त्वरित टिप्पणी
लोकसभा चुनाव-2019 सचमुच ऐतिहासिक बन गया है। इस चुनाव में भारत की जनता ने वंशवाद को करारा झटका दिया है। राहुल गांधी भले ही केरल के वयनाड से जीतने में कामयाब रहे लेकिन उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से भाजपा की स्मृति इरानी से करीब 44 हजार मतों के अंतर से चुनाव हार चुके हैं।
पूरे परिदृश्य को देखते हुए यह कहना उचित होगा कि यह संघ-भाजपा की जीत नहीं, बल्कि वंशवाद की हार है। विकल्पहीन भारतीय जनता ने स्वाभविक रूप से राजकुमारों को गद्दी सौपने से इनकार कर दिया है।
यह हार केवल नेहरू खानदान तक सीमित नहीं है। बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। उनकी बेटी डा. मीसा भारती भाजपा के रामकृपाल यादव के हाथों पराजित हो चुकी हैं। यह हार लालू प्रसाद के परिवारवाद का है जो एक समय कहा करते थे कि अब राजा रानी के गर्भ से पैदा नहीं होगा। लेकिन बाद में वे स्वयं इसके पर्याय बनकर रह गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का परिवार अपनी सीट बचाने में किसी प्रकार कामयाब हो सका है। उनकी पार्टी केवल 5 सीटों पर जीत रही है। वहीं उसकी सहयोगी बहुजन समाज पार्टी को कुल 11 सीटें मिलने की संभावना है।
वंशवाद की अमरबेल केवल यूपी और बिहार में ही नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भी कमजोर होती दिख रही है। मसलन, मध्य प्रदेश के भोपाल सीट से राजा के परिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह चुनाव हार चुके हैं। वहीं राजा के खानदान में ही जन्मे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी गुणा सीट से पराजित हो चुके हैं। उनकी यह ऐतिहासिक पराजय है। इसकी वजह यह कि यहां से राजा के परिवार के सदस्य ही जीतते रहे थे।
राजा-महाराजा परंपरा की महारानी कविता सिंह खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार चुकी हैं। उन्हें भाजपा के विष्णु दत्त शर्मा ने 4 लाख 92 हजार 382 वोटों के अंतर से हराया है। हालांकि छिंदवाड़ा सीट से मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुल कमलनाथ को महज 37 हजार 536 मतों के अंतर से जीत मिली है। इस एक सीट के लिए कमलनाथ ने पूरे प्रदेश में कांग्रेस को उसके हाल पर छोड़ दिया था।
वहीं, भाजपाई खेमे के वंशवादियों को नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा मिला है। नेहरू खानदान से संबंध रखने वाली मेनका गांधी और वरूण गांधी इनमें शामिल हैं। वहीं बिहार में ही रामविलास पासवान का परिवारवाद कामयाब रहा है। उनके दोनों भाई और पुत्र चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इनकी जीत कोई खास मायने नहीं रखती है क्योंकि इनकी जीत सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी की जीत है। रामविलास पासवान ने उन्हें आगे रखकर अपने परिजनों को मैदान में उतारा था।
बहरहाल, वंशवादियों की हार से राजनीतिक संभावनाएं बनेंगी। जिस विकल्प के अभाव की बात आज कहकर भाजपा के नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत पाने में एक बार फिर सफल हुए हैं, संभव है कि आने वाले समय में वह विकल्प जनता स्वयं चुन लेगी।
(कॉपी संपादन : नवल)
परिवर्धित : 23 मई, 2019, 10:36 PM
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