबसे अधिक विवाद हो रहा है, वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन में दुबारा शामिल होने के लिए लालू के पास अपने राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर को प्रस्ताव लेकर भेजने संबंधी जानकारी है।
इस मामले को लेकर नीतीश कुमार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं किया है। हालांकि उनकी पार्टी जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने अपने एक बयान में किताब के लेखक नलिन वर्मा को लालू प्रसाद का एजेंट कहा है।
इस किताब में लालू प्रसाद ने कई खुलासे किए हैं। इनमें से एक संपूर्ण क्रांति को लेकर है। उन्होंने कहा है कि उस आंदोलन की शुरूआत उन्होंने स्वयं की थी और बाद में लोकनायक जयप्रकाश नारायण को मार्गदर्शक मान लिया था।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब यह बात सामने आयी है। वह समय-समय पर पब्लिक डोमेन में यह कहते भी रहे हैं।
लेकिन, एक प्रसंग जिसने राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें चर्चा के केंद्र में ला दिया है, वह मंडल कमीशन से जुड़ा है। किताब में इसका विस्तृत वर्णन है। इसके मुताबिक जिन दिनों प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के बीच तनातनी की स्थिति थी और रोज-ब-रोज आरोप-प्रत्यारोप चल रहे थे, उन दिनों ही लालू प्रसाद ने वी. पी. सिंह से मिलकर मंडल कमीशन को लागू करने की बात कही।
किताब के मुताबिक, लालू प्रसाद यह दावा करते हैं कि उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह को समझाया कि यदि वे मंडल कमीशन की अनुशंसाओं जो कि 1983 से ही ठंडे बस्ते में पड़ी हैं, उन्हें लागू कर दें तो पूरा ओबीसी उनके साथ खड़ा हो जाएगा। चौधरी देवीलाल का पार्टी पर से नियंत्रण स्वत: ही खत्म हो जाएगा। किताब में कहा गया है कि लालू प्रसाद के कहने पर ही वी. पी. सिंह ने मंडल कमीशन को लागू करने का फैसला किया।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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